Delhi Cloud Seeding Experiment: दिल्ली सरकार प्रदूषण नियंत्रण के लिए इस बार अनोखा प्रयोग करने जा रही है. राजधानी में पहली बार क्लाउड सीडिंग यानी कृत्रिम बारिश कराने का ट्रायल सितंबर के पहले दो हफ्तों में किया जाएगा. इस प्रयोग का नेतृत्व आईआईटी कानपुर कर रहा है. सरकार ने इस परियोजना के लिए 3.21 करोड़ रुपये का बजट तय किया है.
पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने बताया कि शुरुआत में यह ट्रायल जुलाई में होना था, लेकिन मौसम अनुकूल न होने की वजह से इसे टाल दिया गया. अब यह परीक्षण मानसून के लौटते समय होगा, जब बादलों में पर्याप्त नमी होती है. सरकार ने साफ किया है कि यह एक वैज्ञानिक प्रयोग है और इसका मकसद केवल अस्थायी राहत देना है, ताकि प्रदूषण के खिलाफ दीर्घकालिक रणनीतियों के साथ-साथ तुरंत राहत का भी उपाय मिले.
ट्रायल के लिए सीसना 206-एच विमान का इस्तेमाल होगा जिसे खास तौर पर तैयार किया गया है. यह विमान बादलों के आधार यानी क्लाउड बेस के नीचे उड़कर सोडियम क्लोराइड, आयोडाइज्ड साल्ट, सिल्वर आयोडाइड और रॉक साल्ट जैसे कण छोड़ेगा. ये कण पानी की बूंदों को बनने और इकट्ठा होने में मदद करते हैं, जिससे बारिश होती है. हर उड़ान में करीब 100 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को कवर किया जाएगा.
आईआईटी कानपुर, आईआईटीएम पुणे, भारत मौसम विज्ञान विभाग और डीजीसीए इस परियोजना से जुड़े हुए हैं. पांच उड़ानों में उत्तर और बाहरी दिल्ली के प्रदूषण प्रभावित क्षेत्र रोहिणी, बवाना, अलीपुर और बुराड़ी के साथ ही उत्तर प्रदेश के लोनी और बागपत को शामिल किया गया है.
दिल्ली में हर साल अक्टूबर-नवंबर के दौरान वायु गुणवत्ता खतरनाक स्तर तक पहुंच जाती है. पीएम 2.5 का स्तर औसतन 175 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज हुआ है, जो स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक है. कृत्रिम बारिश से हवा में मौजूद जहरीले कण नीचे गिर सकते हैं और प्रदूषण में अस्थायी कमी आ सकती है.
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर ट्रायल सफल रहा तो राजधानी को प्रदूषण से निपटने का एक नया विकल्प मिल सकता है. बारिश के पानी की जांच करके वैज्ञानिक इसमें मौजूद रसायनों के अवशेष और वायु गुणवत्ता में बदलाव का अध्ययन करेंगे. इसके बाद बड़े पैमाने पर इस तकनीक को एनसीआर के अन्य इलाकों में भी लागू किया जा सकता है.