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महान अंपायर डिकी बर्ड का 92 साल में निधन, भारत के पहले विश्व कप जीतने के रहे गवाह

Umpire Dickie Bird dies at 92: क्रिकेट जगत की एक अनमोल धरोहर, विश्व प्रसिद्ध अंपायर डिकी बर्ड का मंगलवार को उनके घर पर 92 वर्ष की आयु में निधन हो गया. यॉर्कशायर काउंटी क्रिकेट क्लब ने इस दुखद खबर की घोषणा करते हुए गहन शोक व्यक्त किया है.

Umpire Dickie Bird dies at 92
Courtesy: x/ @HomeOfCricket

Umpire Dickie Bird dies at 92: क्रिकेट जगत के चहेते अंपायर डिकी बर्ड का 92 वर्ष की आयु में निधन हो गया. 23 सितंबर, मंगलवार को उनका निधन उनके घर पर हुआ. यॉर्कशायर काउंटी क्रिकेट क्लब ने गहरे दुख के साथ उनकी मौत की खबर दी और उन्हें न केवल यॉर्कशायर क्रिकेट का प्रतीक, बल्कि क्रिकेट के इतिहास के महानतम और सबसे प्रिय शख्सियतों में से एक बताया.

कौन था डिकी बर्ड?

डिकी बर्ड का जन्म 19 अप्रैल 1933 को इंग्लैंड के बार्न्सले, यॉर्कशायर में हुआ था. उनका जीवन क्रिकेट के प्रति गहरी निष्ठा और समर्पण का उदाहरण रहा. बर्ड खुद एक प्रतिभाशाली बल्लेबाज थे और उन्होंने यॉर्कशायर और लेस्टरशायर के लिए प्रथम श्रेणी क्रिकेट खेला, लेकिन चोटों के कारण उनका खेल जीवन जल्दी समाप्त हो गया. इसके बाद, अंपायरिंग में उनके योगदान ने उन्हें क्रिकेट इतिहास में स्थायी स्थान दिलाया.

अंपायर के रूप में डिकी बर्ड की महानता

डिकी बर्ड ने 1973 से 1996 तक 66 टेस्ट मैचों और 69 एकदिवसीय मैचों में अंपायरिंग की. वे तीन क्रिकेट विश्व कप फाइनल्स में भी अंपायर रहे. उनकी अंपायरिंग शैली में एक विशेष प्रकार की गरिमा और गर्मजोशी का मिश्रण था, जिसने उन्हें खिलाड़ियों और दर्शकों दोनों के बीच बहुत लोकप्रिय बना दिया.

उनका मानवीय दृष्टिकोण, न्यायप्रियता और विनम्रता उनके अंपायरिंग करियर के मुख्य गुण रहे. उनके विशेष हाव-भाव सफेद हैट पहनने की उनकी आदत, और खेलने के दौरान उनकी घबराहट से भरी चालें दर्शकों के दिलों में बस गईं.

1983 विश्व कप फाइनल में रही अहम भूमिका

डिकी बर्ड उन दो अंपायरों में से एक थे जब भारत ने 1983 में अपना पहला 50 ओवर का विश्व कप जीता था. यह उनके करियर का एक महत्वपूर्ण क्षण था, जब उन्होंने विश्व क्रिकेट को एक ऐतिहासिक क्षण का हिस्सा बनने का अवसर दिया. 1996 में, डिकी बर्ड का अंतिम टेस्ट मैच लंदन के लॉर्ड्स क्रिकेट ग्राउंड में हुआ.

इस मैच में इंग्लैंड और भारत के खिलाड़ियों ने उन्हें सम्मानित करते हुए गार्ड ऑफ ऑनर प्रदान किया और दर्शकों ने उन्हें खड़े होकर सलाम किया. यह एक अंपायर के लिए दुर्लभ और अभूतपूर्व श्रद्धांजलि थी. यह मैच विशेष रूप से यादगार था क्योंकि इसमें सौरव गांगुली और राहुल द्रविड़ ने अपने टेस्ट करियर की शुरुआत की थी.

पुस्तक और पुरस्कारों से सम्मानित

डिकी बर्ड का जीवन केवल मैदान तक ही सीमित नहीं था. उनकी आत्मकथा ने एक मिलियन से अधिक प्रतियाँ बेचीं, और उन्होंने खुद को एक राष्ट्रीय धरोहर के रूप में स्थापित किया. उनके योगदान के लिए उन्हें 1986 में MBE (Member of the British Empire) और 2012 में OBE (Officer of the British Empire) जैसे सम्मान मिले थे. 2014 में उन्हें यॉर्कशायर काउंटी क्रिकेट क्लब का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था, और इस दौरान क्लब ने दो काउंटी चैंपियनशिप खिताब भी जीते.

1973 बम धमकी का सामना

डिकी बर्ड की लोकप्रियता सिर्फ उनके अंपायरिंग कौशल तक सीमित नहीं थी, बल्कि उनकी eccentricities (अनोखी आदतें) और मानवता भी इस प्रसिद्धि का कारण बनीं. 1973 में इंग्लैंड और वेस्ट इंडीज के बीच एक टेस्ट मैच के दौरान बम धमकी से खेल में रुकावट आई थी. सुरक्षा कारणों से स्टेडियम को खाली करने का आदेश दिया गया, लेकिन बर्ड शांतिपूर्वक मैदान पर बने रहे. उन्होंने बाद में कहा, "मुझे लगा कि सबसे सुरक्षित जगह मध्य में थी, इसलिए मैं कवर पर बैठा रहा, और वेस्ट इंडीज़ के समर्थकों ने मेरे चारों ओर घेर लिया था."

इस घटनाक्रम ने उनकी शांति और धैर्य को दर्शाया, जो क्रिकेट जगत में हमेशा याद रखा जाएगा. डिकी बर्ड ने न केवल क्रिकेट को बल्कि खेल जगत को भी एक मानवीय दृष्टिकोण और दिल से खेलने की प्रेरणा दी. उन्होंने अपने द्वारा बनाए गए डिकी बर्ड फाउंडेशन के माध्यम से समाज के गरीब और जरूरतमंद बच्चों को खेल में भाग लेने का अवसर प्रदान किया.