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सोनिया गांधी से लेकर राहुल और पीएम नरेंद्र मोदी तक... प्रणब मुखर्जी पर लिखी किताब में क्या-क्या?

शर्मिष्ठा मुखर्जी ने अपनी किताब में लिखा है कि प्रणब मुखर्जी को पता था कि वे कभी पीएम नहीं बनेंगे. 1984 में जब इंदिरा गांधी की हत्या की गई तो पहली बार प्रधानमंत्री पद के लिए प्रणब मुखर्जी का नाम सामने आया. 

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Om Pratap

हाइलाइट्स

  • गांधी परिवार और प्रणब दा के बीच रिश्तों के बारे में भी बताती है किताब
  • राष्ट्रपति पद से हटने के बाद भी पॉलिटिकली एक्टिव रहे थे प्रणब मुखर्जी

Pranab, My Father: A Daughter Remembers Sharmistha Mukherjee Book: पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी पर लिखी गई एक किताब की इन दिनों चर्चा है. किताब में सोनिया गांधी के साथ नाजुक और अक्सर उतार-चढ़ाव भरे कामकाजी रिश्तों, राहुल गांधी की राजनीतिक क्षमताओं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा से जुड़ी बातों का जिक्र किया गया है. किताब में कई अन्य अनछुए पहलुओं की भी चर्चा की गई है. 'प्रणब, माई फादर: ए डॉटर रिमेम्बर्स' नाम की इस किताब को उनकी बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी ने लिखी है. 

'प्रणब, माई फादर: ए डॉटर रिमेम्बर्स' किताब शर्मिष्ठा मुखर्जी और प्रणब मुखर्जी की बातचीत और पूर्व राष्ट्रपति की डायरी पर आधारित है. ये किताब प्रणब मुखर्जी के विशाल राजनीतिक करियर को दिखाती है. बता दें कि प्रणब मुखर्जी का राजनीतिक करियर 1950 के दशक में बंगाल विधायक के रूप में शुरू हुआ और राष्ट्रपति भवन में उनके कार्यकाल के साथ समाप्त हुआ.

राष्ट्रपति पद से हटने के बाद भी पॉलिटिकली एक्टिव रहे थे प्रणब मुखर्जी

शर्मिष्ठा लिखती हैं कि प्रणब मुखर्जी 2017 में राष्ट्रपति पद से हटने के बाद भी तीन साल बाद अपनी मृत्यु तक राजनीतिक रूप से सक्रिय रहे. किताब में कहा गया है कि प्रणब मुखर्जी को पता था कि वे कभी पीएम नहीं बनेंगे. 1984 में जब इंदिरा गांधी की हत्या की गई तो पहली बार प्रधानमंत्री पद के लिए प्रणब मुखर्जी का नाम सामने आया. 

शर्मिठा मुखर्जी ने अपने पिता की डायरी का हवाला देते हुए लिखा है कि ये कांग्रेस नेता गनी खान चौधरी ही थे, जिन्होंने कैबिनेट के सबसे सीनियर मेंबर्स के रूप में पीवी नरसिम्हा राव या प्रणब मुखर्जी के नाम का प्रस्ताव रखा था. किताब के अनुसार, प्रणब मुखर्जी ने स्पष्ट रूप से कहा कि अगर राजीव गांधी जैसा गैर-कैबिनेट सदस्य प्रधानमंत्री बनता है तो न तो उन्हें और न ही किसी और को कोई समस्या है. राजीव ने फिर पूछा कि क्या आपको लगता है कि मैं इस जिम्मेदारी को निभा सकता हूं? प्रणब ने जवाब दिया, 'हां, आप कर सकते हैं इसके अलावा, हम सब आपकी मदद के लिए मौजूद हैं। 

गांधी परिवार और प्रणब दा के बीच रिश्तों के बारे में भी बताती है किताब

शर्मिठा मुखर्जी की किताब में गांधी परिवार और प्रणब मुखर्जी के बीच सौहार्दपूर्ण लेकिन हमेशा दिलचस्प संबंधों के बारे में भी लिखा गया है. शर्मिष्ठा ने लिखा है कि राजीव गांधी के साथ काम करने के शुरुआती दिनों के दौरान उनका गैर-अधीन रवैया इस बात को आगे बढ़ाने के लिए पर्याप्त हो सकता है. व्यक्तित्व-केंद्रित राजनीतिक संस्कृति में, सर्वोच्च नेताओं के साथ काम करना थोड़ा थका देने वाला हो सकता है, ऐसे लोग जिनके पास ज्ञान, अनुभव और विशेषज्ञता के जबरदस्त संयोजन द्वारा समर्थित एक मजबूत दिमाग है. ऐसा व्यक्ति कभी भी आंख मूंद कर अपनी बात नहीं मानेगा. प्रणब के अपने विश्लेषण के अनुसार, यह उनके और राजीव-सोनिया के बीच 'अविश्वास' का आधार था और मैं उनसे सहमत हूं.

किताब में बताया गया है कि कैसे प्रणब मुखर्जी 2002 में उपराष्ट्रपति पद के लिए नॉमिनेट होना चाहते थे, लेकिन वाम दलों के साथ-साथ सोनिया गांधी ने भी उन्हें अस्वीकार कर दिया था. किताब में डायरी के एक पेज का उल्लेख करते हुए शर्मिष्ठा ने लिखा- कम्युनिस्टों ने मेरी उम्मीदवारी पर वीटो कर दिया… मुझे बुरा लग रहा है. वह (सोनिया गांधी) कम्युनिस्टों के असली चरित्र को तब समझ पाएंगी जब वे उन्हें गर्म आलू की तरह छोड़ देंगे.

नरसिम्हा राव का पार्थिव शरीर पार्टी कार्यालय में रखने से किसने किया था इनकार?

किताब में कहा गया है कि प्रणब मुखर्जी 2004 में नरसिम्हा राव की मृत्यु के बाद सोनिया गांधी की ओर से उनके साथ किए गए व्यवहार से भी नाखुश थे. कांग्रेस की ओर से नरसिम्हा राव के पार्थिव शरीर को लोगों के अंतिम दर्शन के लिए पार्टी कार्यालय में रखने से इनकार करने से उन्हें दुख पहुंचा. प्रणब मुखर्जी ने व्यक्तिगत रूप से सोनिया गांधी के पार्टी कार्यालय का दरवाजा खोलने का आग्रह किया, लेकिन सोनिया गांधी चुप रहीं और अपने फैसले पर अडिग रहीं. ये एक ऐसा कदम था जिसके लिए प्रणब कभी भी सोनिया को माफ नहीं कर सके. उन्होंने मुझसे बार-बार कहा कि सोनिया और उनके बच्चों की ओर  से एक पूर्व प्रधानमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष के पार्थिव शरीर को कांग्रेस मुख्यालय के अंदर रखने से इनकार करना अपमानजनक था.

किताब में लिखा गया है कि पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 2004 में प्रधानमंत्री पद को अस्वीकार करने के सोनिया गांधी के फैसले से बहुत प्रभावित थे, लेकिन उनके साथ किए गए व्यवहार से उन्हें निराशा महसूस हुई. उन्होंने मुझसे मंत्रालय के बारे में मेरी प्राथमिकता पूछी. उन्होंने कहा कि वे पहले मुझे जगह देंगी और फिर दूसरों को. किताब में कहा गया है कि बाद में प्रणब मुखर्जी तब हतप्रभ रह गए, जब शपथ ग्रहण समारोह में उन्हें बताया गया कि वे रक्षा मंत्री होंगे. 2004 और 2012 के बीच, उन्होंने 'कम से कम एक दर्जन' बार अपने इस्तीफे की पेशकश की. 

प्रणब दा ने महसूस किया था- राहुल गांधी परिपक्व नहीं हुए हैं

प्रणब मुखर्जी ने ये भी महसूस किया कि राहुल गांधी अभी राजनीतिक रूप से परिपक्व नहीं हुए हैं. अपनी डायरी में, उन्होंने 2013 के एक विशेष प्रकरण के बारे में लिखा जब राहुल गांधी ने एक अध्यादेश को फाड़ दिया था, जिसमें आपराधिक मामलों में दोषी ठहराए गए सांसदों को बचाने का प्रयास किया गया था. राहुल गांधी में राजनीतिक कौशल के बिना अपने गांधी-नेहरू वंश का पूरा अहंकार है. पार्टी के उपाध्यक्ष ने सार्वजनिक रूप से अपनी ही सरकार के प्रति ऐसा तिरस्कार दिखाया था. लोगों को आपको फिर से वोट क्यों देना चाहिए? किताब में लिखा गया है कि अध्यादेश फाड़ने वाली घटना 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के ताबूत में आखिरी कील साबित हुई.

किताब में ये भी लिखा है कि पीएम मोदी की प्रणब मुखर्जी इसलिए प्रशंसा करते थे, क्योंकि वे (नरेंद्र मोदी) प्रणब मुखर्जी से राजनीतिक सलाह लेने से हिचकिचाते नहीं थे और नरेंद्र मोदी की राजनीतिक और नेतृत्व तक पहुंच से भी प्रणब मुखर्जी खुश थे. 23 अक्टूबर 2014 को प्रणब मुखर्जी ने अपनी डायरी में लिखा- सियाचिन में जवानों और श्रीनगर में बाढ़ प्रभावित लोगों के साथ दिवाली मनाने का पीएम का फैसला उनकी राजनीतिक समझ को दर्शाता है, जो इंदिरा गांधी को छोड़कर किसी अन्य पीएम में दिखाई नहीं देती थी।

बता दें कि प्रणब मुखर्जी भारत के वित्त, विदेश, रक्षा मंत्री भी रहे थे. भारत के 13वें राष्ट्रपति के रूप में उन्होंने 2012 से 2017 तक इस पद पर थे. 84 साल की उम्र में प्रणब मुखर्जी का 31 अगस्त, 2020 को निधन हो गया था. वहीं, उनकी बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी ने 2021 में राजनीति छोड़ दी थी. उनकी किताब 'प्रणब, माई फादर: ए डॉटर रिमेम्बर्स ' का लोकार्पण 11 दिसंबर को होगा.  

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