Rishikesh Women Insurance Case: उत्तराखंड के ऋषिकेश की रहने वाली रेणु बंसल ने साल 2012 में अपने पति जगन्नाथ बंसल को किडनी दान की थी. अंगदान के लिए वह खुद अस्पताल में भर्ती हुई थीं, लेकिन बीमा कंपनी ने उनके इलाज के खर्च को यह कहकर खारिज कर दिया कि वह मरीज नहीं थीं. इस फैसले के खिलाफ रेणु ने उपभोक्ता आयोग का दरवाजा खटखटाया और 13 साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद आखिरकार उन्हें न्याय मिला.
रेणु बंसल ने नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड (NICL) के खिलाफ उपभोक्ता आयोग में शिकायत दर्ज कराई थी. शिकायत में उन्होंने बताया कि अंगदाता होने के बावजूद बीमा कंपनी ने उनके अस्पताल में भर्ती होने और इलाज पर हुए खर्च को कवर करने से इनकार कर दिया. रेणु के पति ने परिवार के लिए मेडिक्लेम पॉलिसी ली थी और 13 वर्षों तक उसे नियमित रूप से रिन्यू भी करवाते रहे थे. ट्रांसप्लांट के दौरान जगन्नाथ के खर्च की आंशिक भरपाई तो कंपनी ने की, लेकिन रेणु के दावे को सिरे से नकार दिया.
2014 में जिला उपभोक्ता फोरम ने रेणु के पक्ष में फैसला दिया, लेकिन NICL ने इसे राज्य आयोग में चुनौती दी. लंबी कानूनी प्रक्रिया के दौरान रेणु के पति का निधन हो गया, मगर रेणु ने हार नहीं मानी और केस लड़ती रहीं.
अब उत्तराखंड राज्य उपभोक्ता आयोग ने फैसला सुनाते हुए कहा कि पॉलिसी की शर्तों के अनुसार दानकर्ता के खर्च को बीमा राशि के 50% तक कवर किया जा सकता है. आयोग ने कहा, 'दानकर्ता रेणु बंसल के इलाज पर 66,667 रुपये खर्च हुए, ऐसे में उन्हें 32,500 रुपये की बीमा राशि दी जाए.'
राज्य आयोग ने NICL को आदेश दिया कि वह 2012 की शिकायत की तारीख से 7% वार्षिक ब्याज के साथ 32,500 रुपये और मानसिक पीड़ा व केस खर्च के लिए 25,000 रुपये अतिरिक्त भुगतान करे.
यह मामला अंगदाता अधिकारों और बीमा नियमों की अस्पष्टता पर भी सवाल खड़े करता है. देश में आज भी अधिकांश मेडिक्लेम पॉलिसी अंगदाताओं को पूरी तरह कवर नहीं करतीं, जिससे कई बार कानूनी विवाद उत्पन्न होते हैं.