Amethi Lok Sabha Seat: किशोरी लाल शर्मा... ये वो शख्स हैं, जो अमेठी लोकसभा सीट पर केंद्रीय मंत्री और वर्तमान भाजपा सांसद स्मृति ईरानी को टक्कर देंगे. किशोरी लाल शर्मा 1980 के बाद दूसरे ऐसे गैर गांधी हैं, जिन्हें कांग्रेस ने अमेठी से चुनावी मैदान में उतारा है. केएल शर्मा यानी किशोरी लाल शर्मा को सोनिया गांधी का खास माना जाता है. कांग्रेस का दावा है कि किशोरी लाल शर्मा अमेठी और रायबरेली से अच्छी तरह वाकिफ हैं. वे अमेठी के साथ-साथ रायबरेली में पिछले 4 दशकों से अधिक समय से काम कर रहे हैं. शुक्रवार सुबह कांग्रेस की ओर से उम्मीदवारी की घोषणा के बाद केएल शर्मा ने अपना नामांकन पत्र दाखिल किया.
नामांकन दाखिल करने के बाद केएल शर्मा ने कहा कि पार्टी आलाकमान को धन्यवाद कि उन्होंने मुझे इसके लिए चुना. उन्होंने कहा कि अमेठी और रायबरेली मेरी 'कर्मभूमि' रही है और ये मेरे लिए अमेठी के लोगों की सेवा करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है. केएल शर्मा के नामांकन के बाद प्रियंका गांधी ने उनके समर्थन में अमेठी में रोड शो भी किया.
दरअसल, प्रियंका गांधी शुक्रवार को रायबरेली में राहुल गांधी के नामांकन में शामिल हुई थीं. इसके बाद वे अमेठी पहुंचीं, जहां उन्होंने केएल शर्मा के समर्थन में रोड शो किया. प्रियंका ने कहा कि मैं यहां किशोरी लाल जी के लिए हूं... हम उन्हें 35-40 साल से अधिक समय से जानते हैं... मैं यहां आप सभी से उन पर अपना प्यार बरसाने और उन्हें वोट देने का आग्रह करने आई हूं.
किशोरी लाल शर्मा... 1980 के बाद से कांग्रेस की ओर से अमेठी से मैदान में उतारे जाने वाले दूसरे गैर-गांधी हैं. इससे पहले 1991 में कैप्टन सतीश शर्मा को उपचुनाव में यहां से मौका दिया गया था. उन्होंने 1996 में इस सीट का प्रतिनिधित्व भी किया.
पंजाब के लुधियाना के रहने वाले केएल शर्मा पूर्व पीएम राजीव गांधी से काफी प्रभावित थे. ऐसा कहा जाता है कि वह 1983 में राजीव गांधी के साथ अमेठी आए थे जब वह 20 साल के थे. पंजाब यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन के बाद उन्होंने राजीव गांधी का भरोसा जीता. राजीव गांधी के निधन के बाद, उन्होंने सतीश शर्मा के साथ काम किया और जब 1999 में सोनिया गांधी ने राजनीतिक शुरुआत की, तो वह उनके साथ जुड़ गए.
केएल शर्मा के साथ रहे कल्याण सिंह ने याद करते हुए कहा कि सोनिया गांधी को किशोरी लाल में अपने पति के विश्वास के बारे में पता था, जिन्होंने उन्हें कभी निराश नहीं होने दिया, खासकर 1991 में राजीव की मृत्यु के बाद. समय के साथ, उनके 'जन प्रबंधन' और 'माइक्रो-प्लानिंग' कौशल के कारण उन्हें रायबरेली और अमेठी दोनों सीटों का प्रभारी बनाया गया.