Kargil Vijay Diwas 2025: भारत 26 जुलाई को हर साल कारगिल विजय दिवस मनाता है, जो 1999 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भारत की ऐतिहासिक जीत और वीर सैनिकों के अदम्य साहस की याद दिलाता है. यह युद्ध भारतीय सेना की बहादुरी, एकता और बलिदान का प्रतीक बन गया है.
कारगिल की ऊँचाईयों पर कब्जा जमाने की पाकिस्तानी साजिश को भारतीय जवानों ने करारा जवाब दिया और 60 दिनों तक चले ऑपरेशन विजय के बाद 26 जुलाई को भारत ने पूरी तरह विजय हासिल की. इस युद्ध में 527 भारतीय सैनिक शहीद हुए, जिनकी शहादत आज भी देशवासियों के दिल में जिंदा है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि सबसे ज्यादा शहीद किस राज्य से थे?
कारगिल युद्ध में उत्तराखंड ने सबसे ज्यादा सैनिक खोए. इस छोटे राज्य के 75 जवान शहीद हुए, जो कुल शहीदों का बड़ा हिस्सा हैं. राज्य की गढ़वाल राइफल्स और कुमाऊं रेजीमेंट ने जंग में विशेष भूमिका निभाई. अकेले गढ़वाल राइफल्स के 47 सैनिक शही हुए, जिनमें से 41 उत्तराखंड के थे। वहीं कुमाऊं रेजीमेंट से 16 जवानों ने शहादत दी. उत्तराखंड की विशेषता यह है कि राज्य की लगभग 15% आबादी पूर्व सैनिकों की है, जो बताता है कि देश सेवा यहां की परंपरा है.
उत्तराखंड के बाद हिमाचल प्रदेश का नंबर आता है, जहां से 52 सैनिक कारगिल युद्ध में शहीद हुए. इन्हीं में से एक थे कैप्टन विक्रम बत्रा, जिन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया. हिमाचल के ही राइफलमैन संजय कुमार को भी इस युद्ध में उनके अद्वितीय पराक्रम के लिए परमवीर चक्र मिला.
युद्ध में महाराष्ट्र के 6 जवान शहीद हुए थे. तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीस ने राज्यसभा में बताया था कि सांगली, नासिक, पुणे, बीड और कोल्हापुर के सैनिकों ने अपने प्राणों की आहुति दी.
कारगिल युद्ध में भारत ने कुल 5000 से 10000 करोड़ रुपये खर्च किए. अकेले वायुसेना को ऑपरेशन अंजाम देने में 2000 करोड़ रुपये खर्च करने पड़े थे. इस युद्ध में जहां भारत ने 527 सैनिक खोए, वहीं पाकिस्तान को भारी नुकसान हुआ. करीब 3000 पाकिस्तानी सैनिक मारे गए, हालांकि पाकिस्तान ने आधिकारिक तौर पर केवल 357 सैनिकों की मौत स्वीकार की. कारगिल विजय दिवस केवल एक तिथि नहीं, बल्कि उन वीरों की अमर कहानी है जिन्होंने अपने लहू से तिरंगे को बेहद ऊंचाई पर फहराया. उत्तराखंड और हिमाचल जैसे पर्वतीय राज्यों ने इस जीत में सबसे बड़ी कुर्बानी दी, जिसे देश कभी नहीं भूल सकता.