Delhi Riots Conspiracy Case: छात्र कार्यकर्ता शरजील इमाम ने शनिवार (6 सितंबर) को सुप्रीम कोर्ट में जमानत के लिए याचिका दायर की. यह कदम दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा 2 सितंबर को उनकी जमानत याचिका खारिज किए जाने के तीन दिन बाद उठाया गया. यह मामला फरवरी 2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों से जुड़े बड़े साजिश मामले से संबंधित है. 28 जनवरी 2020 से हिरासत में शरजील ने पिछले पांच साल से अधिक समय तक ट्रायल शुरू होने का इंतजार किया है. उनकी याचिका में कहा गया है कि लंबी हिरासत और ट्रायल में देरी के लिए उन्हें दोषी नहीं ठहराया जा सकता.
उनकी याचिका में दलील दी गई है, "पांच साल से अधिक की हिरासत के बावजूद जमानत से वंचित करना एक अंडरट्रायल को सजा देने जैसा है."
दिल्ली हाई कोर्ट ने खारिज कर दी थी जमानत याचिका
2 सितंबर को जस्टिस नवीन चावला और शालिंदर कौर (अब सेवानिवृत्त) की बेंच ने शरजील इमाम और उमर खालिद सहित नौ आरोपियों की जमानत याचिकाएं खारिज कर दी थीं. कोर्ट ने माना कि इनकी भूमिका प्रथम दृष्टया गंभीर थी. हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था, "नागरिकों द्वारा प्रदर्शन या आंदोलन के नाम पर साजिशपूर्ण हिंसा को अनुमति नहीं दी जा सकती.". दिल्ली पुलिस ने दावा किया कि शरजील और उमर खालिद इस साजिश के मास्टमाइंड थे. पुलिस ने आरोप लगाया कि दोनों ने व्हाट्सएप ग्रुप बनाए, मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों में पर्चे बांटे और चक्का-जाम की योजना बनाई. कोर्ट में अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया, "हिंसा सहज नहीं थी, बल्कि यह पहले से नियोजित और सुनियोजित साजिश थी."
दंगों से मेरा कोई संबंध नहीं
शरजील की ओर से वकील फौजिया शकील ने तर्क दिया कि उनके मुवक्किल दंगों से पहले से हिरासत में थे और उनकी कोई प्रत्यक्ष भूमिका हिंसा में नहीं थी. शरजील ने दावा किया, "मेरे भाषणों का दंगों से कोई संबंध नहीं था." उन्होंने 2021 में जमानत पाने वाले अन्य कार्यकर्ताओं जैसे नताशा नरवाल और देवांगना कलिता के साथ समानता की मांग की. उमर खालिद ने भी अपने अमरावती भाषण को सामान्य बताते हुए कहा कि यह दंगों से संबंधित नहीं था. सुप्रीम कोर्ट जल्द ही इस मामले की सुनवाई कर सकता है. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला यूएपीए के तहत जमानत के कठिन नियमों और स्वतंत्रता के अधिकारों के बीच संतुलन का परीक्षण होगा.