50 Years Of Emergency: 25 जून 1975 में भारतीय राजनीति और लोकतंत्र के इतिहास में एक काले अध्याय के रूप में दर्ज है. आज से लगभग 50 साल पहले इस दिन ने देश को एक ऐसी घटना से जूझने के लिए मजबूर किया, जिसे भारतीय लोकतंत्र कभी भूल नहीं सकता. रेडियो पर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की आवाज गूंजी थी, 'राष्ट्रपति जी ने आपातकाल की घोषणा की है.' इस ऐलान के साथ ही देश में इमरजेंसी लागू हो गया और लोकतंत्र के मौलिक अधिकारों (Fundamental Rights) पर रोक लग गई.
देश के राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने 25-26 जून की रात भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत इमरजेंसी की घोषणा की थी. यह घोषणा प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार के आग्रह पर की गई थी. जैसे ही इमरजेंसी लागू हुई, समूचे देश में विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी का सिलसिला शुरू हो गया. बड़े नेता जैसे जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, जॉर्ज फर्नांडिस आदि को जेल में डाल दिया गया. प्रेस पर भी सेंसरशिप लगा दी गई और सरकार के खिलाफ कोई भी समाचार प्रकाशित करने पर गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी गई.
इमरजेंसी की शुरुआत होते ही सभी नागरिकों के Fundamental Rights निलंबित कर दिए गए थे. सरकार के खिलाफ बोलने या लिखने पर कड़ी सजा का प्रावधान किया गया था. प्रेस में सेंसरशिप लागू कर दी गई और हर अखबार में एक सेंसर अधिकारी बैठाया गया. इस दौरान कई प्रमुख विरोधी नेताओं को हिरासत में लिया गया और उन्हें बिना किसी आरोप के लंबे समय तक जेलों में रखा गया.
इमरजेंसी का मुख्य कारण इंदिरा गांधी और न्यायपालिका के बीच बढ़ता टकराव था. 1971 में इंदिरा गांधी ने अभूतपूर्व जीत हासिल की थी, लेकिन उसी साल राजनारायण ने इंदिरा के चुनाव को गलत तरीके से जीतने का आरोप लगाते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया. अदालत ने इंदिरा गांधी के चुनाव को निरस्त कर दिया. इससे इंदिरा गांधी बेहद क्रोधित हो गईं और उन्होंने बिना कैबिनेट बैठक के ही इमरजेंसी की अनुशंसा राष्ट्रपति से कर डाली. अगले दिन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने तत्काल हस्ताक्षर कर आपातकाल लागू कर दिया.
इंदिरा गांधी के निजी सचिव आर.के. धवन का कहना था कि इमरजेंसी का मुख्य उद्देश्य राजनीतिक भविष्य को बचाना था. उन्होंने खुलासा किया था कि इंदिरा गांधी चुनाव निरस्त होने के बाद इस्तीफा देने को तैयार थीं, लेकिन उनके मंत्रिमंडल के सहयोगियों ने उन्हें इस्तीफा देने से रोक लिया. इसके बाद ही इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगाने का फैसला लिया.
आर.के. धवन ने बताया था कि पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री एसएस राय ने जनवरी 1975 में इंदिरा गांधी को आपातकाल लगाने की सलाह दी थी. इसके बाद प्रशासन ने इमरजेंसी की योजना बनाई और नेताओं की गिरफ्तारी की लिस्ट तैयार की.