menu-icon
India Daily
share--v1

जीरो या लो इंट्रेस्ट पर देना होगा टैक्स, सुप्रीम कोर्ट ने किस केस में कही ये बात?

सुप्रीम कोर्ट ने ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स फेडरेशन की याचिका को खारिज कर दिया. इसमें कहा गया था कि स्टेट बैंक की लेडिंग रेट मनामान है और यह अनुच्छेद 14 का सीधा उल्लंघन है.

auth-image
India Daily Live
 Supreme court

सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी बैंक के कर्मचारियों को झटका दिया है. कोर्ट ने फैसला देते हुए कहा कि बैंक कर्मचारियों को दिए गए ब्याज मुक्त या रियायती दर पर लोन का लाभ एक ‘अनुलाभ’ है और इसलिए यह आयकर अधिनियम के तहत टैक्सेबल है. मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और दीपांकर दत्ता की पीठ ने की. सुप्रीम कोर्ट ने आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 17(2)(viii) और आयकर नियम, 1962 के नियम 3(7)(i) के तहत फैसला सुनाते हुए कहा कि प्रावधान न तो अन्यायपूर्ण है, न ही क्रूर है. 

नियम के अनुसार, जब कोई बैंक कर्मचारी जीरो इंटरेस्ट या रियायती कर्ज लेता है तो वह सालाना जितनी राशि बचाता है, उसकी तुलना एक सामान्य व्यक्ति द्वारा भारतीय स्टेट बैंक से उतनी ही राशि का लोन लेकर भुगतान की जाने वाली राशि से की जाती है, जिस पर बाजार लगता है और यह कर योग्य होगा. कोर्ट ने कहा कि ब्याज मुक्त या रियायती कर्ज के मूल्य को अनुलाभ के रूप में टैक्स लगाने के लिए अन्य लाभ या सुविधा के रूप में माना जाना चाहिए. 

सुप्रीम कोर्ट ने ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स फेडरेशन की याचिका को खारिज कर दिया. इसमें कहा गया था कि स्टेट बैंक की लेडिंग रेट मनामान है और यह अनुच्छेद 14 का सीधा उल्लंघन है. हालांकि, जजों ने कहा कि एसबीआई की ब्याज दर को एक बेंचमार्क के रूप में तय करने से एकरूपता सुनिश्चित होती है. विभिन्न बैंकों द्वारा ली जाने वाली अलग-अलग ब्याज दरों पर कानूनी विवादों को रोका जा सकता है. नियोक्ता द्वारा ब्याज मुक्त या रियायती दर पर कर्ज देना निश्चित रूप से 'फ्रिंज बेनिफिट' और 'अनुलाभ' के रूप में योग्य होगा.