Russia Ukraine War: रूस और यूक्रेन दो सालों से जंग जारी है. अब अमेरिका ने बड़ा आरोप लगाते हुए कहा है कि रूस ने रासायनिक हथियार संधि का उल्लंघन किया है. रूस ने यूक्रेनी सेना पर केमिकल वेपन क्लोरोपिक्रिन का यूज किया है. प्रथम विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी ने भी मित्र देशों की सेना के साथ इसी केमिकल वेपन का इस्तेमाल किया था. यह हथियार इतना खतरनाक है कि इसके संपर्क में आते ही लोगों का दम घुटने लगता है. आइए जानते हैं आखिर यह क्या है.
रासायनिक हथियार निषेध संधि संगठन (OPCW) ने क्लोरोपिक्रिन को अपनी वेबसाइट पर प्रतिबंधित चोकिंग एजेंट की लिस्ट में डाल रखा है. इस संगठन की स्थापना साल 1993 में रासायनिक हथियार संधि को लागू करने के लिए की गई थी. यह संस्था दुनियाभर में केमिकल वेपन्स की निगरानी करती है.
क्लोरोपिक्रिन को नाइट्रोक्लोरोफॉर्म और पीएस के नाम से भी जाना जाता है. यह एक रासायनिक यौगिक है. इसका इस्तेमाल कीटनाशक और नेमाटाइडाइड के रूप में किया जाता है. इसकी खासियत है कि यह गैस और द्रव दोनों ही अवस्थाओं में इस्तेमाल किया जा सकता है. इसकी एक छोटी से बूंद भी इंसान के लिए जानलेवा साबित हो सकती है.
क्लोरोपिक्रिन एक रंगहीन गैस होती है. इसका रंग हल्का पीला होता है. इसी गैस का हथियार पहली बार प्रथम विश्व युद्ध के दौरान जहरीली गैस के रूप में किया गया था. जर्मनी की सेना ने इसका उपयोग मित्र राष्ट्रों की सेना के खिलाफ किया था. इसे गैस के रूप में हवा में छोड़ा जा सकता ह. इसकी जरा सी भी मात्रा शरीर में प्रवेश करने पर मौत के लिए काफी है. जानकारों के मुताबिक, रासायनिक यौगिक के शरीर के भीतर जाने पर यह मूल रूप से शरीर के श्वसन तंत्र को प्रभावित करती है. इससे नाक, कान, गले और लंग्स में जलन होने लगती है. इसके दुष्प्रभाव से इंसान की देखने की क्षमता हमेशा के लिए समाप्त हो सकती है.
अमेरिका ने रासायनिक और जैविक हथियार बनाने वाली तीन रूसी कंपनियों पर प्रतिबंध लगाया है. इसमें एक कंपनी तो रूस की स्पेशल मिलिट्री की ही है. इसी यूनिट पर आरोप है कि इसने कथित तौर पर यूक्रेनी सेना के खिलाफ क्लोरोपिक्रिन का इस्तेमाल किया था.