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India Daily

पहले 900 सालों तक जिंदा रहते थे लोग, जानें फिर क्यों घटी उम्र

आज के समय में भले ही लोगों की उम्र कम हो गई हो लेकिन एक समय था जब लोगों की उम्र 900 साल हुआ करती थी. इसको लेकर एक दावा भी किया गया है.

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Edited By: Suraj Tiwari
Russia genetics institute

हाइलाइट्स

  • रूस सरकार की हो रही आलोचना
  • बाइबिल युग में 900 वर्षों तक जीवित रहते थे लोग

नई दिल्ली: आज के समय में लोगों का ऐसा मानना है कि मनुष्य का उम्र करीब 100 साल है. हालांकि दुनिया में बढ़ते प्रदुषण और तमाम बीमारियों की वजह से ये घटता ही जा रहा है. लेकिन रूस से इस बात का खुलासा हुआ है कि एक समय था जब मनुष्य की आयु 900 वर्ष हुआ करती थी. हालांकि रूस में इस बात के सामने आते ही पूरे देश में बवाल मच गया.

रूस सरकार की हो रही आलोचना

रूस में इन दिनों एक खबर काफी चर्चा बटोर रही है. वाक्या ये हैं कि रूस सरकार के नामी गिरमी जेनेटिक इंस्टिट्यूट के चीफ 'कुद्रियावत्सेव' ने जब ये बयान दिया कि पहले मनुष्य सदियों तक जीवित रहते थे, लेकिन अब आधुनिक मनुष्यों का जीवन लगातार छोटा हो गया है. मनुष्य के इस छोटे हो रहे जीवन के पीछे उनके पूर्वजों का किया हुआ पाप है.

इस बयान के बाद रूस सरकार ने उनको इस अजीबोगरीब बयान के लिए बर्खास्त कर दिया. जहां मामले को लेकर मीडिया से जानकारी मिल रही है कि उनकी बर्खास्तगी इसी बयान के कारण हुई जबकि मंत्रालय ने इसका कोई कारण नहीं बताया है. हालांकि इस बयान के बाद रूस में स्थित प्रभावशाली ऑर्थोडॉक्स चर्च द्वारा धार्मिक भेदभाद बताया. वहीं इस बर्खास्तगी को लेकर सरकार की आलोचना हो रही है.

बाइबिल युग में 900 वर्षों तक जीवित रहते थे लोग

इस बयान को कुद्रियावत्सेव ने साल 2023 में आयोजित एक सम्मेलन में दिया था. जिसमें उन्होंने कहा था कि लोग बाइबिल के युग में करीब 900 वर्षों तक जीवित रहते थे. लेकिन फिर लोगों के ही पापों के वजह से आने वाली यानी आज की पीढ़ी की उम्र धीरे-धीरे कम होती चली गई.

वहीं एक रूसी न्यूज वेबसाइट के अनुसार, कुद्रियावत्सेव ने ये भी दावा किया कि "सातवीं पीढ़ी तक के बच्चे अपने पिता के पापों के लिए जिम्मेदार हैं". वहीं उनपर हुए इस कार्रवाई को लेकर न्यूज एजेंसी आरआईए-नोवोस्ती से बातचीत में रूसी चर्च के पारिवारिक मामला आयोग के प्रमुख फ्योडोर लुक्यानोव ने कहा, "धार्मिक मान्यताओं के अनुसार दिए गए बयानों के लिए कुद्रियात्सेव को बर्खास्त करना वैज्ञानिक समुदाय की नैतिकता का उल्लंघन है. हम पहले ही सोवियत काल से गुजर चुके हैं, तब जेनेटिक को लंबे समय तक छद्म विज्ञान माना जाता था."