एक वार रिपोर्टर की डायरी…18-20 साल की बाली उमर होती है थोड़ी जिद, थोड़ी बगावत, थोड़ी हकीकत और ज्यादा ख्वाब देखने की. आंखों में दुनिया जीत लेने का सपना और दिल में प्यार मोहब्बत की कोपलें, ये सब कुछ इसी उम्र की पहचान है. ये सब मैं तब तक सोचता था, जब अपने वतन में था यानी हिंदुस्तान में था. हिंदुस्तान में रहकर हम ऐसा शायद इसलिए सोच पाते हैं क्योंकि हमारी सीमाएं महफूज हैं सरकार की नीतियों और फौज़ की निगहबानी से. लेकिन इजरायल गया और वहां जो कुछ भी देखा उसके बाद मेरा ये ख्याल बदल गया. यहां बाली उम्र में मनमर्जी कम और जिम्मेदारी ज्यादा थी. कंधों पर वतन की जिम्मेदारी. अपनी मातृभूमि की जिम्मेदारी, जिसके आगे ना प्यार मोहब्बत की रंगीन कहानी थी और ना ही जिंदगी के हसीन सपने. जो था सब इजरायल की हिफाजत के लिए था. उस इजरायल के लिए जिस पर 7 अक्टूबर को हमास ने ऐसा हमला किया जिसकी टीस वो कभी नहीं भूल पाएगा.
बाली उम्र में प्यार को सलाम करने की जगह वतन के लिए कुर्बान होने के जज्बे की मेरी ये कहानी शुरू होती है तालिया से. तालिया की उम्र यही अधिक से अधिक कोई 20 साल रही होगी. बेहद हसीन और दिलकश. फिल्मी हीरोइन माफिक. उस दिन मैं इंडिया डेली लाइव के वॉर रिपोर्टर की जगह बॉलीवुड का डायरेक्टर होता तो उसे फिल्म का ऑफर दे देता. तालिया से मेरी मुलाकात इजरायल के शहर सिदरौत के एक चेक पाइंट पर हो गई. फौजी वर्दी में वो मेरा रास्ता रोकने के लिए खड़ी थी. मैं सिदरौत से आगे जाना चाहता था लेकिन उसके पांव वहां अंगद की तरह जमे थे. वो किसी कीमत पर मुझे आगे जाने देने के लिए तैयार नहीं थी. और पीछे लौटना मुझे मंजूर नहीं था.
काम का जुनून कई बार आपका डर कम कर देता है. आप नए रास्ते तलाशने लगते हैं कि मंजिल तक किसी भी हाल में पहुंच ही जाएं. मैं तालिया को पार पाने की जुगत सोचने लगा. सोचा मेलजोल बढ़ाकर देखता हूं. बात करता हूं कि क्या पता उसका दिल पसीज जाए. मैंने उससे पूछा आर्मी कब ज्वाइन की. उसका जवाब सुनकर मैं एक पल को सन्न रह गया. उसने कहा – आई हैव जस्ट फिनिश्ड माई स्कूल... आई एम ऑन नेशनल ड्यूटी. मुझे याद आया कि इजरायल में हर किसी को फौजी ट्रेनिंग लेनी जरूरी होती है. तालिया भी स्कूल से पास आउट हुई थी और कॉलेज जाने से पहले देश की हिफाजत का काम सीखना था, इसलिए वो फौज में बस थोड़े दिनों पहले ही भर्ती हुई थी. इतने में हमास ने हमला कर दिया था. सिदरौत उस हमले में छलनी हो गया था.
सिदरौत दक्षिणी इजरायल का एक बेहद खूबसूरत शहर है... लोगों ने बताया कि पहले आते तो शहर का कोना कोना गुलजार मिलता. लेकिन अब तो ऐसा लग रहा था जैसे इस शहर को किसी काले नाग ने डस लिया हो. हर कोने में मुर्दानगी छाई हुई थी. लगभग पूरा शहर खाली हो चुका था. अपनों की तलाश में अपलक रास्ता निहार रहा था. सन्नाटे में सना सिदरौत सिसकियां ले रहा था.
7 अक्टूबर को हमास के लड़ाके इस शहर में घुसे थे तो उन्होंने सिदरौत के उसी पुलिस स्टेशन पर ग्रेनेड से हमला किया था जिसके आगे चेक पाइंट पर तालिया ड्यूटी दे रही थी. उसके चेहरे पर अगले हमले का ना तो किसी किस्म का डर था और ना ही कोई गम. मैंने उसके घर-परिवार के बारे में पूछना चाहा तो उसने मना कर दिया. कहा - टॉक टू मी ओनली अबाउट मी एंड माई कंट्री. मैंने तमाम कोशिशें कर लीं लेकिन मैं तालिया को पार नहीं पा सका. उसकी ड्यूटी के आगे मुझे अपनी ड्यूटी का रूट बदलना पड़ गया. मैं सोचता रहा इजरायल में ऐसी ना जाने कितनी तालिया होंगी, जो खेलने-कूदने की उम्र में देश के लिए बंदूक उठाकर इसी तरह दुश्मन के सामने चट्टान की तरह खड़ी होंगी. मेरी इस सोच को बल मिला जब आगे हमारी मुलाकात लावी से हुई.
लावी 32 साल का एक नौजवान था. लावी ने हमें बताया कि वो एक एमएनसी में काम करता है. लेकिन उसने अपनी कंपनी का नाम बताने से इनकार कर दिया. बोला उसे रहने दीजिए, बस ये कह सकता हूं कि मैं काफी अच्छे जगह से मैने पढ़ाई की है और अपनी कंपनी में सेल्स हेड हूं. उसका परिचय देखकर हम अचरज में पड़ गए क्योंकि उसने भी एके -47 थाम रखी थी. मैंने हैरानी जताते हुए पूछा कि काम-धाम छोड़कर ये बंदूक क्यों? तो लावी का जवाब किसी भी देश के लिए गर्व की बात हो सकती है. लावी बोला - इस समय मेरा देश इजरायल संकट में है इसलिए सभी प्राइवेट दफ्तर बंद है. हमें देश बचाना है. उसकी इज्जत देखनी है, उसका मान देखना है, काम तो मैं बाद में भी कर लूंगा. देशभक्ति की उसकी भावना मेरे दिल की छू गई. वो आजकल बाकी इजरायली फौजियों की तरह एके-47 लेकर नियत की गई जगह पर ड्यूटी कर रहा था. मैंने उससे बार-बार आगे जाने की रिक्वेस्ट की. लेकिन वो भी माना नहीं.
सिदरौत में चारो तरफ सन्नाटा पसरा था इसलिए कहीं कुछ भी खाने-पीने का सामान मिल पाए, ये सोचा भी नहीं जा सकता था. सोचना बेवकूफी होती. इसलिए जो भी चना चबैना हम अपने साथ लेकर चले थे वो सहारा था, लेकिन पानी कम पड़ गया था. लावी दिलदार था. उसने जाने भले ही नहीं दिया लेकिन हमारे लिए कोल्ड ड्रिंक और चिप्स अपने बैग से निकाले और बोला – प्लीज हैव इट, यू आऱ थर्स्टी. वतन के लिए फर्ज निभाते एक इजरायली के आतिथ्य का मैं कायल हो गया. फिर सोचने लगा आखिर इजरायल के अंदर का फाइटर स्प्रिट आता कहां से है? जवाब तालिया और लावी थे.
जमीन पर लकीर खिंचती है तो सरहद बन जाती हैं. एक मुल्क जमीन के दो टुकड़े बन जाते हैं. उनकी सीमाओं पर सफेद गुलाब कभी नहीं खिलता. हां, खून के छींटे और लाशें जरूर दिखती हैं. इजरायल और फिलिस्तीन की सीमा पर आजकल यही हो रहा है. तालिया और लावी की ट्रेनिंग और ड्यूटी का बस एक ही मकसद रहा होगा. गोलियों और रॉकेट से बहने वाला खून और जमीन पर पड़ी लाशें किसी इजरायली की नहीं हो. तालिया और लावी जैसे योद्धाओं की जरूरत सिर्फ इजरायल को नहीं बल्कि उन सभी मुल्कों को है, जिसकी सीमाओं को नापाक नजरों से दुश्मन देखते हैं. हमारा हिंदुस्तान अपवाद थोड़े ही है. मैं उसी हिंदुस्तान की मिट्टी की सौंधी खुशबू पाने आज वतन लौट रहा हूं. अपनी जमीन पर कदम रखने से पहले बस इतना ही कहना चाहता हूं - जंग कभी जायज नहीं होती.