महिला कर्मचारियों के अधिकारों से जुड़े एक अहम मुद्दे पर कर्नाटक हाई कोर्ट का फैसला सामने आया है. राज्य सरकार द्वारा जारी एक हालिया आदेश ने औद्योगिक और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में बहस छेड़ दी थी.
सरकार की मंशा महिला कर्मचारियों को राहत देने की थी, लेकिन इस आदेश की वैधानिकता को चुनौती दी गई. अब कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद इस नीति के भविष्य पर सवाल खड़े हो गए हैं.
कर्नाटक हाई कोर्ट ने राज्य सरकार की 20 नवंबर की अधिसूचना पर रोक लगा दी है , जिसमें विभिन्न प्रतिष्ठानों को 18 से 52 वर्ष की आयु की महिला कर्मचारियों को मासिक धर्म के दौरान प्रति माह एक दिन का अतिरिक्त अवकाश देने का आदेश दिया गया था.
न्यायमूर्ति ज्योति एम. ने मंगलवार (9 दिसंबर, 2025) को बैंगलोर होटल्स एसोसिएशन और अविराता एएफएल कनेक्टिविटी सिस्टम्स लिमिटेड, बेंगलुरु द्वारा दायर दो अलग-अलग याचिकाओं पर अंतरिम आदेश पारित किया.
याचिकाकर्ताओं ने अधिसूचना की वैधता को चुनौती देने का मुख्य आधार यह बताया कि संबंधित कानूनों में मासिक धर्म के दौरान अवकाश देने का कोई प्रावधान नहीं है, इसलिए सरकार के पास अधिसूचना के माध्यम से विभिन्न श्रम कानूनों के तहत पंजीकृत विभिन्न प्रतिष्ठानों को अतिरिक्त अवकाश देने का कोई अधिकार नहीं है.
कोर्ट को यह भी बताया गया कि सरकार ने 'मासिक धर्म अवकाश नीति 2025' के माध्यम से अतिरिक्त अवकाश शुरू करने से पहले याचिकाकर्ताओं या समान स्थिति वाले प्रतिष्ठानों के साथ परामर्श नहीं किया था .
कारखाना अधिनियम, 1948, कर्नाटक दुकान एवं वाणिज्यिक प्रतिष्ठान अधिनियम, 1961, बागान श्रम अधिनियम, 1951, बीड़ी एवं सिगार श्रमिक (रोजगार की शर्तें) अधिनियम, 1966, तथा मोटर परिवहन श्रमिक अधिनियम, 1961 के तहत पंजीकृत प्रतिष्ठानों के लिए मासिक धर्म अवकाश अनिवार्य किया गया था.
अधिसूचना में कहा गया है कि महिला कर्मचारियों को मासिक धर्म अवकाश का उपयोग उसी महीने में करना होगा और पिछले महीने के अवकाश को अगले महीने तक बढ़ाने (कैरी ओवर) की अनुमति नहीं दी जाएगी. साथ ही, अधिसूचना में यह भी कहा गया है कि महिला कर्मचारियों को हर महीने यह अवकाश लेने के लिए कोई चिकित्सा प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं है.