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छत्तीसगढ़: 3 दिन से रखा हुआ है ईसाई व्यक्ति का शव, गांववालों ने दफनाने से किया इनकार; जानें वजह

छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले में ईसाई धर्म अपनाने वाले व्यक्ति के दफनाने पर विवाद हो गया. गांववालों के विरोध के कारण शव तीन दिन तक बिना अंतिम संस्कार के भटकता रहा. प्रशासन व पुलिस की मौजूदगी में भी कोई समाधान नहीं निकल सका.

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Edited By: Km Jaya
Villagers block Dead man India daily
Courtesy: Grok AI

कांकेर: छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले के कोडेकुर्से गांव में 50 वर्षीय मनीष निषाद नामक ईसाई व्यक्ति का अंतिम संस्कार करने से ग्रामीणों द्वारा मना करने के बाद विवाद छिड़ गया है. उनका परिवार तीन दिनों से शव को गांवों के बीच घुमा रहा है, ग्रामीणों के विरोध के कारण अंतिम संस्कार नहीं कर पा रहा है.

ईसाई धर्म अपनाने वाले निषाद की मंगलवार को रायपुर में इलाज के दौरान मृत्यु हो गई. जब उनका परिवार शव को अपनी निजी जमीन पर दफनाने के लिए घर लाया, तो ग्रामीणों ने यह कहते हुए विरोध किया कि पारंपरिक धर्म छोड़ने वालों को गांव की सीमा के भीतर नहीं दफनाया जा सकता. पुलिस ने हस्तक्षेप किया, लेकिन शांति स्थापित नहीं कर पाई. इसके बाद ईसाई समुदाय ने शव को दफनाने के अधिकार की मांग करते हुए कोडेकुर्से पुलिस थाने का घेराव कर दिया.

तीन दिन क्यों नहीं दफनाया गया?

पुलिस ने शव को कोडेकुर्से अस्पताल के शवगृह में स्थानांतरित कर दिया. शुक्रवार को, परिवार पुलिस की एक टीम के साथ शव को शांतिपूर्ण अंतिम संस्कार की उम्मीद में चारमा ले गया. हालांकि, एक हिंदू संगठन के सदस्यों ने वाहन को रोक दिया और कहा कि वे अंतिम संस्कार में बाधा डालेंगे. तनाव बढ़ने पर, शव को रायपुर ले जाया गया, जहां निषाद की मृत्यु के तीसरे दिन तक शव को दफनाया नहीं गया है.

पादरी ने क्या कहा?

चारमा स्थित अनुग्रह प्रार्थना सभा के पादरी मोहन ग्वाल ने कहा, 'हम उन्हें उनकी निजी जमीन पर ही दफनाना चाहते थे. कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं है. प्रशासन ने कोई पहल नहीं की है. यह पहली घटना नहीं है, लेकिन जब तक जमीन उपलब्ध नहीं कराई जाती, हम उन्हें कहीं और नहीं दफनाएंगे.'

जिला पंचायत सदस्य ने क्यों दिया ग्रामीणों का साथ?

जिला पंचायत सदस्य देवेंद्र टेकाम ने ग्रामीणों के रुख को उचित ठहराते हुए कहा, 'कोडेकुर्से पारंपरिक रीति-रिवाजों का पालन करता है. समुदाय की अपनी दफनाने की व्यवस्था है. अगर शव को दफनाना ही है, तो उसे गांव की परंपरा के अनुसार दफनाना चाहिए; अन्यथा, उसे गांव के बाहर ले जाना चाहिए.'

ग्रामीणों ने क्या कहा?

ग्रामीण रघुनंदन गोस्वामी ने कहा, 'उन्होंने अपना मूल धर्म छोड़ दिया. हमने प्रशासन से कहा कि जब तक वे अपने पुराने धर्म में वापस नहीं लौटेंगे, हम यहां दफनाने की इजाजत नहीं देंगे. यह पांचवीं अनुसूची का क्षेत्र है और हम अपने रीति-रिवाजों का पालन कर रहे हैं.'

पहले भी हुआ ऐसा मामला

यह मामला छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाके में पहले हुई कई घटनाओं से मिलता-जुलता है. जुलाई 2025 में, कांकेर के जामगांव गांव में उस समय हिंसा भड़क उठी जब स्थानीय लोगों ने एक अन्य ईसाई व्यक्ति को दफनाने का विरोध किया. भीड़ ने गिरजाघरों में भी तोड़फोड़ की और घरों पर हमले किए. इस साल की शुरुआत में, बस्तर में एक पादरी के दफनाने को लेकर इसी तरह का एक विवाद सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया था.