आज पूरा देश कारगिल विजय दिवस मना रहा है. आज से 26 साल पहले कारगिल की पहाड़ियों में भारत और पाकिस्तान के बीच जंग हुई थी. इस जंग की शुरुआत तब हुई जब पाकिस्तानी सैनिकों ने कारगिल की ऊंची पहाड़ियों में घुसपैठ कर अपने ठिकाने बना लिए थे.
8 मई 1999 को पाकिस्तान की 6 नॉरदर्न लाइट इंफैंट्री के कैप्टन इफ्तेखार और लांस हवलदार अब्दुल हकीम अपने 12 सैनिकों के साथ कारगिल की आजम चौकी पर बैठे हुए थे, उन्होंने देखा कि कुछ भारतीय चरवाहे कुछ दूरी पर अपनी बेड़, बकरियों को चरा रहे थे.
पाकिस्तानी सैनिकों ने आपस में सलाह की कि क्या इन चरवाहों को बंदी बना लिया जाए? किसी ने सलाह दी कि अगर उन्हें बंदी बनाया गया तो वे उनका राशन खा जाएंगे जो खुद उनके लिए ही पर्याप्त नहीं है, इसलिए उन्होंने उन्हें वापस जाने दिया. करीब डेढ़ घंटे बाद ये चरवाहे भारतीय सेना के 6 से 7 जवानों के साथ वहां वापस लौटे.
भारतीय सैनिकों ने अपनी दूरबीनों से पूरे इलाके का मुआयना किया और फिर वहां से चले गए. करीब 2 बजे एक लामा हेलिकॉप्टर उड़ता हुआ वहां आया.
हेलिकॉप्टर इतना नीचे आ गया था कि कैप्टन इफ्तेखार को पायलट का बैज साफ नजर आ रहा था. यही वह पहला मौका था जब भारतीय सेना को भनक लगी कि कुछ पाकिस्तानी सैनिकों ने कारगिल की पहाड़ियों पर कब्जा कर लिया है.
कारगिल पर मशहूर किताब 'विटनेस टू ब्लंडर- कारगिल स्टोरी अनफोल्ड्स' लिखने वाले पाकिस्तानी सेना के रिटायर्ड कर्नल अशफाक हुसैन ने एक मीडिया चैनल को बताया, 'मेरी खुद कैप्टन इफ्तेखार से बात हुई है, उन्होंने मुझे बताया कि अगले दिन फिर भारतीय सेना के लामा हेलिकॉप्टर वहां पहुंचे और आजम, तारिक और तशफीन चौकियों पर जमकर गोलियां चलाईं.'
कैप्टन इफ्तेखार ने बटालियन मुख्यालय से भारतीय सेना के हेलिकॉप्टरों पर गोली चलाने की अनुमति मांगी लेकिन उन्हें ये अनुमति नहीं दी गई, क्योंकि उनका मानना था कि इससे भारत के लिए सरप्राइज एलिमेंट खत्म हो जाएगा.
भारत के हुक्मरानों को नहीं थी भनक
कभी इंडियन एक्सप्रेस में रक्षा मामलों के संवाददाता रहे जसवंत सिंह के बेटे मानवेंद्र सिंह 26 साल पहले की इस जंग की शुरुआत को याद करते हुए बताते हैं, 'मेरे एक मित्र उस समय सेना के मुख्यालय में काम किया करते थे, उन्होंने मुझे फोन करके बताया कि वे मुझसे मिलना चाहते हैं. मैं उनके घर पहुंचा तो उन्होंने मुझे बताया कि सीमा पर कुछ गड़बड़ है क्योंकि पूरी पलटन को हेलिकॉप्टर के माध्यम से किसी मुश्किल जगह पर भेजा गया है किसी घुसपैठ से निपटने के लिए. सुबह मैंने पापा को सुबह ये सारी बात बताई, उन्होंने तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस को फोन किया. अगले ही दिन वे रूस जाने वाले थे. उन्होंने अपनी यात्रा रद्द की और इस प्रकार सरकार को पहली बार घुसपैठ के बारे में पता चला.'
पाकिस्तान के लिए क्या था घुसपैठ का मकसद
इंडियन एक्सप्रेस के एसोसिएट एडिटर सुशांत सिंह ने बीबीसी को बताया कि इस घुसपैठ के पीछे पाकिस्तान का मकसद था कि भारत की सुदूर उत्तर की जो टिप है जहां पर सियाचिन ग्लेशियर की लाइफ लाइन एनएच 1 डी है को किसी तरह से काट कर उस पर कब्जा किया जाए. वो उन पहाड़ियों पर आना चाहते थे जहां से वो लद्दाख की ओर जाने वाले सैन्य रसद के काफिलों की आवाजाही को रोक सकें और भारत को मजबूर होकर सियाचिन छोड़ना पड़े.
सुशांत का मानना है कि मुशर्रफ इस बाद से बहुत आक्रोश में थे कि भारत ने 1984 में सियाचिन पर कब्जा कर लिया था. उस समय वो पाकिस्तान की कमांडो फोर्स में मेजर हुआ करते थे. उन्होंने कई बार इसे खाली कराने की कोशिश की लेकिन नाकाम रहे.
खुफिया एजेंसियों की नाकामी
सबसे हैरानी की बात ये है कि भारतीय खुफिया एजेंसियों को इस घुसपैठ की भनक तक नहीं थी.
पाकिस्तानियों का जबरदस्त प्लान
भारत इन हालातों से जिस तरह से निपटा उसको लेकर उसकी कई हल्कों में आलोचना हुई. पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल हरचरणजीत सिंह पनाग जो बाद में कारगिल में तैनात भी रहे, कहते हैं कि मैं कहूंगा कि ये पाकिस्तानियों का बहुत ही जबरदस्त प्लान था कि उन्होंने आगे बढकर खाली पड़ी जमीन के बहुत बड़े इलाके को कब्जा लिया था और वे लेह कारगिल सड़क पर पूरी तरह से हावी हो गए. यह उनकी बहुत बड़ी कामयाबी थी. उन्होंने बताया कि भारत के लिए ये काफी मुश्किल ऑपरेशन था क्योंकि एक तो हम पहाड़ियों में नीचे थे और वे ऊंचाई पर थे.
क्या कहा था जनरल मुशर्रफ ने
जनरल परवेज मुशर्रफ ने भी बार-बार इस बात को दोहराया था कि उनकी नजर में यह बहुत अच्छा प्लान था जिसने भारतीय सेना को मुश्किल में डाल दिया था.
तोलोलिंग पर कब्जे ने पलटी बाजी
जंग के पहले महीने में भारतीय सेना को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था, लेकिन बाद में जब 8वीं डिवीजन ने चार्ज लिया तो स्थिति नियंत्रण में आने लगी. भारतीय सेना को अहसास हो गया था कि उस इलाके में कैसे काम करना है.
जून का दूसरा हफ्ता खत्म होते ही स्थिति भारतीय सेना के नियंत्रण में आने लगी थी. जब उस समय भारतीय सेना के प्रमुख जनरल वेद प्रकाश मलिक से पूछा गया कि इस लड़ाई का निर्णायक मोड़ क्या था तो मलिक ने जवाब दिया कि तोलोलिंग की जीत.
ये जंग करीब 100 किमी के दायरे में लड़ी गई थी जहां करीब 1700 पाकिस्तानी सैनिक भारतीय सीमा के करीब 8-9 किमी के अंदर घुस आए थे . इस पूरे ऑपरेशन में भारत के 527 जवान मारे गए थे औऱ 1363 घायल हुए थे.
भारतीय वायु सेना और बोफोर्स तोपों ने बदला जंग का रुख
जंग की शुरुआत में भारत को अपने दो मिग विमान और हेलिकॉप्टर खोने पड़े थे लेकिन भारतीय वायु सेना और बोफोर्स तोपों ने बार-बार और बुरी तरह से पाकिस्तानी ठिकानों को निशाना बनाया. ये हमले इतने भयानक और सटीक थे कि इन्होंने पाकिस्तानी चौकियों को चकनाचूर कर दिया था.
कारगिल की लड़ाई में कमांडर रहे लेफ्टिनेंट जनरल मोहिंदर पुरी ने माना कि कारगिल की लड़ाई में भारतीय वायु सेना की सबसे बड़ी भूमिका मनोवैज्ञानिक थी. जैसे ही भारत के विमानों की आवाज सुनाई पड़ती, पाकिस्तानी सैनिक दहल जाते और इधर उधर भागने लगते थे. पाकिस्तान को हारता देख आखिरकार पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को युद्ध विराम के लिए अमेरिका की शरण में जाना पड़ा. अमेरिका के स्वतंत्रता दिवस यानी 4 जुलाई 1999 को शरीफ के अनुरोध पर अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन उनसे मिले.
क्लिंटन ने शरीफ से कहा कि अगर आप बिना शर्त अपने सैनिक हटाना नहीं चाहते तो यहां न आएं. अगर आप ऐसा नहीं करते तो मेरे पास एक बयान का मसौदा पहले से ही तैयार है जिसमें कारगिल संकट के लिए सिर्फ और सिर्फ पाकिस्तान को ही जिम्मेदार ठहराया जाएगा. यह सुनते ही नवाज शरीफ के चेहरे की हवाइयां उड़ गईं.
उस समय पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल के एक सदस्य तारिक फातिमी ने 'फ्रॉम कारगिल टू कू' किताब की लेखिका नसीम जेहरा को बताया कि जब शरीफ क्लिंटन से मिलकर बाहर निकले तो उनका चेहरा निचुड़ चुका था. उनकी बातों से लगा कि उनमें विरोध करने की हिम्मत नहीं बची थी. उधर शरीफ क्लिंटन से युद्ध विराम की बात कर रहे थे, इधर टीवी पर टाइगर हिल पर भारत के कब्जे की खबर फ्लैश हो रही थी. ब्रेक के दौरान शरीफ ने मुशर्रफ को फोन लगाकर पूछा कि क्या यह खबर सही है? मुशर्रफ ने मना नहीं किया.