India Pakistan Tension: पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत की ओर से किए गए 'ऑपरेशन सिंदूर' ने भारत-पाकिस्तान रिश्तों में भारी उबाल ला दिया है. दोनों देश अब एक संभावित युद्ध के मुहाने पर खड़े हैं. भारत ने पाकिस्तान में मौजूद आतंकी ठिकानों को निशाना बनाकर स्पष्ट कर दिया है कि वह अब आतंकी हमलों पर चुप नहीं बैठेगा, लेकिन इस बार जो सबसे ज्यादा हैरान कर रहा है, वह है अमेरिका का रवैया.
ट्रंप की चुप्पी और सीमित प्रतिक्रिया
बता दें कि डोनाल्ड ट्रंप ने इस गंभीर स्थिति पर कोई ठोस पहल नहीं की है. उन्होंने बस इतना कहा, ''मैं बस उम्मीद करता हूं कि यह जल्दी खत्म हो जाए.'' इसके बाद उन्होंने जोड़ा, ''मैं दोनों के साथ मिलता हूं, दोनों को जानता हूं और उन्हें इसे हल करते देखना चाहता हूं.'' ट्रंप ने साफ कहा, “अगर मैं मदद कर सकता हूं, तो मैं वहां रहूंगा.'' यानी अमेरिका का रुख इस बार काफी शांत और सीमित है.
अमेरिका का बदलता दृष्टिकोण?
वहीं, अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने भारत और पाकिस्तान के शीर्ष अधिकारियों से बात की है, लेकिन अमेरिका की ओर से कोई ठोस कूटनीतिक प्रयास अब तक नहीं दिखा है. सवाल उठता है कि क्या अमेरिका इंतजार कर रहा है कि हालात और बिगड़ें, फिर वो बीच में आए? पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप का इतिहास बताता है कि वो केवल तभी हस्तक्षेप करना पसंद करते हैं जब उन्हें पूर्ण नियंत्रण या लाभ दिखे.
इसके अलावा, यूक्रेन युद्ध पर बयानबाजी करने वाले ट्रंप अब तक भारत-पाक संकट पर निष्क्रिय दिखे हैं. 2019 के पुलवामा हमले के वक्त अमेरिका ने अहम भूमिका निभाई थी. लेकिन आज हालात अलग हैं. कार्नेगी एंडोमेंट के विशेषज्ञ मिलन वैष्णव के मुताबिक, ''भारत अब अमेरिका के लिए सबसे अहम रणनीतिक साझेदार बन गया है, जबकि पाकिस्तान की अहमियत घट गई है.''
मुस्लिम देशों की सक्रियता, अमेरिका की दूरी
हालांकि इस बार कतर, सऊदी अरब और यूएई जैसे देश अधिक सक्रिय हैं. कतर के अमीर ने पीएम मोदी से बात कर हमले की निंदा की. वहीं पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति को देखते हुए सऊदी और यूएई दबाव बना सकते हैं. दूसरी ओर, अमेरिका की तरफ से अब तक कोई ठोस मध्यस्थता की पहल नहीं दिखी है.