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India Daily

बांग्लादेश में 64 जिले, चार में हर 5वां शख्स हिंदू, आखिर बांग्लादेश में हिंदुओं की स्थिति क्या है?

5 अगस्त को शेख हसीना की अवामी लीग सरकार के पतन के बाद से बांग्लादेश के अल्पसंख्यक हिंदुओं को 50 से अधिक जिलों में 200 से अधिक हमलों का सामना करना पड़ा है. पुलिस व्यवस्था के ध्वस्त हो जाने के कारण, हिंदू परिवारों, संस्थानों और मंदिरों पर हमलों में कम से कम पांच लोगों के मारे जाने की खबर है. बांग्लादेश की कार्यवाहक सरकार के प्रमुख मुहम्मद यूनुस ने मंगलवार को ढाका में ढाकेश्वरी मंदिर का दौरा किया और हिंदू समुदाय के नेताओं को आश्वासन दिया कि हम सभी एक हैं और सभी को न्याय दिया जाएगा.

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Edited By: India Daily Live
Hindus population in Bangladesh
Courtesy: social media

बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद अल्पसंख्यक हिंदुओं को अत्याचार का सामना करना पड़ा है. बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं के खिलाफ 50 से अधिक जिलों में 200 से अधिक हमले के मामले सामने आए हैं. देश के अलग-अलग जिलों में पुलिस व्यवस्था ध्वस्त हो जाने के कारण, हिंदू परिवारों, संस्थानों और मंदिरों पर हमलों में कम से कम पांच लोगों के मारे जाने की खबर है. 

आबादी के लिहाज से देखा जाए तो अल्पंख्यकों में सबसे बड़ा हिस्सा हिंदुओं का ही है. बांग्लादेश की 2022 की जनगणना में 13.1 मिलियन यानी 1 करोड़ 30 लाख से ज्यादा हिंदू थे, जो देश की आबादी का 7.96% हिस्सा थे. अन्य अल्पसंख्यक (बौद्ध, ईसाई, आदि) मिलकर 1% से भी कम थे. बांग्लादेश की 165.16 मिलियन आबादी में से 91.08% मुसलमान थे.

बांग्लादेश के 8 डिवीजनों में जनसंख्या में हिंदुओं की हिस्सेदारी में भारी अंतर है. मैमनसिंह डिवीजन में ये 3.94% है, तो सिलहट में हिंदु आबादी का प्रतिशत 13.51 है. बांग्लादेश के 64 जिलों में से चार में हर पांचवां व्यक्ति हिंदू है. इन दोनों डिवीजन के अलावा, ढाका डिवीजन में गोपालगंज जिले में कुल आबादी का 26.94%, सिलहट डिवीजन में मौलवीबाजार जिले में 24.44%, रंगपुर डिवीजन में ठाकुरगांव जिले में 22.11% और खुलना डिवीजन में खुलना जिले में हिंदुओं की संख्या 20.75% है. 2022 की गणना के अनुसार, 13 जिलों में हिंदुओं की आबादी 15% से अधिक थी और 21 जिलों में 10% से अधिक थी.

1901 से लेकर अब तक बांग्लादेश में हिंदुओं की संख्या में लगातार गिरावट

1901 से लेकर अब तक की हर जनगणना में आज के बांग्लादेश की आबादी में हिंदुओं की हिस्सेदारी में गिरावट देखी गई है. यह गिरावट 1941 और 1974 की जनगणनाओं के बीच सबसे ज़्यादा थी, यानी जब बांग्लादेश पूर्वी पाकिस्तान था. 1951 की जनगणना में पिछली (1941) गणना की तुलना में हिंदुओं की कुल संख्या में उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की गई थी, जो करीब 11.8 मिलियन से लगभग 9.2 मिलियन तक पहुंच गया था. 2001 की जनगणना में ये संख्या धीरे-धीरे बढ़कर 11.8 मिलियन पर पहुंच गई.

वहीं, मुसलमानों की जनसंख्या 1941 में लगभग 29.5 मिलियन से बढ़कर 2001 में 110.4 मिलियन हो गई. जनसंख्या में मुसलमानों के अनुपात में जिस हिसाब से बढ़ोतरी हुई है, उसी हिसाब से हिंदुओं की संख्या में गिरावट भी हुई है. 1901 में मुसलमानों की संख्या 66.1% थी, जो आज 91% से अधिक है. 

हिंदुओं की संख्या में गिरावट और मुस्लिमों की संख्या में बढ़ोतरी के कई कारण हैं, जिनमें से कुछ विभाजन से भी पहले के हैं...

अनुमान के अनुसार, बंगाल में मुसलमानों की प्रजनन दर ऐतिहासिक रूप से हिंदुओं की तुलना में अधिक रही है. भारत की पहली जनगणना (1872) के बाद के आंकड़े इस परिकल्पना का समर्थन करते हैं, जो मुख्य रूप से हिंदू बहुल पश्चिम बंगाल और मुस्लिम बहुल पूर्वी बंगाल के बीच तुलना पर आधारित है.

अमेरिकी मानवविज्ञानी डेविड मैंडेलबाम ने तर्क दिया कि बंगाल में भिन्न प्रजनन दरों पर धर्म का प्रभाव अप्रत्यक्ष था और मुख्य रूप से शैक्षिक और आर्थिक कारकों के माध्यम से कार्य करता था. बंगाल भर में मुसलमान निचले सामाजिक-आर्थिक तबके से थे और शिक्षा में पिछड़े थे, दोनों कारक उच्च प्रजनन दरों से जुड़े हैं. 

ये प्रवृत्ति विभाजन के बाद भी जारी रही. मुसलमानों की कुल वैवाहिक प्रजनन दर (वैवाहिक प्रजनन क्षमता का एक आजीवन माप) प्रति महिला 7.6 बच्चे थी, जबकि हिंदुओं के लिए यह 5.6 थी. जैसा कि जनसांख्यिकीविद जे स्टोकेल और एमए चौधरी ने अपने 1969 के रिसर्च पेपर 'डिफरेंशियल फर्टिलिटी इन ए रूरल एरिया ऑफ ईस्ट पाकिस्तान' में लिखा था, जो द मिलबैंक मेमोरियल फंड क्वार्टरली मैगजीन में पब्लिश हुआ था.

हालांकि दोनों समुदायों (हिंदुओं और मुसलमानों) में प्रजनन दर में गिरावट आई है, लेकिन 2014 में हिंदुओं की कुल प्रजनन दर प्रति महिला 1.9 बच्चे थी, जबकि मुसलमानों के लिए यह 2.3 थी, जैसा कि एम मोइनुद्दीन हैदर, मिज़ानुर रहमान और नाहिद कमाल ने अपने 2019 के रिसर्च पेपर 'बांग्लादेश में हिंदू जनसंख्या वृद्धि: एक जनसांख्यिकी पहेली' में लिखा है, जो जर्नल ऑफ रिलीजन एंड डेमोग्राफी में पब्लिश हुआ था.

विभाजन के बाद हिंसा का दर्द आज भी महूसस किया जा सकता है

बंगाल और पंजाब ब्रिटिश भारत के दो प्रांत थे, जिन्हें धर्म के आधार पर भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजित किया गया था. ये विभाजन बेतरतीब था. इसने हिंसा और आघात का एक ऐसा निशान छोड़ा जिसकी गूंज आज भी महसूस की जा सकती है.

इतिहासकार ज्ञानेश कुदैस्या ने लिखा है कि विभाजन के बाद 11.4 मिलियन हिंदू (अविभाजित बंगाल की हिंदू आबादी का 42%) पूर्वी बंगाल में रह गए. कुदैस्या ने लिखा कि 1947 में, केवल 3 लाख 44 हजार हिंदू शरणार्थी पश्चिम बंगाल में आए और पूर्वी पाकिस्तान के अल्पसंख्यकों में ये उम्मीद बनी रही कि वे वहां शांतिपूर्वक रह सकते हैं.

शरणार्थियों का आवागमन 1950 और 1960 के दशक में हुआ. हिंदुओं और मुसलमानों के बीच सामुदायिक संबंधों के आधार पर इसकी मात्रा अलग-अलग थी. जब बड़े दंगे नहीं हो रहे थे, तब भी बांग्लादेश में हिंदुओं को वह झेलना पड़ा जिसे विद्वान शेखर बंद्योपाध्याय और अनसुआ बसु रे चौधरी ने 'विभाजन की विशिष्ट परिस्थितियों के कारण होने वाली सांकेतिक हिंसा' कहा है. 

कुदैस्या ने लिखा कि 1948 में 7 लाख 86 हजार लोगों ने भारत में प्रवेश किया और 1949 में 2 लाख 13 हजार से अधिक बंगाली शरणार्थी सीमा पार कर पश्चिम बंगाल में आ गए. अनुमान है कि 1950 में 15 लाख 75 हजार लोगों ने पूर्वी बंगाल छोड़ा. 1951 में 1 लाख 87 हजार, 1952 में 2 लाख, 1953 में 76 हजार लोग भारत आए. इसके बाद 1954 में 1 लाख 18 हजार और 1955 में 2 लाख 40 हजार लोग भार आए. 1955 में, जब पाकिस्तान ने एक 'इस्लामिक' संविधान अपनाया, तो आने वाले शरणार्थियों की संख्या फिर से 3 लाख 20 हजार हो गई. विस्थापन की ये प्रक्रिया 1960 के दशक में जारी रही.

असम (वर्तमान मेघालय, नागालैंड और मिजोरम समेत), पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा में 1951 से लेकर 1961 के बीच जनसंख्या में अभूतपूर्व वृद्धि दर्ज की गई, जिसका श्रेय विद्वान पूरी तरह से पूर्वी पाकिस्तान से आए शरणार्थियों को देते हैं. 1971 में पलायन की एक और लहर चली, जब पाकिस्तानी सेना और उसके सहयोगियों ने मुक्ति संग्राम से पहले बंगालियों के खिलाफ जानलेवा अभियान चलाया. भारतीय अनुमानों के अनुसार, संघर्ष के दौरान लगभग 9.7 मिलियन बंगालियों ने भारत में शरण ली, जिनमें से लगभग 70% हिंदू थे.