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चीन के लिए शांति दिवस तो तिब्बत के लिए काला दिन, आखिर क्या है 23 मई की कहानी

Tibet vs China: तिब्बत खुद को स्वतंत्र बताता रहा है लेकिन चीन उसे अपना हिस्सा बताता है. अभी भी इसको लेकर दुनियाभर में आए दिन विवाद होते रहते हैं और विरोध प्रदर्शन भी होते हैं.

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Courtesy: Social Media

हर साल 23 मई को अंतरराष्ट्रीय तिब्बत मुक्ति दिवस मनाया जाता है लेकिन तिब्बत के ही लोग इस दिन को ब्लैक डे यानी कि काला दिवस के रूप में मनाते हैं. इसी दिन को चीन के लोगों द्वारा शांति के प्रयासों वाला दिन बताया जाता है. क्यों चीन और तिब्बत के लोगों ने इस दिन की अलग-अलग मान्यताएं दी हैं. क्या हैं वे कारण जिनकी वजह से आज भी एक ही देश में होते हुए तिब्बत और चीन के बीच इतना तनावपूर्ण माहौल बना रहता है. क्यों तिब्बत के लोग चीन के किसी भी नियमों का पालन नहीं करते हैं.

तिब्बत के लोगों द्वारा 23 मई को हर साल काला दिवस मनाया जाता है जबकि उसी तारीख को दुनियाभर में अंतरराष्ट्रीय तिब्बत मुक्ति दिवस मनाया जाता है. इसकी अपनी एक अलग कहानी है. तिब्बत और चीन का लंबे समय से विवाद चल रहा है. विवाद का कारण यही है कि तिब्बत के लोग तिब्बत को स्वतंत्र देश मानते हैं. वहीं चीन का कहना है कि तिब्बत चीन का हिस्सा है.

क्या है इतिहास?

इस विवाद को लेकर चीन दावा करता है कि 13वीं शताब्दी में तिब्बत चीन का हिस्सा रहा है. इसलिए तिब्बत पर चीन का अधिकार है. वहीं तिब्बत चीन के इस दावे को स्वीकारने के लिए किसी भी कीमत पर तैयार नहीं है. साथ ही साथ तिब्बत के लोग बताते हैं कि तिब्बत के 13वें धर्मगुरु दलाई लामा ने साल 1912 में तिब्बत को स्वाधीन देश घोषित कर दिया था. उस समय तो चीन ने कोई भी आपत्ति नहीं जताई थी. हालांकि, बाद में उसकी नीयत बदल गई.

23 मई 1951 की कहानी

लगभग 40 साल स्वतंत्र देश के रूप में विश्व के मानचित्र तिब्बत अंकित रहा. उसके बाद चीन में कम्युनिस्टों का शासन शुरू हुआ और तिब्बत की दिक्कतें बढ़नी शुरू हो गई. चीन की नई सरकार उसी समय से अपने विस्तारवादी नीति को लागू करते हुए. तिब्बत के ऊपर हजारों सैनिकों के साथ हमला कर दिया. लगभग आठ महीने तक दोनों देश आमने-सामने लड़ते रहे और धीरे-धीरे चीन तिब्बत पर कब्जा करने लगा. उसके बाद एक ऐसा दिन आया जब तिब्बत के धर्मगुरु दलाई लामा चीन के सामने मजबूर हो गए और चीन के साथ समझौते पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए. यह वही 23 मई का दिन था जिसे आज भी तिब्बत काला दिवस के रूप में मनाता है. समझौते के दस्तावेज में 17 बिंदुओं को शामिल किया गया था. जिसके बाद से ही आधिकारिक तौर पर तिब्बत चीन का हिस्सा बन गया था. इसीलिए तिब्बत के लोग अपनी स्वाधीनता खोने के कारण 23 मई को काला दिवस मनाते हैं.

1955 की हिंसा

दलाई लामा और तिब्बत के ज्यादातर लोग इस संधि को मानने के लिए तैयार नहीं थे. वहीं चीन अपनी विस्तारवादी नीति से बाज आने को तैयार नहीं था. धीरे-धीरे करके चीन अपने पड़ोसी देश पर कब्जा करने लगा था. जिसे देखकर तिब्बत के लोगों के अंदर चीन के प्रति गुस्सा पनपने लगा. धीरे-धीरे यह गुस्सा इतना बढ़ गया कि 1955 में चीन के खिलाफ पूरे तिब्बत में हिंसक प्रदर्शन शुरू हो गए. यह चीन के खिलाफ तिब्बत का पहला हिंसक प्रदर्शन था. इस प्रदर्शन के दौरान हजारों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी.

दलाई लामा ने भारत में ली शरण

प्रदर्शनों के बीच साल 1959 में एक खबर फैलने लगी कि चीन दलाई लामा को बंधक बनाने वाला है. जैसे ही ये खबर फैली वैसे ही तिब्बत के हजारों लोग दलाई लामा महल के बाहर जमा हो गए. दलाई लामा ने एक सैनिक का वेश धारण किया और तिब्बत की राजधानी ल्हासा से भाग निकले. वहां से भागकर वह भारत आए और यहां की सरकार ने उनको शरण दी. तभी से दलाई लामा भारत में ही रहते हैं. हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में उनकी अगुवाई में तिब्बत की निर्वासित सरकार संचालित होती है, जिसके लिए बाकायदा वहां की संसद का मुख्यालय भी धर्मशाला में ही स्थापित किया गया है.

भारत और चीन की दुश्मनी का कारण! 

वहीं यह भी कहा जाता है कि चीन को यह बात पसंद नहीं आई कि भारत ने दलाई लामा को शरण दी है. इसी को साल 1962 में चीन और भारत के बीच हुए युद्ध का कारण माना जाता है. हालांकि, काफी समय बाद साल 2003 में भारत ने तिब्बत को चीन का हिस्सा मान लिया. इसके बाद चीन भी सिक्किम को भारत का हिस्सा मानने को तैयार हो गया था जबकि बाद में चीन अपनी बात से मुकरने लगा था.