डोनाल्ड ट्रंप की वाइट हाउस में दोबारा वापसी ने भारत में शुरुआती उत्साह पैदा किया था. नवंबर 2024 में उनकी जीत के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार को उम्मीद थी कि ट्रंप का दूसरा कार्यकाल भारत-अमेरिका संबंधों को नई ऊंचाइयों तक ले जाएगा. हालांकि पांच महीने बाद यह उत्साह संदेह में बदलता दिख रहा है. अमेरिका के प्रतिष्ठित अखबार वॉल स्ट्रीट जर्नल ने अपने एक लेख में सवाल उठाया है, "क्या डोनाल्ड ट्रंप भारत को खो देंगे?" यह लेख ट्रंप के हालिया फैसलों और नीतियों के प्रति भारत की बढ़ती चिंताओं को उजागर करता है.
ट्रंप की जीत के तुरंत बाद भारत में उनके प्रति समर्थन का माहौल था. भारतीय नेतृत्व को भरोसा था कि ट्रंप प्रशासन के साथ रणनीतिक और सामरिक साझेदारी मजबूत होगी. ट्रंप ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान भारत को "विश्व शक्ति" के रूप में सराहा था और अमेरिका-भारत मित्रता को अभूतपूर्व स्तर पर ले जाने का वादा किया था. उनकी यह बातें भारत के लिए भू-जैविक और कूटनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण थीं.
इसके अलावा, रूस के प्रति ट्रंप की नीतियों को भारत में कई लोगों ने सकारात्मक माना क्योंकि भारत और रूस के बीच ऐतिहासिक संबंध रहे हैं. मानवाधिकार जैसे मुद्दों पर ट्रंप के गैर-हस्तक्षेपवादी रुख ने भी भारत को राहत दी थी. भारत को उम्मीद थी कि कारोबारी मुद्दों पर कुछ शुरुआती चुनौतियों के बावजूद, ट्रंप के साथ मजबूत व्यक्तिगत और कूटनीतिक संबंध इन समस्याओं को हल करने में मदद करेंगे.
बढ़ती निराशा
हालांकि, ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद पिछले पांच महीनों में भारत का अनुभव अपेक्षाओं से उलट रहा है. वॉल स्ट्रीट जर्नल के अनुसार भारत में ट्रंप के समर्थक अब यह सोचने पर मजबूर हैं कि क्या उनका समर्थन एक गलती थी. ट्रंप प्रशासन की नीतियों और फैसलों ने भारत में संदेह पैदा किया है. कारोबारी मोर्चे पर भारत को पहले से ही कुछ मुश्किलों की आशंका थी, लेकिन उम्मीद थी कि अन्य क्षेत्रों में मजबूत संबंध इन दिक्कतों को कम करेंगे. मगर, ट्रंप की "अमेरिका फर्स्ट" नीति ने भारत जैसे सहयोगी देशों के लिए व्यापार और निवेश के क्षेत्र में बाधाएं बढ़ा दी हैं. टैरिफ, व्यापार प्रतिबंध और अन्य आर्थिक नीतियों ने भारत को असहज स्थिति में डाल दिया है.
रणनीतिक और कूटनीतिक चुनौतियां
ट्रंप की विदेश नीति ने भी भारत को कुछ मामलों में असमंजस में डाला है. जहां रूस के प्रति उनके रुख को भारत में सराहा गया वहीं अन्य वैश्विक मुद्दों पर उनकी अप्रत्याशितता ने भारत की रणनीतिक योजनाओं को प्रभावित किया है. उदाहरण के लिए इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए भारत और अमेरिका के बीच क्वाड गठबंधन एक महत्वपूर्ण मंच है. लेकिन ट्रंप प्रशासन की नीतियों में स्पष्टता की कमी ने इस गठबंधन की गति को धीमा कर दिया है.
भारत का भरोसा क्यों डगमगा रहा है?
वॉल स्ट्रीट जर्नल ने चेतावनी दी है कि ट्रंप प्रशासन की मौजूदा दिशा भारत को अमेरिका से दूर कर सकती है. भारत ने ट्रंप के पहले कार्यकाल में उनके साथ मजबूत व्यक्तिगत संबंध बनाए थे जैसे कि "हाउडी मोदी" और "नमस्ते ट्रंप" जैसे आयोजनों के जरिए. लेकिन अब भारत को लग रहा है कि ट्रंप की प्राथमिकताएं बदल गई हैं. उनकी नीतियां अब केवल अमेरिकी हितों तक सीमित दिख रही हैं, जिससे सहयोगी देशों के साथ संबंध कमजोर हो रहे हैं.
भारत के लिए यह स्थिति इसलिए भी चिंताजनक है, क्योंकि वह वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति को और मजबूत करना चाहता है. अमेरिका के साथ मजबूत साझेदारी भारत की रणनीति का एक अभिन्न हिस्सा रही है. लेकिन अगर ट्रंप की नीतियां भारत के हितों के खिलाफ जाती रहीं तो भारत को अन्य वैश्विक शक्तियों जैसे कि रूस, यूरोपीय संघ या फिर क्षेत्रीय गठबंधनों के साथ अपने संबंधों को और गहरा करने की जरूरत पड़ सकती है.