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India Daily

बेंगलुरु के 800 साल पुरानी मंदिर ने शादी पर लगाया बैन! तलाक के बढ़ते मामलों की वजह से लिया फैसला

बेंगलुरु के एक 800 साल पुराने मंदिर ने चौंकाने वाला फैसला किया है कि मंदिर परिसर में अब कोई शादी नहीं होगी. इसके पीछे की वजह से तलाक के बढ़ते मामले बताए जा रहे हैं.

Someshwara Temple Bengaluru
Courtesy: X

बेंगलुरु: कर्नाटक के बेंगलुरु शहर के बीचो-बीच स्थित हलासुरु सोमेश्वर स्वामी मंदिर करीब 800-1000 साल पुराना है. चोल काल में बना यह शिव मंदिर शहर के सबसे प्राचीन और पूजनीय स्थानों में से एक है. 

लंबे समय तक यहां सैकड़ों जोड़े हर साल वैदिक रीति से शादी रचाते थे. लेकिन पिछले 6-7 साल से इस मंदिर में शादियां बंद कर दी गई हैं. वजह चौंकाने वाली है तलाक के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी और पुजारियों का कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटना.

तलाक के केस ने पुजारियों को बना दिया गवाह

मंदिर में होने वाली हर शादी के पुजारी आधिकारिक गवाह होते हैं. पहले जहां साल में एक-दो तलाक के मामले ही आते थे, वहीं पिछले कुछ सालों में ये संख्या 50 से भी ऊपर पहुंच गई. जब जोड़ा तलाक लेने कोर्ट जाता है तो पुजारियों को बार-बार बुलावा आता है. 

कभी दस्तावेज सत्यापित करने कभी गवाही देने. इससे मंदिर के धार्मिक काम प्रभावित होने लगे. मंदिर समिति के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी वी. गोविंदराजू ने बताया, 'पुजारी भगवान की पूजा से ज्यादा समय कोर्ट में बिताने लगे थे. यह स्थिति हमारे लिए स्वीकार्य नहीं थी.'

भागकर शादी और फर्जी दस्तावेज बने बड़ी समस्या

सबसे ज्यादा परेशानी उन जोड़ों से हुई जो घर से भागकर आते थे. कई बार लड़के-लड़की फर्जी आधार कार्ड, उम्र के प्रमाण-पत्र या अन्य कागजात लेकर शादी कर लेते थे. कुछ दिन बाद माता-पिता आते और शिकायत करते. कई मामलों में तो पुलिस और कोर्ट तक बात पहुंच जाती. मंदिर का नाम भी इससे खराब होने लगा.

समिति को लगा कि मंदिर की पवित्रता और गरिमा को बचाना जरूरी है. इसलिए कुछ साल पहले ही चुपचाप शादियां बंद कर दी गईं. हाल ही में यह बात बाहर आई तो लोग हैरान रह गए.

मंदिर ने क्या कहा?

मंदिर के कार्यकारी अधिकारी ने मुख्यमंत्री के विशेष कार्य अधिकारी को लिखे पत्र में साफ कहा था कि पुजारियों को बार-बार कोर्ट बुलाया जाना और कानूनी झंझटों से बचने के लिए यह कदम उठाया गया है. अभी सिर्फ शादी पर रोक है, बाकी सभी पूजा-पाठ, मुंडन, अन्नप्राशन जैसे संस्कार पहले की तरह होते रहेंगे.

लोगों की मिली-जुली प्रतिक्रिया

कुछ श्रद्धालु इस फैसले से खुश हैं. उनका कहना है कि मंदिर को कानूनी पचड़ों में नहीं पड़ना चाहिए और पुजारी भगवान की सेवा में लगें तो बेहतर है. वहीं कई लोग दुखी भी हैं. उनका मानना है कि सदियों पुरानी परंपरा को एक झटके में खत्म करना ठीक नहीं.