इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की गठबंधन सरकार एक गंभीर राजनीतिक संकट का सामना कर रही है. बुधवार को विपक्ष ने संसद (नेसेट) भंग करने का विधेयक पेश कर दिया, जिसने नेतन्याहू की सरकार को और दबाव में ला दिया है. इस संकट की मुख्य वजह उनकी गठबंधन में शामिल अति-रूढ़िवादी (Ultra-Orthodox या हारेदी) पार्टियों की नाराजगी है. इन पार्टियों ने धमकी दी है कि यदि धार्मिक छात्रों को सैन्य सेवा से छूट देने वाला कानून पारित नहीं किया गया, तो वे संसद भंग करने के प्रस्ताव का समर्थन करेंगी.
इजरायल में धार्मिक छात्रों को सैन्य सेवा से छूट का मुद्दा दशकों से विवाद का केंद्र रहा है. 2017 में इजरायल की सुप्रीम कोर्ट ने इस छूट को असंवैधानिक करार दिया था, जिसके बाद से कोई भी सरकार इस मुद्दे पर स्थायी कानून पारित नहीं कर पाई. वर्तमान में, हमास के साथ चल रहे युद्ध के 21वें महीने में, यह मुद्दा और भी संवेदनशील हो गया है. जब देश के अधिकांश युवा सैन्य सेवा में जुटे हैं तब हारेदी समुदाय के युवाओं को छूट देने का विरोध तेज हो गया है. आलोचकों का कहना है कि यह छूट समाज में असमानता को बढ़ावा देती है खासकर तब जब देश युद्ध की स्थिति में है.
अति-रूढ़िवादी पार्टियों की धमकी
नेतन्याहू के गठबंधन में शामिल दो प्रमुख अति-रूढ़िवादी पार्टियां—यूनाइटेड टोरा जूडाइज़्म (UTJ) और शास—इस मुद्दे पर सरकार से बेहद नाराज हैं. शास के प्रवक्ता आशेर मेदिना ने इजरायली रेडियो को बताया, “हम दक्षिणपंथी सरकार को गिराने में खुश नहीं हैं, लेकिन हम अब एक निर्णायक मोड़ पर हैं. अगर कोई समाधान नहीं निकला, तो हम संसद भंग करने के पक्ष में वोट करेंगे.” पिछले हफ्ते UTJ ने भी ऐलान किया था कि यदि सैन्य छूट का कानून पारित नहीं हुआ, तो वह विपक्ष के प्रस्ताव का समर्थन करेगी.
गठबंधन में तनाव और बातचीत
इस संकट को टालने के लिए नेतन्याहू और गठबंधन के नेताओं के बीच कई दौर की बातचीत हो चुकी है, लेकिन अभी तक कोई ठोस समाधान नहीं निकला है. सरकार ने समय खींचने की रणनीति अपनाते हुए संसद की कार्यसूची में कई अन्य विधेयक जोड़ दिए हैं, ताकि संसद भंग करने के प्रस्ताव पर तत्काल वोटिंग टाली जा सके. हालांकि, अगर यह प्रस्ताव पारित हो जाता है, तो उसे तीन और मतदानों से गुजरना होगा, जिसमें हफ्तों या महीनों का समय लग सकता है.
हमास युद्ध और राजनीतिक दबाव
हमास के साथ युद्ध ने इजरायली समाज और राजनीति को गहरे रूप से प्रभावित किया है. 7 अक्टूबर 2023 को हमास के हमले, जिसमें 1200 से अधिक इजरायली मारे गए थे, ने नेतन्याहू सरकार की लोकप्रियता को भारी नुकसान पहुंचाया. इस हमले को इजरायल की सबसे बड़ी सुरक्षा विफलता माना गया, जिसके बाद से सरकार पर लगातार दबाव बढ़ रहा है. विपक्ष का तर्क है कि नेतन्याहू की नीतियां और गठबंधन में अंदरूनी मतभेद देश को कमजोर कर रहे हैं.