कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने दावा किया है कि आरएसएस ने संविधान को शुरूआती दौर में कभी नहीं स्वीकारा. उन्होंने कहा कि आरएसएस के दूसरे सरसंघचालक एम.एस. गोलवलकर का मानना था कि संविधान में मनुस्मृति का कोई स्थान नहीं है, और यही इसे एक "त्रुटिपूर्ण दस्तावेज़" बनाता है. थरूर ने यह भी कहा कि यह संगठन अब शायद उस सोच से आगे बढ़ चुका है, लेकिन ऐतिहासिक रूप से यह टिप्पणी सटीक है.
बता दें कि आरएसएस महासचिव दत्तात्रेय होसबोले ने हाल ही में कहा था कि संविधान की प्रस्तावना में 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' जैसे शब्द आपातकाल के दौरान जोड़े गए थे, जब संसद निष्क्रिय थी और न्यायपालिका कमजोर कर दी गई थी. उन्होंने सुझाव दिया कि इन शब्दों की मौजूदगी पर पुनर्विचार होना चाहिए. उनके इस बयान के बाद विपक्षी दलों ने केंद्र सरकार पर संविधान बदलने की मंशा का आरोप लगाना शुरू कर दिया है.
इस पर नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने 27 जून को कहा कि आरएसएस का मुखौटा फिर उतर गया है. उन्होंने आरोप लगाया कि यह संगठन मनुस्मृति चाहता है, न कि संविधान, क्योंकि संविधान समानता, धर्मनिरपेक्षता और न्याय की बात करता है. वहीं बीएसपी प्रमुख मायावती ने भी तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यदि संविधान की मूल भावना से कोई छेड़छाड़ की गई तो उनकी पार्टी सड़कों पर उतरकर विरोध करेगी. उन्होंने यह भी कहा कि उनकी पार्टी इस मामले पर नजर बनाए हुए है.