Ramayan Facts: प्रभु श्रीराम जगत के पालनहार भगवान श्रीहरि विष्णु के अवतार थे. जिन्होंने धरती को पापियों के पाप से मुक्त करने लिए राजा दशरथ के कुल में जन्म लिया था. भगवान श्रीराम ने अपने जीवन में अधर्मियों का वध किया था. इसके चलते उन्हें श्राप भी मिला था.
जब प्रभु श्रीराम माता सीता और लक्ष्मण के साथ 14 वर्ष के वनवास पर गए थे,तब छल से लंकापति रावण माता सीता को हर ले गया था. उसकी खोज में भगवान श्रीराम और लक्ष्मण को प्रभु हनुमान मिले. प्रभु हनुमान ने उनको सुग्रीव से मिलवाया. सुग्रीव, वानरराज बाली का भाई था. बाली ने अपने बल के दम पर सुग्रीव से राजपाट लिया था और उसको राज्य से निष्कासित कर दिया था. इसके साथ ही सुग्रीव की पत्नी को अपने पास रख लिया था. जब सुग्रीव की मुलाकात प्रभु श्रीराम से हुई तो सुग्रीव से प्रभु से मदद मांगी.
भगवान श्रीराम सुग्रीव का साथ देने के लिए राजी हो गए. इस पर सुग्रीव ने बाली को युद्ध के लिए ललकारा और जब उन दोनों में युद्ध चल रहा था तब प्रभु श्रीराम ने बाण चलाकर अधर्मी बाली का वध कर दिया. बाली के छल से वध की बात जब उसकी पत्नी तारा को पता चली तो वह वहां उससे मिलने गई और बाली को अंतिम सांसें गिनते देख उसने प्रभु श्रीराम से कहा कि आपने धोखे से मेरे पति का वध छल से किया है. इस कारण मैं आपको श्राप देती हूं कि आपका सीता से दोबारा वियोग होगा और आप भी पत्नी वियोग में तड़पेंगे. मेरे पति ही अगले जन्म में आपकी मृत्यु का कारण होंगे.
जब देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मंथन हुआ था तो इस मंथन से जहर, अमृत और भी कई सारे रत्न, आभूषण निकले थे. इसके साथ ही इससे अप्सरा तारा प्रकट हुई थी. अप्सरा तारा को देखकर सुषेण वैद्य और बाली मोहित हो गए और उनसे विवाह की इच्छा जताई. इसको लेकर दोनों में युद्ध की स्थिति बन गई. इसको देखते हुए भगवान विष्णु ने का कि आप दोनों तारा के पास जाकर खड़े हो जाएं. भगवान विष्णु के आदेश पर बाली तारा के दाएं और सुषेण वैद्य तारा के बाईं ओर खड़े हो गए. इस कारण भगवान विष्णु ने कहा कि विवाह के समय कन्या के दाईं ओर पति व बाईं ओर कन्यादान के समय पिता खड़ा होता है. इस कारण बाली को ही तारा का पति माना जाएगा. ऐसे अप्सरा तारा बाली की पत्नी बन गई थीं. बाली की मौत के बाद कुछ गंथ्रो में वर्णन है कि सुग्रीव ने उनको अपनी पत्नी बना लिया था. वहीं, कुछ ग्रंथों के हिसाब से उन्होंने विधवा का जीवन स्वीकार किया था.
रावण को परास्त कर जब भगवान श्रीराम माता सीता के साथ अयोध्या आ गए तो कुछ समय बाद उनको प्रजा के खातिर सीता का त्याग करना पड़ता है. ऐसे में दोबारा प्रभु श्रीराम को माता सीता का वियोग सहना पड़ता है. वहीं, जब द्वापर युग में भगवान विष्णु श्रीकृष्ण के रूप में जन्म लेते हैं तो एक भील के बाण से उनकी मृत्यु हो जाती है. भील बाण जानवर समझकर चलाता है पर वह बाण श्रीकृष्ण के तलवे पर लग जाता है. रामायण काल का बाली ही दूसरे जन्म में भील बना था. इस कारण अप्सरा तारा के श्राप के कारण प्रभु श्रीराम को माता सीता का दोबारा वियोग और अगले जन्म में मृत्यु का सामना करना पड़ा.
Disclaimer : यहां दी गई सभी जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. theindiadaily.com इन मान्यताओं और जानकारियों की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह ले लें.
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