क्या आपको पता हैं कि असेंबली में बैठने की व्यवस्था ने एक ऐसी विचारधारा को जन्म दिया जिसने पूरे विश्व को प्रभावित किया. लोगों में आपसी समानता और लंबे समय से चली आ रही पुरानी विचारधारा में बदलाव जैसे मुद्दे ने एक विचारधारा का रूप ले लिया. जिसे आज के समय में वामपंथ के रूप में जाना जाता है. इस विचारधारा का इतिहास बहुत रोचक है. शायद यहीं से दक्षिणपंथ बनाम वामपंथ की बहस भी शुरू हो गई थी जो आज तक दुनिया के कई सारे देशों में जारी है.
साल 1789 में फ्रांस की नेशनल असेंबली में संविधान को तैयार करने के लिए दो तरह के लोग इकठ्ठा हुए. पहले तरह के लोगों में राजा के सगे संबंधी, मंत्री और उच्च वर्ग के लोग शामिल थी. वहीं, दूसरी तरफ समाज के निम्न वर्ग जैसे मजदूर और किसान वर्ग से आने वाले लोग या उनके समर्थक थे. राजा की दाईं तरफ उच्च वर्ग वाले लोग और बाईं तरफ निम्न वर्ग वाले लोग बैठते थे. समय के साथ बैठने की यह व्यवस्था एक विचारधारा में बदल गई.
आज के समय में दो धड़ों में बंटी राजनीति भी इन्हीं विचारधाराओं पर चलती है. भारत के अलावा दुनिया के कई देशों में इन दोनों शब्दों का इस्तेमाल राजनीति के साथ जोड़ा जाने लगा है. पहले समूह के लोग चाहते थे कि पहले से चली आ रही राजशाही व्यवस्था बनी रहे. वहीं, दूसरी तरफ बैठने वाले कथित निम्न वर्ग के लोग पुरानी राजशाही व्यवस्था में बदलाव चाहते थे. उनका कहना था कि समाज मे चली आ रही पुरानी परंपराओं को तोड़ा जाए, सभी को समाज के विकास मे समान भागीदारी मिले.
फ्रांस में जन्मी इस विचारधारा ने 18वीं सदी तक दुनिया की राजनिति में अपनी जगह बना ली. हालांकि, 20वीं सदी में इसका प्रयोग ज्यादा होने लगा. यह सोच अब राजनीति के रंग में रंग गई है. दोनों विंग की सोच अलग-अलग है. दोनो के अपने अलग तर्क हैं, चलिए एक-एक करके दोनों को समझते हैं.
इस विचारधारा के लोग स्वतंत्रता, समानता, प्रगति और सुधार जैसे विचारों की बात करते हैं. कुछ राजनीतिक जानकारों के अनुसार ये लोग समाज में समानता, धर्म और राज्य का पृथक्करण, केंद्रीय योजना में सरकारी हस्तक्षेप बढ़ाने करने की वकालत करते हैं. इसके अलावा, ममलैंगिक विवाह और गर्भपात जैसे मामलों में प्रगतिशील विचार रखते हैं.
इस विचारधारा के लोग रूढ़िवादी सोच के होते हैं और पुराने समय से चली आ रही परंपराओं का समर्थन करते हैं. ये लोग जीवन और अर्थव्यवस्था में सरकार की कम भूमिका, धर्म को बचाने, इसके लिए समर्थन जुटाने और राष्ट्रवाद जैसे विचारों को समर्थन करते हैं. इसके अलावा, इस विचारधारा के लोग समलैंगिंक विवाह और गर्भपात जैंसे मामलों में पारंपरिक सोच का समर्थन करते हैं.
अगर भारत की बात करें भारत में अभी तक ऐसी कोई पार्टी नहीं जो पूरी तरह से वामपंथी है या पूरी तरह से दक्षिण पंथी है क्योंकि भारत की सभी पार्टियो में दोनों विचारधाराओं की झलक मिलती है.