वाराणसी: काशी में गंगा नदी ने इन दिनों विकराल रूप धारण कर लिया है. कार्तिक पूर्णिमा के बाद गंगा के जलस्तर में इतनी अप्रत्याशित वृद्धि पिछले 35 वर्षों में पहली बार देखी गई है. इस अचानक बढ़े जलस्तर ने घाटों पर जीवन, धार्मिक परंपराओं और नाविकों की आजीविका पर गहरा संकट खड़ा कर दिया है.
दशाश्वमेध घाट, जो काशी का सबसे प्रमुख और जीवंत घाट माना जाता है, अब इस जलवृद्धि का सबसे प्रत्यक्ष प्रमाण बन गया है. गंगा का जल आरती स्थल तक पहुंच चुका है, जिससे विश्व प्रसिद्ध संध्या गंगा आरती को अपने मूल स्थान से कुछ फीट पीछे हटाकर आयोजित करना पड़ रहा है. गंगा सेवा निधि द्वारा यह निर्णय सुरक्षा कारणों से लिया गया. पुरोहितों और स्वयंसेवकों ने अपनी चौकियां पीछे कर ली हैं ताकि अनुष्ठान सुरक्षित रूप से जारी रह सकें.
जलस्तर की यह वृद्धि घाटों पर बने छोटे-बड़े 100 से अधिक प्राचीन मंदिरों को जलमग्न कर चुकी है. इन मंदिरों की गुंबदें मुश्किल से दिखाई दे रही हैं, और कई पूरी तरह डूब चुके हैं. इससे घाटों पर पूजा-पाठ करने वाले पुरोहितों और घाटवासियों की दिनचर्या पर गंभीर असर पड़ा है. कई दैनिक कर्मकांड अस्थायी रूप से रोक दिए गए हैं.
नाविकों में चिंता भी अब बढ़ गई है. घाटों के बीच तेज बहाव के कारण छोटी नावों का संचालन नाविकों ने स्वयं रोक दिया है. प्रशासन ने कोई सीधा प्रतिबंध नहीं लगाया, फिर भी नाविकों ने यात्रियों की सुरक्षा को देखते हुए यह फैसला लिया. उनकी आय का प्रमुख स्रोत यही नावें हैं, इसलिए यह निर्णय आर्थिक रूप से बेहद कठिन साबित हो रहा है. नाविकों का कहना है कि कार्तिक पूर्णिमा के बाद का यह समय पर्यटन सीजन का सबसे अहम दौर होता है, ऐसे में उनकी आय का स्रोत रुक जाने से हजारों परिवारों की रोजी-रोटी प्रभावित हुई है.
हालांकि कुछ बड़ी मोटर बोट सीमित यात्रियों के साथ चलाई जा रही हैं, लेकिन नाविकों का कहना है कि जलस्तर की स्थिति अगर ऐसे ही बढ़ती रही, तो उन्हें इनका संचालन भी बंद करना पड़ सकता है. घाटों के बीच संपर्क मार्ग टूटने से स्थानीय आवाजाही और पर्यटन गतिविधियां भी बाधित हो गई हैं. यह स्थिति पर्यावरणीय असंतुलन की ओर भी इशारा किया है और आने वाले समय में गंगा के किनारे बसे शहरों के लिए चेतावनी साबित हो सकती है.