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'मैं हूं बहादुर शाह जफर की बहू', बेगम ने मांगी लाल किले की चाबी; कोर्ट ने कहा- इतिहास दोहराया नहीं जाता

Supreme Court Verdict On Red Fort: सुप्रीम कोर्ट ने लाल किले पर मालिकाना हक की मांग वाली सुल्ताना बेगम की याचिका खारिज कर दी, इसे बेमूल और आधारहीन बताया और याचिका वापस लेने की अनुमति भी नहीं दी.

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Edited By: Anvi Shukla
Supreme Court Verdict On Red Fort
Courtesy: social media

Supreme Court Verdict On Red Fort: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सुल्ताना बेगम की उस याचिका को सिरे से खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने खुद को मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर द्वितीय के परपोते की विधवा बताते हुए दिल्ली के ऐतिहासिक लाल किले पर मालिकाना हक की मांग की थी. मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए इसे 'गलतफहमी पर आधारित और बिना किसी कानूनी आधार वाला' बताया.

मुख्य न्यायाधीश ने सुनवाई के दौरान स्पष्ट शब्दों में कहा, 'शुरुआत से ही यह रिट याचिका बेमूल और आधारहीन थी. इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता.' जब याचिकाकर्ता के वकील ने इसे वापस लेने की अनुमति मांगी, तो कोर्ट ने वह भी अस्वीकार कर दी. याचिका में यह तर्क दिया गया कि याचिकाकर्ता देश के पहले स्वतंत्रता सेनानी के वंशज हैं. इस पर CJI ने तीखा कटाक्ष करते हुए कहा, 'अगर यह तर्क स्वीकार कर लिया जाए, तो फिर केवल लाल किला ही क्यों, आगरा, फतेहपुर सीकरी के किले भी क्यों नहीं?'

मुगल वंश को संपत्ति से वंचित किया गया

सुल्ताना बेगम ने अपनी याचिका में दावा किया कि 1857 की क्रांति के बाद ब्रिटिश शासन ने मुगलों से उनकी संपत्तियां छीन ली थीं. बहादुर शाह जफर द्वितीय को निर्वासित कर दिया गया और लाल किले पर जबरन कब्जा कर लिया गया.

याचिका में यह भी कहा गया कि सुल्ताना बेगम, बहादुर शाह जफर के परिवार की सदस्य होने के नाते लाल किले की वैध उत्तराधिकारी हैं. साथ ही, भारत सरकार को अवैध कब्जेदार करार देते हुए या तो लाल किले की वापसी या फिर उचित मुआवजा देने की मांग की गई थी.

न्यायालय ने नहीं माना अधिकार का दावा

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ऐतिहासिक संपत्तियों पर किसी पूर्व शासक के वंशज का दावा वर्तमान कानून के अनुसार मान्य नहीं है. न्यायालय ने इस तरह की याचिकाओं को इतिहास के विरासत स्थलों पर अनुचित कब्जे की कोशिश बताया.