Partition of India: भारत के इतिहास में 1947 का विभाजन एक ऐसी घटना है, जिसने न केवल भौगोलिक सीमाओं को फिर से परिभाषित किया, बल्कि लाखों लोगों के जीवन को भी प्रभावित किया. 'विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस' के मौके पर, राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) ने स्कूलों के लिए एक विशेष शैक्षिक मॉड्यूल पेश किया है. यह मॉड्यूल भारत के विभाजन के कारणों, प्रभावों और उसकी जटिलताओं को समझाने के लिए तैयार किया गया है.
एनसीईआरटी का यह मॉड्यूल कक्षा 6-8 और 9-12 के लिए अलग-अलग तैयार किया गया है, जो नियमित पाठ्यपुस्तकों के पूरक के रूप में काम करता है. मॉड्यूल में कहा गया है, "15 अगस्त 1947 को भारत का विभाजन हो गया. लेकिन यह किसी एक व्यक्ति का काम नहीं था. भारत के विभाजन के लिए तीन तत्व जिम्मेदार थे: जिन्ना, जिन्होंने इसकी मांग की; दूसरे, कांग्रेस, जिसने इसे स्वीकार किया; और तीसरे, माउंटबेटन, जिन्होंने इसे लागू किया." यह मॉड्यूल विभाजन को एक जटिल ऐतिहासिक घटना के रूप में प्रस्तुत करता है, जिसमें कई पक्षों की भूमिका थी.
NCERT new modules blame Congress for partition, say leaders 'underestimated Jinnah' and failed to foresee horrors
— ANI Digital (@ani_digital) August 16, 2025
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माउंटबेटन की जल्दबाजी और रैडक्लिफ लाइन
मॉड्यूल में लॉर्ड माउंटबेटन की भूमिका पर विशेष ध्यान दिया गया है. इसमें बताया गया है कि माउंटबेटन ने सत्ता हस्तांतरण की तारीख को जून 1948 से पहले कर अगस्त 1947 कर दिया, जिसके कारण अपर्याप्त तैयारी के बीच विभाजन की प्रक्रिया को अंजाम दिया गया. सर सिरिल रैडक्लिफ को सीमा निर्धारण के लिए केवल पांच सप्ताह का समय दिया गया, जिसके परिणामस्वरूप पंजाब और बंगाल में भारी भ्रम की स्थिति पैदा हुई. मॉड्यूल में इसे "जल्दबाजी भरा दृष्टिकोण" और "लापरवाही का गंभीर उदाहरण" बताया गया है, जिसने व्यापक अराजकता को जन्म दिया.
जिन्ना का लाहौर प्रस्ताव और अंग्रेजों की भूमिका
मॉड्यूल में 1940 के लाहौर प्रस्ताव का उल्लेख है, जिसमें मोहम्मद अली जिन्ना ने हिंदू और मुसलमानों को "दो अलग-अलग गांवों, दर्शन, सामाजिक रीति-रिवाजों और साहित्य" से संबंधित बताया था. यह भी उल्लेख किया गया है कि अंग्रेजों ने शुरू में डोमिनियन स्टेटस का प्रस्ताव रखा था, जिसे कांग्रेस ने अस्वीकार कर दिया. यह दृष्टिकोण विभाजन के लिए ऐतिहासिक और सामाजिक कारकों को समझने में मदद करता है.
इन्हे ठहराया जिम्मेदार
मॉड्यूल में कांग्रेस नेताओं- महात्मा गांधी, सरदार वल्लभभाई पटेल और जवाहरलाल नेहरू के अलग-अलग दृष्टिकोणों को बताया गया है. सरदार पटेल ने विभाजन को गृहयुद्ध से बचने के लिए आवश्यक माना, जबकि गांधीजी ने इसका विरोध किया, लेकिन हिंसक तरीकों से कांग्रेस के फैसले को रोकने के लिए तैयार नहीं थे. मॉड्यूल में गांधीजी के हवाले से कहा गया है, "वे विभाजन में भागीदार नहीं हो सकते, लेकिन कांग्रेस को हिंसक तरीकों से इसे स्वीकार करने से नहीं रोकेंगे." अंततः, 14 जून 1947 को गांधीजी ने कांग्रेस कार्यसमिति को विभाजन के लिए सहमत होने के लिए राजी किया.
विभाजन की मानवीय त्रासदी
मॉड्यूल के मुताबिक, भारत का विभाजन मानव इतिहास का सबसे बड़ा विस्थापन था, जिसमें 6 लाख से अधिक लोग सांप्रदायिक हिंसा में मारे गए. लाखों लोग बेघर हो गए, और महिलाओं को अकल्पनीय अत्याचारों का सामना करना पड़ा. मॉड्यूल इस बात पर जोर देता है कि यह कोई प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि मानव निर्मित त्रासदी थी, जिसके प्रभाव आज भी कश्मीर जैसे मुद्दों में दिखाई देते हैं.
कांग्रेस नेताओं का विरोध
कांग्रेस ने इस मॉड्यूल के कंटेंट की कड़ी आलोचना की है. पार्टी प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कहा, "इस दस्तावेज़ को जला दो क्योंकि यह सच नहीं बताता." उन्होंने यह भी कहा, "इस किताब को आग लग गई अगर इसमें हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग के संत का जिक्र नहीं है." यह विवाद मॉड्यूल के दृष्टिकोण और ऐतिहासिक व्याख्या पर गहरे मतभेद को दर्शाता है.