Udaipur Files Case: सुप्रीम कोर्ट ने 16 जुलाई 2025 को 'उदयपुर फाइल्स: कन्हैया लाल दर्जी हत्याकांड' फिल्म की रिलीज से जुड़े मामले की सुनवाई 21 जुलाई तक टाल दी है. कोर्ट ने फिल्म के निर्माताओं को केंद्र द्वारा गठित समिति के फैसले का इंतजार करने का निर्देश दिया है, जो इस फिल्म के खिलाफ दर्ज आपत्तियों पर विचार कर रही है. समिति की बैठक बुधवार को दोपहर 2:30 बजे निर्धारित है. इसके साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने समिति से कन्हैया लाल हत्याकांड के आरोपियों का पक्ष सुनने और तत्काल फैसला लेने का निर्देश दिया है. जस्टिस सूर्यकांत और जॉयमाला बागची की बेंच ने कहा, 'हम उम्मीद करते हैं कि समिति बिना समय गंवाए तुरंत फैसला लेगी,'
'उदयपुर फाइल्स' एक क्राइम ड्रामा थ्रिलर फिल्म है, जो 28 जून 2022 को राजस्थान के उदयपुर में दर्जी कन्हैया लाल तेली की निर्मम हत्या पर आधारित है. इस घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया था, जब मोहम्मद रियाज और मोहम्मद गौस ने कथित तौर पर कन्हैया लाल की हत्या कर दी थी.
हत्यारों ने बाद में एक वीडियो जारी कर दावा किया कि यह हत्या पूर्व BJP प्रवक्ता नूपुर शर्मा के समर्थन में कन्हैया लाल द्वारा कथित सोशल मीडिया पोस्ट के जवाब में थी. इस मामले की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने की, और आरोपियों पर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) और भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत आरोप दर्ज किए गए.
फिल्म का ट्रेलर 26 जून 2025 को रिलीज हुआ, जिसके बाद विवाद शुरू हुआ. जमीअत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी और दूसरे याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि ट्रेलर में सांप्रदायिक उन्माद भड़काने वाले डायलॉग और सीन हैं, जो 2022 की घटना से जुड़े तनाव को फिर से उभार सकते हैं.
आरोपियों की मांग और सुप्रीम कोर्ट का रुख
कन्हैया लाल हत्याकांड के आठवें आरोपी मोहम्मद जावेद ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर फिल्म की रिलीज पर रोक लगाने की मांग की. उनकी दलील थी कि फिल्म का कथानक और प्रचार सामग्री 'सांप्रदायिक रूप से उत्तेजक' है और यह चल रहे मुकदमे को प्रभावित कर सकती है, जिससे उनके निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार का उल्लंघन होगा. जावेद के वकील ने तर्क दिया कि, 'फिल्म में आरोपियों को दोषी और कहानी को पूरी तरह सत्य के रूप में दिखाया गया है, जो न्यायिक प्रक्रिया को नुकसान पहुंचा सकता है,'
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने यह साफ किया कि यदि फिल्म रिलीज़ होती है और यह सांप्रदायिक तनाव को बढ़ाती है, तो आरोपियों की प्रतिष्ठा को हुए नुकसान की भरपाई नहीं हो सकती, जबकि निर्माताओं को रिलीज में देरी से होने वाले नुकसान की मौद्रिक मुआवजा दिया जा सकता है.