राजनीतिक विरोध और पारिवारिक दूरियों के लंबे दौर के बाद ठाकरे परिवार के दो अहम चेहरे—उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे—अब फिर से एक मंच पर साथ दिखाई दिए. यह दृश्य सिर्फ एक राजनीतिक कार्यक्रम नहीं था, बल्कि महाराष्ट्र की राजनीति में एक बड़ा संकेत था कि बदलते समीकरण नई दिशा ले सकते हैं. दोनों नेताओं ने हिंदी भाषा थोपने के खिलाफ आयोजित विजय रैली में मराठी अस्मिता को केंद्र में रखकर भाषण दिए और संकेत दिए कि आगामी चुनावों में साथ आने की संभावना बन सकती है.
मुंबई के वर्ली स्थित NSCI डोम में आयोजित रैली में उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे ने एक मंच से संबोधन दिया. यह रैली राज्य सरकार द्वारा हिंदी भाषा थोपे जाने के विरोध और उससे जुड़ी सरकारी आदेश की वापसी पर जश्न के रूप में रखी गई थी. उद्धव ठाकरे ने मंच से कहा, "हम अब साथ आए हैं, तो साथ रहेंगे. हम मिलकर मुंबई महापालिका और महाराष्ट्र की सत्ता हासिल करेंगे." इससे साफ संकेत मिला कि दोनों भाई मिलकर चुनावी मैदान में उतरने पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं.
रैली में उद्धव गुट के वरिष्ठ नेता संजय राउत ने कहा कि जनता चाहती है कि दोनों ठाकरे भाई एक साथ आएं और अब राजनीति भी साथ हो सकती है. जब उनसे पूछा गया कि क्या दोनों दल एक साथ चुनाव लड़ेंगे, तो उन्होंने जवाब दिया कि स्थानीय चुनाव अलग होते हैं और उसमें स्थानीय स्तर पर अलग रणनीति अपनाई जाती है. हालांकि उन्होंने स्पष्ट किया कि उद्धव गुट अब भी इंडिया गठबंधन का हिस्सा है, लेकिन उन्होंने नगर निगम चुनावों में अलग गठबंधन की संभावना से इनकार नहीं किया.
राज ठाकरे ने अपने भाषण में केंद्र और राज्य सरकार पर जमकर निशाना साधा. उन्होंने मुख्यमंत्री फडणवीस पर तंज कसते हुए कहा, "फडणवीस ने वह कर दिखाया जो बालासाहेब भी नहीं कर पाए हम दोनों भाइयों को एक साथ ला दिया." उन्होंने केंद्र की तीन भाषा नीति को महाराष्ट्र को कमजोर करने की साजिश बताया और कहा कि भाजपा की रणनीति 'फूट डालो और राज करो' जैसी है.0 उन्होंने यह भी कहा कि भाषा के बाद अगला मुद्दा जाति का बनेगा, जिससे समाज में और अधिक विभाजन पैदा होगा.
गौरतलब है कि 2022 में एकनाथ शिंदे की बगावत ने शिवसेना को दो गुटों में बांट दिया था. तब उद्धव गुट को 20 और शिंदे गुट को 57 विधानसभा सीटें मिली थीं, जबकि राज ठाकरे की MNS एक भी सीट नहीं जीत पाई थी. अब जब बृहन्मुंबई महानगरपालिका और अन्य नगर निकाय चुनाव करीब हैं, ठाकरे बंधुओं का एक मंच पर आना मराठी राजनीति में नई हलचल पैदा कर रहा है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर दोनों दल एकजुट होकर चुनाव लड़ते हैं तो यह राज्य की सत्ता के समीकरणों को पूरी तरह बदल सकता है.