Bhisma Pitamah Story: भारतीय महाकाव्य महाभारत के एक प्रमुख पात्र भीष्म पितामह को कुरुक्षेत्र में हुए भयंकर युद्ध के दौरान बड़ी संख्या में तीरों से छेदा गया था. हालांकि इस घटनाक्रम के पीछे एक अहम कहानी है जिसे हर किसी को जानना चाहिए. महाभारत की जानकारी रखने वाले ज्यादातर लोगों को शायद ही इस बात की जानकारी होगी कि पितामह को कितने बाणों की शैय्या पर लेटना पड़ा था और किन के वरदान के चलते उनका अपने मृत्यु के समय पर नियंत्रण था.
महाभारत के युद्ध में, भीष्म पितामह बाणों की शैय्या पर लेटे थे लेकिन मृत्यु को प्राप्त नहीं हुए थे, उन्हें मृत्यु की गोद में भी जाने के लिए इंतजार करना पड़ा था और ये घटनाक्रम युधिष्ठिर के राज्याभिषेक से पहले तक चलता है.
युद्ध के दौरान कौरवों की तरफ से लड़ते हुए भीष्म पितामह अजेय योद्धा थे. उनकी रणनीति और शक्ति के आगे पांडवों को भी काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा. लेकिन, शिखंडी के छिपाव में अर्जुन द्वारा किए गए हमलों में भीष्म के शरीर पर अनगिनत बाण लगे.
महाभारत ग्रंथ इन बाणों की संख्या का स्पष्ट उल्लेख नहीं करता है, लेकिन वर्णन करता है कि बाण उनके शरीर पर साही के कांटों की तरह खुल गए थे. एक अन्य जानकारी के अनुसार भीष्म पितामह के शरीर में इतने बाण लगे थे जितना व्यक्ति एक दिन में सांसे लेता है. औसतन एक व्यक्ति दिन भर में 22 हजार बार सांस लेता है जिसका मतलब है कि भीष्म पितामह के शरीर में कम से कम 22 हजार बाण लगे थे.
हालांकि बाण उनके फेफड़ों और हृदय तक पहुंचे होंगे, परन्तु भीष्म के पास अपनी मृत्यु के समय को नियंत्रित करने का वरदान था. यह वरदान उन्हें देवी गंगा से प्राप्त हुआ था. इस वरदान के कारण वे घातक परिणामों को सहन करने में सक्षम थे. भीष्म ने युद्ध को रोकने का फैसला किया और बाणों की वर्षा के बावजूद कुछ समय के लिए युद्ध चलता रहा.
यह कथा पौराणिक है और इसे उसी रूप में स्वीकारना चाहिए. बाण उन्हें तुरंत मारने में सक्षम नहीं थे, लेकिन उन्हें युद्ध करने में असमर्थ बनाने के लिए काफी थे. पांडवों का उद्देश्य उन्हें मारना नहीं था, बल्कि युद्ध से बाहर करना था. भीष्म की मृत्यु उस समय सूर्य के दक्षिणायन होने के कारण अशुभ मानी जाती थी. इसलिए, उन्होंने सूर्य के उत्तरायण होने तक अपनी मृत्यु को टालने का फैसला किया.
इस दौरान एक सवाल यह भी उठता है कि आखिरकार भीष्म पितामह बाणों की शैय्या पर क्यों लेटे रहे और किसी ने उनके बाणों को निकालने का प्रयास क्यों नहीं किया? दरअसल जब भीष्म पितामह को बाण लगें तो उन्होंने खुद ही कहा कि मृत्यु के पश्चात उनकी आत्मा को स्वर्ग या धरती स्वीकार नहीं कर रही थी. स्वर्ग उन्हें वंश चलाने के ऋण चुकाने में विफलता के कारण स्वीकार नहीं कर सकता था और धरती उन्हें उनके अत्यधिक लंबे जीवन के कारण स्वीकार नहीं कर सकती थी. यह एक दैवीय विधान था.
अर्जुन ने उन्हें बाणों की शैय्या पर इस प्रकार रखा कि वे न तो धरती पर और न ही आकाश में हों. यह सुनिश्चित किया गया कि उनका शरीर जमीन को स्पर्श न करे. प्यास लगने पर भीष्म की इच्छा पूरी करने के लिए अर्जुन ने एक बाण से उनकी माता गंगा को आह्वान किया. गंगा माता प्रकट हुईं और उन्होंने भीष्म की प्यास बुझाई.
अपने अंतिम समय में भीष्म पितामह की देखभाल द्रौपदी, पाण्डव, कौरव, भगवान कृष्ण और कई ऋषियों ने की. इन 56 दिनों में भीष्म ने युधिष्ठिर को राजनीति, धर्म और युद्ध कौशल का ज्ञान दिया. उन्होंने युधिष्ठिर को राज्य का संचालन करने के लिए मार्गदर्शन दिया जिसे "भीष्म पर्व" के नाम से जाना जाता है. भीष्म ने आखिरकार सूर्य के उत्तरायण होने पर प्राण त्याग दिए. उनकी मृत्यु को स्वर्गारोहण माना जाता है.