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India Daily

'क्या उनकी मौत मेरे 31 साल के निर्वासन को खत्म कर देगी..', खालिदा जिया के निधन पर तसलीमा नसरीन ने पूछा सवाल?

बांग्लादेश की तीन बार प्रधानमंत्री रहीं खालिदा जिया के निधन पर लेखिका तस्लीमा नसरीन ने प्रतिक्रिया दी है.

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Edited By: Reepu Kumari
'क्या उनकी मौत मेरे 31 साल के निर्वासन को खत्म कर देगी..', खालिदा जिया के निधन पर तसलीमा नसरीन ने पूछा सवाल?
Courtesy: Pinterest

नई दिल्ली: बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री और पाकिस्तानी समर्थक खालिदा जिया का 80 साल की उम्र में निधन हो गया है. खालिदा जिया तीन बार प्रधानमंत्री रह चुकी थीं. खालिदा को वहां की सबसे ताकतवर महिला के रूप में देखा जाता था. उनकी मौत पर बांग्लादेशी मूल की प्रसिद्ध लेखिका और चिकित्सक ने अपने साथ हुए अन्याय के बारे में लिखा है. साथ ही उन्होनें यहां तक कह दिया है कि यदि उनकी मृत्यु अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करती है, तो ऐसा ही सही. उन्होनें यह भी सवाल किया कि क्या उनकी मृत्यु मेरे 31 वर्षों के निर्वासन का अंत करेगी?

तस्लीमा नसरीन बांग्लादेशी मूल की प्रसिद्ध लेखिका और चिकित्सक हैं, जिन्होंने अपनी बेबाक लेखनी के माध्यम से नारीवाद, मानवाधिकार और धर्म के भीतर महिलाओं की स्थिति पर तीखी टिप्पणी की. 

जब तस्लीमा नसरीन को देश छोड़ना पड़ा

उनके प्रगतिशील और विद्रोही विचार, खासकर इस्लाम सहित धर्मों की आलोचना, हमेशा चर्चा के केंद्र में रहे, जिसकी वजह से 1994 में उन्हें देश छोड़ना पड़ा और तब से वह निर्वासन का जीवन जी रही हैं. अपने लेखन के कारण उन्हें कई बार फतवे और धमकियों का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने कभी अपनी आवाज धीमी नहीं की.

तस्लीमा भारत, यूरोप और अमेरिका में रह चुकी हैं और वर्तमान में स्वीडन की नागरिक हैं, साथ ही स्वीडन की नागरिकता मिलने के बाद वह स्वीडन की नागरिक भी बनीं, जिससे उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सुरक्षा मिली.

तस्लीमा नसरीन का एक्स पोस्ट 

तस्लीमा नसरीन ने अपने एक्स अकाउंट पर लिखा 'खालिदा जिया का देहांत हो गया है. वह 80 वर्ष की थीं. एक गृहिणी से वह पार्टी प्रमुख बनीं और दस वर्षों तक देश की प्रधानमंत्री रहीं. उन्होंने एक सफल और लंबा जीवन जिया. शेख हसीना ने उन्हें दो साल तक जेल में रखा; उस अवधि के अलावा, मुझे नहीं लगता कि 1981 के बाद उन्हें कोई विशेष कष्ट सहना पड़ा. हर कोई बीमारियों से ग्रस्त होता है; वह भी हुईं.

पुस्तकों पर लगे प्रतिबंध क्या हटेंगे?

वो आगे लिखती हैं 'मैं सोच रही हूं क्या उनकी मृत्यु के साथ ही उन पुस्तकों पर लगे प्रतिबंध नहीं हटेंगे जिन पर उन्होंने प्रतिबंध लगाए थे? उन्हें हट जाना चाहिए. उन्होंने 1993 में मेरी पुस्तक 'लज्जा' पर प्रतिबंध लगाया. उन्होंने 2002 में 'उतल हवा' पर प्रतिबंध लगाया. उन्होंने 2003 में 'का' पर प्रतिबंध लगाया. उन्होंने 2004 में 'दोस डार्क डेज' पर प्रतिबंध लगाया. अपने जीवनकाल में उन्होंने उन पुस्तकों पर लगे प्रतिबंधों को हटाकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए कोई आवाज नहीं उठाई. अगर उनकी मृत्यु अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करती है, तो ऐसा ही सही.'

'मुझे घर लौटने नहीं दिया...'

नसरीन लिखती हैं '1994 में, उन्होंने एक धर्मनिरपेक्ष, मानवतावादी, नारीवादी, स्वतंत्र विचारक लेखिका के खिलाफ 'धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने' का मामला दर्ज करके जिहादियों का साथ दिया. उन्होंने लेखिका के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया. और फिर उन्होंने अन्यायपूर्वक मुझे, यानी उस लेखिका को, मेरे ही देश से निष्कासित कर दिया. उनके शासनकाल में उन्होंने मुझे घर लौटने नहीं दिया. क्या उनकी मृत्यु मेरे 31 वर्षों के निर्वासन का अंत करेगी? या अन्यायपूर्ण शासक पीढ़ी दर पीढ़ी अन्याय करते रहेंगे?'