कैलिफोर्निया स्थित SLAC नेशनल एक्सेलेरेटर लेबोरेटरी के वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने एक ऐसा रासायनिक यौगिक बना डाला है जो अब तक केवल सैद्धांतिक तौर पर ही संभव माना जाता था. यह खोज उस समय हुई जब वैज्ञानिक हीरे बनाने के लिए हाइड्रोकार्बन पर परीक्षण कर रहे थे. अत्यधिक तापमान और दबाव की स्थिति में प्रयोग करते हुए वैज्ञानिकों ने अनजाने में एक ठोस बाइनरी यौगिक तैयार कर लिया 'गोल्ड हाइड्राइड', जो केवल सोने और हाइड्रोजन परमाणुओं से मिलकर बना है.
वैज्ञानिकों ने बताया कि यह खोज पूरी तरह अप्रत्याशित थी क्योंकि सोना सामान्यतः एक निष्क्रिय तत्व माना जाता है जो रासायनिक प्रतिक्रिया नहीं करता. SLAC के स्टाफ साइंटिस्ट मंगो फ्रॉस्ट के अनुसार, सोना अक्सर इन प्रयोगों में सिर्फ एक्स-रे अवशोषक के तौर पर इस्तेमाल होता है. लेकिन जब हाइड्रोजन ने सोने के साथ मिलकर एक नया यौगिक तैयार कर लिया, तो वैज्ञानिक भी चौंक गए. यह खोज यह साबित करती है कि अत्यधिक दबाव और तापमान के हालात में पारंपरिक रसायन शास्त्र के नियम बदल सकते हैं और नई प्रकार की रसायन विज्ञान संभव हो सकती है.
इस प्रयोग में वैज्ञानिकों ने 'डायमंड ऐनविल सेल' नामक उपकरण का प्रयोग किया, जिससे हाइड्रोकार्बन के नमूनों को पृथ्वी के मैंटल से भी अधिक दबाव में रखा गया. इसके बाद उन्हें 3,500 डिग्री फॉरेनहाइट से ज्यादा तापमान पर गर्म किया गया. यूरोपियन XFEL द्वारा उत्सर्जित एक्स-रे पल्स की मदद से इन नमूनों पर पड़ने वाले प्रभावों को ट्रैक किया गया. एक्स-रे स्कैटरिंग पैटर्न से जहां हीरे बनने की पुष्टि हुई, वहीं कुछ अनचाहे संकेत यह भी दर्शा रहे थे कि हाइड्रोजन, प्रयोग में इस्तेमाल हो रहे सोने की फॉइल के साथ प्रतिक्रिया कर रहा है और 'गोल्ड हाइड्राइड' बना रहा है.
प्रयोग के दौरान यह भी देखा गया कि हाइड्रोजन सुपरआयनिक अवस्था में पहुंच गया था, यानी वह सोने की क्रिस्टल संरचना के भीतर बहुत तेज़ी से बह रहा था. इससे गोल्ड हाइड्राइड की विद्युत-चालकता भी बढ़ गई. चूंकि हाइड्रोजन बहुत हल्का होता है और आमतौर पर एक्स-रे से ट्रैक करना मुश्किल होता है, इसलिए वैज्ञानिकों ने इस बार सोने की क्रिस्टल संरचना को ‘गवाह’ की तरह इस्तेमाल किया ताकि हाइड्रोजन के व्यवहार को समझा जा सके. इस अनोखे संयोजन ने वैज्ञानिकों को हाइड्रोजन के उच्च दबाव में होने वाले व्यवहार की झलक दी.
गोल्ड हाइड्राइड की यह खोज केवल प्रयोगशाला तक सीमित नहीं है. इससे वैज्ञानिक अब घने ग्रहों के आंतरिक ढांचे को समझने में सक्षम होंगे, जहां इसी प्रकार के चरम हालात होते हैं. साथ ही यह फ्यूजन रिएक्शन की समझ को भी आगे बढ़ा सकता है, जो सूरज जैसे तारों में लगातार हो रहा है. पृथ्वी पर फ्यूजन एनर्जी को नियंत्रित करने और इस्तेमाल में लाने की दिशा में यह एक संभावित क्रांति हो सकती है.