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'9 दिन बाद भी किसी भी पार्टी ने नहीं उठाई आवाज', बिहार में ड्राफ्ट वोटर लिस्ट को लेकर चुनाव आयोग ने दिया अपडेट

बिहार चुनाव 2025 से पहले जारी ड्राफ्ट वोटर लिस्ट पर आम लोगों ने तो प्रतिक्रिया दी, लेकिन राजनीतिक दलों की चुप्पी हैरान करने वाली है. 1 अगस्त से 9 अगस्त तक किसी भी पार्टी ने नाम जोड़ने या हटाने को लेकर चुनाव आयोग के सामने कोई आपत्ति या दावा नहीं पेश किया.

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Edited By: Princy Sharma
Bihar Elections 2025
Courtesy: Social Media

Bihar Elections 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले जारी की गई ड्राफ्ट वोटर लिस्ट पर जहां आम लोगों ने सक्रियता दिखाई है, वहीं राजनीतिक दलों की चुप्पी ने सबको चौंका दिया है. चुनाव आयोग के अनुसार, 1 अगस्त को ड्राफ्ट लिस्ट जारी होने के बाद बीते 9 दिनों में किसी भी राजनीतिक पार्टी ने किसी नाम को जोड़ने या हटाने को लेकर कोई आपत्ति या दावा दर्ज नहीं कराया.

आयोग ने बताया कि यह लिस्ट 1 सितंबर तक दावों और आपत्तियों के लिए खुली रहेगी. इस दौरान आम नागरिकों के साथ-साथ राजनीतिक दलों को भी यह मौका दिया गया है कि वे योग्य मतदाताओं के नाम जोड़ने या फर्जी और मृत लोगों के नाम हटवाने के लिए आवेदन करें. लेकिन अब तक एक भी पार्टी के बूथ लेवल एजेंट (BLA) ने कोई सक्रियता नहीं दिखाई है.

चुनाव आयोग ने की थी अपील

इसके उलट, आम जनता की तरफ से अब तक 7,252 लोग आयोग से संपर्क कर चुके हैं. ये सभी नागरिक अपने नाम जुड़वाने या गलत एंट्री हटवाने को लेकर प्रक्रिया में भाग ले रहे हैं. चुनाव आयोग ने अपील करते हुए कहा है कि किसी भी योग्य मतदाता का नाम लिस्ट से नहीं हटाया जाएगा और किसी भी अयोग्य व्यक्ति को शामिल नहीं किया जाएगा. आयोग ने सभी नागरिकों और राजनीतिक दलों से आग्रह किया है कि ड्राफ्ट लिस्ट को ध्यान से जांचें और समय रहते दावे-आपत्तियां दर्ज कराएं.

SIR के तहत की जारी प्रक्रिया

गौर करने वाली बात यह है कि यह पूरी प्रक्रिया ‘स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR)’ के तहत की जा रही है, जिसे लेकर विपक्ष लगातार सवाल उठा रहा है. विपक्ष का आरोप है कि डॉक्यूमेंट की सख्ती के चलते कई योग्य लोग वोटर लिस्ट से बाहर हो सकते हैं. इस मुद्दे पर संसद के दोनों सदनों में भी विपक्षी दलों ने हंगामा किया है.

आयोग ने यह भी साफ किया है कि अंतिम वोटर लिस्ट 30 सितंबर 2025 को जारी की जाएगी. अब देखना होगा कि क्या राजनीतिक दल समय रहते जागते हैं या फिर आम मतदाता ही अपने लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा के लिए आगे आता है.