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अब सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे जस्टिस यशवंत वर्मा, जांच को बताया गैरकानूनी

Justice Yashwant Varma Moves To SC: दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश यशवंत वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. उन्हें लगता है कि उनके खिलाफ जांच की प्रक्रिया अनुचित और गैरकानूनी थी.

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Edited By: Shilpa Srivastava
Justice Yashwant Varma Moves To SC

Justice Yashwant Varma Moves To SC: दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश यशवंत वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. उन्हें लगता है कि उनके खिलाफ जांच की प्रक्रिया अनुचित और गैरकानूनी थी. बता दें कि भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) ने स्पेशल तीन-सदस्यीय समिति चुनी थी जिन्होंने यशवंत वर्मा को उनके घर पर बेहिसाब नकदी रखने का दोषी पाया था. इस रिपोर्ट के आधार पर संसद के आगामी मानसून सत्र के दौरान उन्हें पद से हटाया जा सकता है.

सुप्रीम कोर्ट में अपनी शिकायत में, जस्टिस वर्मा ने कहा कि उन्होंने 11 वर्षों तक एक न्यायाधीश के रूप में ईमानदारी से काम किया है और समिति ने उन्हें अपना पक्ष रखने का मौका भी नहीं दिया. जांच समिति में पंजाब एवं हरियाणा, हिमाचल प्रदेश के मुख्य न्यायाधीश और कर्नाटक के एक वरिष्ठ न्यायाधीश शामिल थे. उनका मानना है कि उन्होंने जो प्रक्रिया अपनाई वह अनुचित थी.

जस्टिस वर्मा से कहा था इस्तीफा देने:

उस समय मुख्य न्यायाधीश, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना को रिपोर्ट सौंपी गई थी. इसमें कहा गया था कि वीडियो और विशेषज्ञों की राय समेत पुख्ता सबूतों से साबित होता है कि वर्मा के आधिकारिक आवास के एक स्टोररूम में नकदी मौजूद थी. इस रिपोर्ट देखने के बाद, मुख्य न्यायाधीश खन्ना ने न्यायमूर्ति वर्मा से इस्तीफा देने को कहा था. हालांकि, उन्होंने इनकार कर दिया था. इसलिए, मुख्य न्यायाधीश ने रिपोर्ट केंद्र सरकार को भेज दी और सिफारिश करते हुए कहा कि वो इस मामले को संसद में ले जाया जाए और फिर उन्हें हटाया जाए.

न्यायमूर्ति वर्मा ने यह भी तर्क दिया कि यह रिपोर्ट आंतरिक जांच पर आधारित है, इसलिए मुख्य न्यायाधीश को इसे सरकार को भेजने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है. यह मामला 14 मार्च की रात को शुरू हुआ, जब वर्मा के घर के एक गोदाम में आग लग गई. आग बुझाते समय, दमकलकर्मियों और पुलिस को 500 रुपये के नोटों से भरे अधजले बोरे मिले. 

इस वाक्ये की वीडियो बनाई गई लेकिन नकदी को जब्त नहीं किया गया. जस्टिस वर्मा का दावा है कि इससे पूरी स्थिति संदिग्ध हो जाती है और उनके खिलाफ मामला कमजोर पड़ जाता है.

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