Muharram: मुहर्रम का महीना इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना होता है, लेकिन मुस्लिम समाज के लिए यह खुशी का नहीं बल्कि ग़म और मातम का महीना है. इसकी वजह है करबला की वो ऐतिहासिक जंग, जिसमें पैगंबर मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों ने यज़ीद की ज़ालिम हुकूमत के खिलाफ हक और इंसाफ के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी.
10 मुहर्रम, जिसे ‘यौमे आशूरा’ कहा जाता है, उसी दिन की याद में मातम किया जाता है. इराक के करबला में हुई इस जंग में इमाम हुसैन और उनके साथियों ने प्यास, भूख और ज़ुल्म के बावजूद सर झुकाने से इनकार किया और इस्लाम की असल रूह को ज़िंदा रखा. आइए जानिए, उन 72 शहीदों की कुर्बानी की दास्तां.
करबला की जंग और पानी का संकट
- जंग हक (सच) और बातिल (झूठ) के बीच थी.
- यज़ीद ने फरात नदी से पानी बंद कर दिया था.
- तीन दिन तक इमाम हुसैन और उनके साथी बिना पानी के रहे.
- 10 मुहर्रम को हमला हुआ और एक-एक करके सब शहीद हो गए.
- इमाम हुसैन का 6 महीने का बेटा अली असगर भी शहीद हुआ.
कैसे हुई शहादत उन 72 शहीदों की?
- इमाम हुसैन इब्न अली – आख़िरी में मैदान में उतरे, शिमर ने सिर काटा, घोड़ों से शरीर कुचला गया.
- अली अकबर – इमाम के बड़े बेटे, सीने में भाले से वार, शक्ल पैगंबर जैसी थी.
- अली असगर – 6 महीने के, तीन मुंह के तीर से गोद में शहीद हुए.
- हज़रत अब्बास – पानी लाने निकले, हाथ कटे, तीरों से शहीद, वफ़ा के सरदार कहे जाते हैं.
- कासिम इब्न हसन – 13 साल के, घोड़ों के नीचे कुचले गए.
- मुस्लिम इब्न अकील – पहले शहीद, कूफा में धोखे से मारे गए.
- हबीब इब्न मजाहिर – बचपन के दोस्त, पहले हमले में शहीद.
- हुर इब्न यज़ीद – यजीद की फौज से इमाम के साथ आए, पश्चाताप में शहीद हुए.
- ज़ुहैर इब्न क़ैन – इमाम की नमाज में रक्षा करते हुए शहीद.
- बुरैर इब्न खुज़ैर – कुरान पढ़ते हुए जंग लड़ी और शहीद हुए.
- अन्य 62 शहीद – हर एक ने प्यास में भी हिम्मत नहीं हारी और शहादत दी.
मुहर्रम क्यों है यादों का महीना?
मुहर्रम सिर्फ एक महीने का नाम नहीं, बल्कि वो सबक है कि जब ज़ुल्म बढ़े, तो इंसाफ़ के लिए खड़े होना ही इमाम हुसैन की सच्ची याद है. ये महीना हमें बताता है कि सच्चाई के रास्ते पर चलने के लिए कितनी बड़ी कुर्बानी देनी पड़ती है.