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UP में क्यों हारी BJP? मंथन के बाद तैयार हुई रिपोर्ट, जान लीजिए कहां हो गई चूक

BJP in UP: उत्तर प्रदेश में लगातार दो लोकसभा चुनाव से सबसे ज्यादा सीट जीत रही बीजेपी दावा कर रही थी कि इस बार वह 80 सीटें जीतेगी. हालांकि, नतीजे आए तो बीजेपी को सबसे ज्यादा निराश उत्तर प्रदेश ने ही किया. इस बार बीजेपी को सिर्फ 33 सीटों पर जीत मिली और सपा से भी पीछे हो गई. अब बीजेपी हार के कारणों का पता लगाने में जुटी हुई है.

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Edited By: India Daily Live
CM YOGI AND PM MODI

देश में 18वीं लोकसभा का चुनाव 7 चरणों में संपन्न हो गया है. 4 जून को नतीजे भी आ चुके हैं. NDA की सरकार भी बन गई है लेकिन इस चुनाव में परिणाम सबकी सोच से बिल्कुल अलग आया. बीजेपी बहुमत के आंकड़े को पार नहीं कर पाई. वहीं विपक्ष ने काफी बेहतर प्रदर्शन किया. इस चुनाव में सबसे ज्यादा नुकसान बीजेपी को उत्तर प्रदेश में हुआ है. यहां भारतीय जनता पार्टी को 80 लोकसभा सीटों में से महज 33 सीटें मिलीं. वहीं इस बार सपा ने इस राज्य में अपना वर्चस्व कायम किया. 

फैजाबाद यानी अयोध्या सीट की लोगों में खूब चर्चा थी. बीजेपी भी इस सीट पर पहले से जीता हुई महसूस कर रही थी लेकिन परिणाम इसके इतर आया. 3 बार से फैजाबाद सीट से भाजपा के सांसद लल्लू सिंह को सपा के नेता अवधेश प्रसाद ने इस सीट पर मात दे दी. अवधेश प्रसाद ने करीब 54 हजार मतों के भारी अंतर से लल्लू सिंह को हराया. यूपी में तमाम ऐसे सीटों पर बीजेपी को हार मिली जिसको लेकर पार्टी के दिग्गज आश्वस्त नजर आ रहे थे. इस प्रदेश की हार बीजेपी को ज्यादा चुभी है. यही कारण है कि पार्टी अब यूपी में हार का कारण खोज-खोज कर रिपोर्ट बना रही है. 

मिली जानकारी के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में हार पर भाजपा की प्रारंभिक रिपोर्ट मंडल लेवल की तैयार की गई है. अभी और दो रिपोर्ट आनी बाकी है. ये दोनों रिपोर्ट आ जाने के बाद तीनों रिपोर्ट का मिलान किया जाएगा. एक रिपोर्ट को 80 लोगों की टीम तैयार कर रही है और दूसरी रिपोर्ट को हारे हुए प्रत्याशी तैयार कर रहे हैं. रिपोर्ट तैयार होने के बाद इसे भाजपा आलाकमान को सौंपा जाएगा. उसके बाद इसे केंद्रीय आलाकमान को भेजा जाएगा.

यूपी में कैसे हारी बीजेपी?

सूत्रों के अनुसार, पहली रिपोर्ट में जो बातें निकल कर सामने आई हैं वे ये कि मोदी और योगी के नाम पर उस क्षेत्र के प्रत्याशी खुद को जीता हुआ मान रहे थे और अति उत्साहित थे. साथ ही 2 बार से ज्यादा जीते हुए सांसदों को लेकर जनता में नाराजगी थी. कुछ सांसदों का व्यवहार भी ठीक नहीं था. राज्य नेतृत्व ने करीब 3 दर्जन सांसदों के टिकट काटने या बदलने के लिए कहा था, उसकी अनदेखी हुई, टिकट बदलते तो परिणाम भी बेहतर होता.

विपक्ष के संविधान बदलने और आरक्षण खत्म करने के आरोपों का बीजेपी सही ढंग से जवाब नहीं दें पाई और इस तरह के बयानों पर विपक्ष ने खूब खेला. वे काफी हद तक अपनी बातों पर कामयाब हुए. पार्टी पदाधिकारियों का सांसदों के साथ तालमेल अच्छा नहीं रहा. यही वजह थी कि पूरे प्रदेश में बहुत कम मदतदाताओं के घरों तक वोट वाली पर्ची पहुंची. कुछ जिलों में विधायकों की अपने ही सांसद प्रत्याशियों से नहीं बनी, विधायकों ने ठीक ढंग से  सपोर्ट नहीं किया. 

अग्निवीर और पेपर लीक ने दिलाई हार?

बीजेपी के लाभार्थी वर्ग को कांग्रेस की ओर से किए गए 8500 रुपये हर महीने वाली गारंटी लोगों को खूब भाई. कांग्रेस के इस वादे ने जनता को खूब आकर्षित किया. यहां भी पार्टी ने लाभार्थियों से सीधा संवाद नहीं किया, लोगों को नहीं समझाया और यही बीजेपी की हार की एक बड़ी वजह बनी. कई जिलों में सांसद प्रत्याशी की अलोकप्रियता इतनी हावी हो गई कि बीजेपी कार्यकर्ता अपने घरों से नहीं निकले, लोगों के बीच नहीं गए.

कुछ पुराने नए कार्यकर्ताओं की अनंदेखी भी एक बड़ा मुद्दा रही.  निराश और उदासीन कार्यकर्ताओं ने पार्टी को वोट तो किया लेकिन लोगों से वोट डालने की अपील नहीं की. हर सीट पर उसके अपने कुछ फैक्टर रहे जैसे पेपर लीक और अग्निवीर जैसी योजनाओं पर विपक्ष लोगों को भ्रमित करने में कामयाब रहा लेकिन बीजेपी इन मुद्दों पर ठीक ढंग से काउंटर नहीं कर पाई. वहीं जानकारी ये भी है कि भाजपा की सबसे कमजोर कड़ी रही दलित वर्ग का वोट न पाना.