असम की धुबरी लोकसभा सीट हर बार की तरह इस बार भी चर्चित सीट में शामिल है. असम के कद्दावर नेता और ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रैटिक फ्रंट (AIUDF) इसी सीट से सांसद हैं और एक बार फिर से लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं. कांग्रेस से गठबंधन टूटने के बाद उनके निशाने पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के साथ-साथ कांग्रेस भी है. इस सीट का इतिहास यह भी रहा है कि यहां हुए सभी 16 के 16 चुनाव में मुस्लिम उम्मीदवार को ही जीत मिली है. खुद बदरुद्दीन अजमल लगातार तीन बार से यहां जीत रहे हैं और चौथी बार भी मैदान में हैं.
साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और AIUDF आमने-सामने थीं. बीजेपी ने असम में असम गण परिषद (AGP) से गठबंधन किया था. इस बार भी धुबरी सीट पर AIUDF और कांग्रेस के अलावा AGP ही चुनाव लड़ रही है. बदरुद्दीन अजमल के सामने कांग्रेस के रकीबुल हुसैन और AGP के जाबेद इस्लाम चुनाव में हैं. पिछली बार बदरुद्दीन अजमल ने दो लाख से ज्यादा वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी.
2009 में बदरुद्दीन अजमल के उदय के बाद से कांग्रेस के लिए इस सीट पर वापसी की उम्मीदें धूमिल हो गई हैं. इस बार परिसीमन के चलत थोड़ा बहुत बदलाव भी हुआ है. पुराने परिसीमन के मुताबिक, धुबरी की 10 विधानसभा सीटों में से 5 पर AIUDF और 5 पर कांग्रेस को जीत मिली थी. इस बार भी AIUDF के कब्जे वाली पांचों विधानसभा सीटें इसी लोकसभा क्षेत्र में हैं, ऐसे में बदरुद्दीन अजमल का दावा अभी भी मजबूत है.
70 से 80 फीसदी मुस्लिम आबादी वाले बारपेटा के कुछ विधानसभा क्षेत्रों को धुबरी में मिला देने से अजमल समेत सभी दलों के लिए चुनौती नई होने वाली है. हालांकि, यहां के मतदाताओं की तरह ही तीनों पार्टियों के उम्मीदवार भी मुस्लिम हैं. यानी एक बार फिर धुबरी को मुस्लिम सांसद ही मिलने जा रहा है.
बीते तीन चुनाव के नतीजों को देखें तो कोई बदरुद्दीन अजमल को चुनौती नहीं दे पाया है. एक बार तो खुद हिमंत बिस्व सरमा ने कह दिया था कि वह असम की सारी सीटें जीत रहे हैं लेकिन धुबरी को छोड़कर. मुस्लिम बहुल इस सीट पर इस बार CAA-NRC जैसे मुद्दों पर खूब बहस हो रही है. 10 प्रतिशत से कम SC-ST आबादी वाले धुबरी में भारी-भरकम वोट लेने के बावजूद विपक्षी पार्टियां अजमल के सामने ज्यादा मुश्किल नहीं पैदा कर पा रही हैं.