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कौन हैं वो 6 नक्सली? जिनकी इन 3 राज्यों की पुलिस कर रही है तलाश; जानें MMC स्पेशल जोन के पतन की पूरी कहानी

एमएमसी विशेष क्षेत्र, जो कभी माओवादियों का शक्तिशाली गढ़ था, अब केवल छह नक्सलियों के छिपने का क्षेत्र रह गया है. पुलिस का मानना है कि बचे हुए छह माओवादी भी जल्द सरेंडर करेंगे या पकड़े जाएंगे.

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Edited By: Km Jaya
Naxalites India daily
Courtesy: @KaiserEjaz x account

रायपुर: कभी माओवादियों का मजबूत गढ़ रहा एमएमसी विशेष क्षेत्र अब केवल छह नक्सलियों के छिपने की जगह बनकर रह गया है. महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के सीमावर्ती इलाकों में फैला यह क्षेत्र 1990 के दशक से 2020 तक दंडकारण्य के बाहर सबसे खतरनाक माओवादी जोन माना जाता था. 

यहां घात लगाकर हमले, आईईडी धमाके और कई हत्याएं आम बात थीं. लेकिन 28 नवंबर से हालात तेजी से बदले. महाराष्ट्र के गोंदिया जिले में 11 माओवादियों ने आत्मसमर्पण किया, जिनमें हॉक फोर्स इंस्पेक्टर आशीष शर्मा की हत्या का मास्टरमाइंड विकास नागपुरे उर्फ अनंत भी शामिल था. यह इस बात का संकेत था कि माओवादी ढांचा बिखरना शुरू हो गया है.

कितने माओवादियों ने किया आत्मसमर्पण?

इस घटना के दस दिनों में ही 33 माओवादियों ने आत्मसमर्पण कर दिया. एमएमसी क्षेत्र जहां कभी गोंदिया से बालाघाट और खैरागढ़ से कबीरधाम तक एक मजबूत माओवादी नेटवर्क चला करता था, अब केवल छह माओवादी बच गए हैं. मध्य प्रदेश के बालाघाट में हाल ही में 10 माओवादियों ने मुख्यमंत्री मोहन यादव के सामने आत्मसमर्पण किया था. 

आत्मसमर्पण करने वालों में विशेष क्षेत्रीय समिति के सदस्य सुरेंद्र उर्फ कबीर सोडी भी शामिल थे. उन्होंने INSAS, AK और अन्य हथियारों के साथ सरेंडर किया. इससे उत्तरी एमएमसी की संरचना पूरी तरह ढह गई.

माओवादियों को सबसे बड़ा झटका कब लगा?

सबसे बड़ा झटका तब लगा जब एमएमसी के दक्षिणी क्षेत्र के शीर्ष कमांडर और सीपीआई माओवादी की केंद्रीय समिति के सदस्य रामधर मजी ने भी सरेंडर कर दिया. वह 14 सदस्यीय एलीट हमला दस्ते के प्रमुख था और राजनांदगांव, खैरागढ़ और बालाघाट गलियारे में कई हमलों के मास्टरमाइंड माने जाता था.

वह तीन राज्यों की पुलिस के लिए सबसे बड़ा लक्ष्य था. तेलुगु, गोंडी और हिंदी भाषा में दक्ष रामधर घने जंगलों में 40 किलोमीटर तक पैदल चलने की क्षमता रखते था. उसे फील्ड लेवल ब्रेन कहा जाता था.

कितने हथियारबंद माओवादी करते थे उसकी सुरक्षा?

उसकी सुरक्षा में सात हथियारबंद माओवादी रहते थे, जिसमें सुकाश उर्फ रंगा, मुन्ना, राम सिंह, रोनी, लक्ष्मी और सागर शामिल थे. इसे डेडली ग्रुप कहा जाता था. लेकिन माओवादी लगातार थकान, कमजोर सप्लाई लाइन, टूटे हुए संचार और नेतृत्व से दूरी के कारण बिखरने लगे. कई पुराने माओवादी हिंसा छोड़ने के इच्छुक हो गए. आखिरकार रामधर ने भी संघर्ष छोड़ दिया और कहा कि केंद्रीय समिति से संपर्क टूट गया था और अनंत के आत्मसमर्पण के बाद संघर्ष का अंत साफ हो गया था.

अब इस इलाके में सिर्फ छह माओवादी सक्रिय माने जा रहे हैं. इनमें रामधर के टूटे हुए मलाजखंड दलम के दो और अनंत की यूनिट के चार लोग शामिल हैं. पुलिस का मानना है कि वे ज्यादा समय तक बच नहीं पाएंगे क्योंकि तीनों राज्यों की संयुक्त टीमें उन्हें चौबीसों घंटे ट्रैक कर रही हैं.