menu-icon
India Daily
share--v1

Delhi HC: 'पत्नी से घरेलू काम की अपेक्षा क्रूरता नहीं', दिल्ली HC ने पति को तलाक की दी मंजूरी

Delhi High Court: दिल्ली हाईकोर्ट ने अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि एक पति द्वारा अपनी पत्नी से घरेलू काम करने की अपेक्षा करना क्रूरता नहीं कहा जा सकता है.

auth-image
India Daily Live
Delhi High Court

हाइलाइट्स

Delhi High Court: दिल्ली उच्च न्यायालय ने अहम टिप्पणी करते हुए कहा है कि एक पति की ओर से अपनी पत्नी से घरेलू काम करने की अपेक्षा करना क्रूरता नहीं कहा जा सकता है. न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा की खंडपीठ एक व्यक्ति की अपील पर सुनवाई की, जिसमें उसने पारिवारिक अदालत के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें पत्नी की ओर से क्रूरता के आधार पर विवाह को समाप्त करने की मांग वाली उसकी याचिका खारिज कर दी गई थी. अदालत ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(1)(ai) के तहत क्रूरता के आधार पर तलाक मांगने वाले पति की अपील को स्वीकार करते हुए मंजूरी दे दी है. 

पीठ ने दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा "जब दो पक्ष विवाह बंधन में बंधते हैं तो उनका इरादा अपने जीवन की जिम्मेदारियां साझा करने का होती है. यह पहले से ही माना गया है कि यदि एक विवाहित महिला को घरेलू काम करने के लिए कहा जाता है तो इसे नौकरानी के काम के बराबर नहीं कहा जा सकता है और इसे अपने परिवार के लिए उसके प्यार और स्नेह के रूप में गिना जाएगा. पति वित्तीय दायित्वों को वहन करता है और पत्नी घर की जिम्मेदारी को स्वीकार करती है. मौजूदा मामला भी ऐसा ही है. भले ही अपीलकर्ता ने प्रतिवादी से घर का काम करने की अपेक्षा की हो फिर भी इसे क्रूरता नहीं कहा जा सकता."

'घरेलू काम की अपेक्षा क्रूरता नहीं' 

अदालत ने अपने सुनवाई में आगे कहा कि 30 मार्च 2007 को शादी और 02 फरवरी 2008 को उनके बच्चे के जन्म के बाद दोनों पक्षों के बीच विवाद पैदा हो गया लेकिन पति-पत्नी से घरेलू काम-काज पूरा करने की अपेक्षा करना क्रूरता नहीं माना जा सकता. विवाह में जिम्मेदारियां और स्नेह साझा करना शामिल है. जिसमें सभी साथी अपनी क्षमताओं और परिस्थितियों के अनुसार योगदान देता है. 

पति ने पत्नी पर लगाए गंभीर आरोप

अपीलकर्ता पति जो कि एक सीआईएसएफ सदस्य है. उसने कहा कि वह प्रतिवादी पत्नी के घर के कामों में योगदान न देने, आत्महत्या की धमकियों और झूठे आरोप लगाने, झगड़ालू व्यवहार अपनाने, वैवाहिक घर छोड़ने और आपराधिक मामलों में झूठे फंसाने से व्यथित है. पति ने यह भी आरोप लगाया कि प्रतिवादी और उसके परिवार ने इस बात पर जोर दिया कि वह अपने परिवार से अलग रहें. पत्नी ने इन दावों को खारिज कर दिया और अपने पति पर उसके परिवार से दहेज मांगने और क्रूरता के साथ पेश होने का आरोप लगाया. पत्नी ने दावा किया कि उसने घर का सारा काम किया, लेकिन उसका पति और उसका परिवार संतुष्ट नहीं था.

'पति को बेटे के प्यार से किया वंचित'

पीठ ने कहा कि अपनी पत्नी की इच्छाओं के आगे झुकते हुए पुरुष ने उसे खुश रखने और अपने वैवाहिक जीवन को बचाने के लिए एक अलग आवास की व्यवस्था की थी लेकिन अपने माता-पिता के साथ रहने का विकल्प चुनकर महिला ने न केवल अपने वैवाहिक दायित्वों की अनदेखी की बल्कि पति को उसके बेटे से दूर रखकर उसके पिता के प्यार से वंचित कर दिया. 

अदालत ने तलाक को दी मंजूरी

अदालत ने कहा कि प्रतिवादी ने अपने ससुराल वालों के साथ रहने से इनकार कर दिया और इसके अलावा उसने अक्सर अपने माता-पिता के साथ रहना चुना. वैवाहिक बंधन को पोषित करने के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण है कि पक्ष एक साथ रहें और बार-बार एक-दूसरे का साथ छोड़ने से बचें. अस्थायी अलगाव जीवनसाथी के मन में असुरक्षा की भावना पैदा करता है और महिला का संयुक्त परिवार में रहने का कोई इरादा नहीं था. ऐसे में 2019 के आक्षेपित फैसले को रद्द करते हुए अदालत ने अपीलकर्ता को हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 (1) (ia) के तहत तलाक को मंजूरी दे दी.