नई दिल्ली: बिहार की टॉप मोस्ट पॉलिटिकल फैमिली से ताल्लुकात रखने वाली रोहिणी आचार्य, बिहार चुनाव के बाद सुर्खियों में है. उन्होंने कभी अपने पिता लालू प्रसाद यादव की जान बचाने के लिए अपनी एक किडनी दान की थी. तब उन्होंने गर्व से कहा था कि यह तो सिर्फ मांस का छोटा सा हिस्सा है, जिसे वह पापा के लिए खुशी-खुशी देना चाहती हैं.
तब उनके शब्दों और आंखों में पिता के प्रति अपार प्रेम झलकता था. लेकिन बिहार चुनाव खत्म होने के बाद परिवार के लिए हमेशा समर्पित रहने वाली रोहिणी बेहद आहत हैं और यह उनकी हालिया सोशल मीडिया पोस्ट से साफ दिखता है. हालात इतने बिगड़ गए कि उन्होंने भारी मन से खुद को परिवार से अलग करने का फैसला कर लिया.
रोहिणी ने पिता को किडनी डोनेट करने के फैसले को भी अपनी नासमझी करार दिया और कहा कि कोई भी महिला ऐसा न करे. उन्होंने कहा कि शादी के बाद ससुराल ही महिला का घर होता है और महिलाओं को अपने ससुराल के प्रति ही जिम्मेदार होना चाहिए.
रोहिणी ने भले ही पिता के लिए किडनी डोनेट के अपने फैसले को गलत बताया हो, लेकिन भारत जैसे देश में ससुराल हो या मायका, महिलाओं के लिए अंग दान विशेषकर किडनी डोनेट करने का फैसला, जान की बाजी लगाने वाला ही साबित होता है, बावजूद इसके महिलाएं बड़ा दिल दिखाते हुए परिवार के सदस्यों की जान बचाती है.
भारत में जीवित अंग दान (ऑर्गन डोनेशन) को लेकर एक बड़ा असंतुलन है. राष्ट्रीय अंग एवं ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (NOTTO) की एक रिपोर्ट बताती है कि देश में 80% जीवित अंग दान करने वालों में महिलाएं होती हैं, जबकि अंग प्राप्त करने वालों में महिलाओं की हिस्सेदारी सिर्फ 18.9% है. यह आंकड़े एक्सपेरिमेंटल एंड क्लीनिकल ट्रांसप्लांटेशन जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन पर आधारित हैं.
अध्ययन में 1995 से 2021 के बीच किए गए 36,640 अंग प्रत्यारोपण प्रक्रियाओं का विश्लेषण किया गया. इसमें पाया गया कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं को अंग प्रत्यारोपण का लाभ बहुत कम मिला. कुल प्राप्तकर्ताओं में सिर्फ 6,945 महिलाएं (18.9%) थीं, जबकि बाकी पुरुष थे. कई चिकित्सकों का मानना है कि यह अंतर केवल सामाजिक कारणों से नहीं, बल्कि बीमारी के पैटर्न से भी प्रभावित होता है. भारत में पुरुषों में शराब सेवन की प्रवृत्ति अधिक है, जिसकी वजह से उनके लिवर और किडनी खराब होने की संभावना भी ज्यादा होती है.
रिपोर्ट बताती है कि भारत में सामाजिक सोच महिलाओं और पुरुषों के प्रति अलग होती है. एक पुरुष के लिए अंग दान से मना करना आसान माना जाता है, जबकि महिलाओं को अक्सर देखभाल करने की भूमिका में देखा जाता है. कई बार महिलाएं अपनी सेहत को खतरे में डालकर भी पति, पिता या बेटे की जान बचाने के लिए अंग दान कर देती हैं. दूसरी ओर, पुरुषों पर परिवार पालने की जिम्मेदारी अधिक मानी जाती है, इसलिए समाज में उन पर अंग दान करने का दबाव कम होता है.
विशेषज्ञों का कहना है कि असंतुलन सिर्फ लिंग आधारित नहीं है. जब दाता और प्राप्तकर्ता एक ही परिवार के न हों, तो अधिकतर मामलों में दाता, प्राप्तकर्ता की तुलना में गरीब होता है. इसके अलावा, दान देने वाला व्यक्ति अक्सर उम्र में छोटा होता है, जबकि प्राप्तकर्ता उम्र में बड़ा होता है. यह स्थिति केवल विकासशील देशों तक सीमित नहीं है. अमेरिका जैसे विकसित देशों में भी वीमेन डोनर्स की संख्या अधिक पाई गई है.
डब्ल्यूएचओ के अनुसार, जीवित अंग प्रत्यारोपण में भारत अब अमेरिका के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा केंद्र बन गया है. दोनों देशों में महिला दाताओं की संख्या पुरुषों से अधिक है. भारत में 74% किडनी डोनर महिलाएं हैं, जबकि अमेरिका में यह आंकड़ा 62% है. लिवर दान के मामलों में भी भारत में महिलाओं की संख्या 60.5% और अमेरिका में 53% है.
क्राउडफंडिंग प्लेटफॉर्म मिलाप द्वारा जुटाए गए आंकड़ों में भी यही प्रवृत्ति दिखती है. उनके द्वारा मदद किए गए 495 लिवर ट्रांसप्लांट में से 66% पुरुष मरीजों के लिए और 34% महिला मरीजों के लिए थे.