नेपाल और चीन ने हाल ही में बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के फ्रेमवर्क पर एक महत्वपूर्ण समझौता किया है, जो दोनों देशों के बीच आर्थिक और कूटनीतिक संबंधों को और मजबूत करेगा. नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने इस समझौते की पुष्टि की, जो चीन के साथ उनके बढ़ते रिश्तों का एक अहम हिस्सा है. यह कदम नेपाल के लिए एक नई दिशा को दर्शाता है, वहीं भारत के लिए एक गंभीर रणनीतिक चुनौती उत्पन्न कर सकता है.
बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) क्या है?
Today, we signed the Framework for Belt & RoadsCooperation. As my official visit to China concludes, I am honoured to reflect on the bilateral talks with Premier Li Qiang, discussions with NPC Chairman Zhang Leji, and the highly fruitful meeting with President Xi Jinping. pic.twitter.com/vtizLfrI4n
— K P Sharma Oli (@kpsharmaoli) December 4, 2024
नेपाल और चीन के बीच समझौता
नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के चीन दौरे के दौरान, दोनों देशों ने बीआरआई के फ्रेमवर्क पर हस्ताक्षर किए. नेपाल के राजदूत कृष्ण प्रसाद ओली ने इस समझौते की पुष्टि करते हुए कहा कि एक व्यापक रूपरेखा पर सहमति बनी है, हालांकि वह इस समझौते के बारे में ज्यादा जानकारी देने से बचते रहे. इस समझौते का उद्देश्य दोनों देशों के बीच इंफ्रास्ट्रक्चर, व्यापार, और कनेक्टिविटी के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाना है.
भारत पर प्रभाव
नेपाल का यह कदम भारत के लिए एक कड़ी चुनौती हो सकता है, जो हमेशा नेपाल के साथ एक विशेष रणनीतिक और कूटनीतिक संबंध बनाए रखने का इच्छुक रहा है. भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने नेपाल के साथ कई द्विपक्षीय परियोजनाओं पर काम किया है, खासकर बुनियादी ढांचे और व्यापारिक संबंधों के क्षेत्र में.
नेपाल के बीआरआई में शामिल होने से यह स्पष्ट संकेत मिलते हैं कि नेपाल अब अपने विदेश नीति में भारत से दूरी बनाने की कोशिश कर रहा है और चीन की ओर अपनी नीतियां झुका रहा है. भारत के लिए यह स्थिति इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि नेपाल उसकी सुरक्षा और सामरिक दृष्टि से एक अहम साझीदार है, और इस समझौते से चीन के प्रभाव को नेपाल में बढ़ावा मिलेगा.
पीएम ओली की रणनीति
नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने अपने कार्यकाल में चीन के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने की कोशिश की है. जब वह प्रधानमंत्री बने थे, तो उन्होंने अपने पहले आधिकारिक विदेश दौरे के लिए चीन को चुना, जबकि परंपरागत रूप से नेपाल के प्रधानमंत्री अपने कार्यकाल की शुरुआत में भारत का दौरा करते थे. ओली का यह कदम नेपाल के विदेश नीति में बदलाव का संकेत था, जो भारत के साथ अपने पारंपरिक रिश्तों को पुनः परिभाषित करता है.
भारत की प्रतिक्रिया
भारत इस घटनाक्रम पर बारीकी से निगाह रखे हुए है. हालांकि भारत ने आधिकारिक रूप से इस समझौते पर कोई सार्वजनिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि नेपाल का यह कदम भारत के लिए एक कूटनीतिक चुनौती उत्पन्न कर सकता है. भारत, जो नेपाल के साथ अपनी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों को महत्व देता है, ने हमेशा इस क्षेत्र में अपनी प्रभावशाली भूमिका बनाए रखने की कोशिश की है.