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जब रूस ने पार की थी आसमान की हदें, नापी थी अंतरिक्ष की गहराई, थ्रिलर की तरह है पहली स्पेस उड़ान की कहानी

हर साल 12 अप्रैल को दुनिया भर में मानव अंतरिक्ष उड़ान का अंतर्राष्ट्रीय दिवस (International Day of Human Space Flight) मनाया जाता है. यह दिन 1961 में हुई पहली मानव अंतरिक्ष उड़ान की याद में मनाया जाता है, जिसे सोवियत अंतरिक्ष यात्री यूरी गागरिन ने अंजाम दिया था.

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Space Research

International Day of Human Space Flight: संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2011 में इस दिवस का ऐलान किया था जिसका मकसद स्पेस रिसर्च की दिशा में हुए विकास को याद करना और भविष्य की  यात्राओं के लिए प्रेरणा देना है. 12 अप्रैल 1961 का दिन इतिहास में हमेशा सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा.

यही वो दिन था जब मानव ने पहली बार अंतरिक्ष की यात्रा की थी. इस यान को पूरा करने वाले अंतरिक्ष यात्री थे सोवियत संघ के वीर यूरी गागरिन (Yuri Gagarin) और उनका यान था "वोस्तोक 1" (Vostok 1).

द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद शुरू हुई थी स्पेस रेस

द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद, शीत युद्ध के दौरान, अमेरिका और सोवियत संघ के बीच अंतरिक्ष क्षेत्र में वर्चस्व की लड़ाई शुरू हो गई, जिसे स्पेस रेस के नाम से जाना जाता है. दोनों देश आर्टिफिशियल सैटेलाइट्स और स्पेस क्राफ्ट को विकसित करने में लगे हुए थे. 

सोवियत स्पेस प्रोग्राम ने 1957 में स्पुतनिक 1 (Sputnik 1) को लॉन्च करके पहला आर्टिफिशियल सैटेलाइट स्पेस में भेजने और उससे कनेक्शन बरकरार रखने का कारनामा कर दिखाया था. इस सफलता के बाद, वोस्तोक कार्यक्रम की शुरुआत हुई, जिसका लक्ष्य अंतरिक्ष में पहला मानवयुक्त अंतरिक्ष यान भेजना था.

वोस्तोक 1- जिसने भरी सपनों की उड़ान

वोस्तोक 1 एक गोलाकार अंतरिक्ष यान था जिसका डाइमीटर लगभग 2.3 मीटर था. इसमें एक छोटा केबिन था जहां अंतरिक्ष यात्री रह सकता था. स्पेस में ऑटोमैटिक कंट्रोल सिस्टम के साथ-साथ जीवन रक्षक प्रणालियां भी थीं. वोस्तोक 1 को एक शक्तिशाली रॉकेट द्वारा कजाखस्तान में स्थित बैकोनूर कॉस्मोड्रोम (Baikonur Cosmodrome) से लॉन्च किया गया था.

एक सपने को साकार करते हुए यूरी गागरिन

उस समय एक युवा वायु सेना पायलट यूरी गागरिन को कड़ी मेहनत और लंबी ट्रेनिंग के बाद वोस्तोक 1 के लिए चुना गया था. अन्य वायु सेना पायलटों के साथ मुश्किल सेलेक्शन प्रोसेस के बाद, गागरिन को उनके शांत स्वभाव, तेज बुद्धि और मजबूत शरीर के कारण चुना गया. 12 अप्रैल 1961 की सुबह, गागरिन को वोस्तोक 1 में बिठाया गया और ऐतिहासिक उड़ान शुरू हुई. वोस्तोक 1 ने पृथ्वी की परिक्रमा 108 मिनट में पूरी की और कजाखस्तान में वापस आकर सफलतापूर्वक लैंड हुआ.

गागरिन की उड़ान का वैश्विक प्रभाव

गगारिन की उड़ान ने पूरी दुनिया को चौंका दिया. वह रातोंरात एक अंतर्राष्ट्रीय सनसनी बन गए. उनकी सफलता ने सोवियत संघ को स्पेस रेस में स्पष्ट रूप से आगे बढ़ा दिया. गागरिन की यात्रा ने स्पेस रिसर्च के एक नए युग की शुरुआत की और यह दर्शाया कि अंतरिक्ष यात्रा अब असंभव नहीं रही.

सिर्फ 108 मिनट की थी पहली अंतरिक्ष उड़ान

12 अप्रैल, 1961 को यूरी गागरिन ने अंतरिक्ष यान वोस्तोक 1 में पृथ्वी की परिक्रमा करने वाले पहले इंसान बनकर इतिहास रचा दिया था. उनकी यह यात्रा महज 108 मिनट की थी, लेकिन इसने स्पेस रिसर्च के एक नए युग की शुरुआत की. गागरिन की सफल उड़ान ने दिखाया कि स्पेस ट्रैवल अब सिर्फ सपना नहीं रहा, बल्कि वैज्ञानिक उपलब्धि बन चुका है.

यूरी गागरिन की पहली अंतरिक्ष उड़ान और वोस्तोक 1 की कहानी मानव इतिहास का एक महत्वपूर्ण क्षण है. इसने हमें ब्रह्मांड का पता लगाने और नई संभावनाओं को छूने की प्रेरणा दी. यह उपलब्धि हमें याद दिलाती है कि मानव जिज्ञासा और दृढ़ संकल्प क्या हासिल कर सकते हैं

भविष्य की तस्वीर दर्शाती है पहली उड़ान

मानव अंतरिक्ष उड़ान का अंतर्राष्ट्रीय दिवस सिर्फ एक ऐतिहासिक घटना को याद करने का दिन नहीं है, बल्कि यह भविष्य की तरफ भी देखता है. यह दिवस हमें स्पेस साइंस के क्षेत्र में हुई प्रगति पर गौर करने का मौका देता है. आर्टिफिशियल सैटेलाइट्स से लेकर स्पेस स्टेशन और अंतरिक्ष दूरबीनों तक, स्पेस प्रोग्राम्स ने हमारे जीवन को कई तरह से प्रभावित किया है. 

मौसम की जानकारी, कम्युनिकेशन, जीपीएस प्रणाली, ये सब स्पेस साइंस की ही देन हैं. यह दिवस हमें स्पेस रिसर्च के भविष्य के बारे में सोचने के लिए भी प्रेरित करता है. वैज्ञानिक लगातार मंगल और चंद्रमा पर मानव बस्ती बसाने की संभावनाओं पर रिसर्च कर रहे हैं. साथ ही, वे दूर के ग्रहों और ब्रह्मांड के रहस्यों को जानने के लिए भी निरंतर प्रयासरत हैं.

स्पेस रिसर्च एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है, जो न सिर्फ वैज्ञानिक खोजों को बढ़ावा देता है बल्कि अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को भी मजबूत करता है. विभिन्न देशों के वैज्ञानिक मिलकर अंतरिक्ष कार्यक्रमों पर काम करते हैं, जिससे वैज्ञानिक ज्ञान का आदान-प्रदान होता है और वैश्विक शांति को भी बढ़ावा मिलता है.

स्पेस रिसर्च के लाभ

ब्रह्मांड की उत्पत्ति और विकास को समझना: अंतरिक्ष दूरबीनों और अंतरिक्ष यानों से प्राप्त आंकड़ों का अध्ययन करके वैज्ञानिक ब्रह्मांड की उत्पत्ति और विकास के बारे में जानने का प्रयास कर रहे हैं.

पृथ्वी जैसे ग्रहों की खोज: अंतरिक्ष यान हमें दूर के ग्रहों के बारे में जानकारी जुटाने में मदद कर रहे हैं. वैज्ञानिक ऐसे ग्रहों की तलाश कर रहे हैं जिन पर जीवन संभव हो.

पृथ्वी का अध्ययन: अंतरिक्ष से प्राप्त उपग्रह इमेजरी जलवायु परिवर्तन, वायु प्रदूषण और प्राकृतिक आपदाओं के अध्ययन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है.

संसाधनों की खोज: अंतरिक्ष में क्षुद्रग्रहों और चंद्रमा पर खनिजों और अन्य संसाधनों के पाए जाने की संभावना है. वैज्ञानिक भविष्य में अंतरिक्ष से खनिजों और अन्य संसाधनों को प्राप्त करने की संभावनाओं पर भी विचार कर रहे हैं. ये संसाधन पृथ्वी पर संसाधनों के समाप्त होने पर महत्वपूर्ण हो सकते हैं.

कम्युनिकेशन में सुधार: अंतरिक्ष यान और उपग्रह दूरसंचार क्रांति के लिए आवश्यक हैं. आज हम दुनिया भर में फोन कॉल करने, इंटरनेट का उपयोग करने और टीवी देखने में सक्षम हैं, यह सब अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी की वजह से ही संभव है.

स्पेस साइंस के क्षेत्र में भारत की भूमिका

स्पेस साइंस के क्षेत्र में भारत एक तेजी से उभरता हुआ देश है. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं. भारत ने अपने पहले उपग्रह आर्यभट्ट को 1975 में सोवियत संघ की मदद से अंतरिक्ष में स्थापित किया था. तब से, इसरो ने कई उपग्रहों, अंतरिक्ष यानों और रॉकेटों का सफलतापूर्वक निर्माण और प्रक्षेपण किया है.

2014 में, भारत मंगल ग्रह तक पहुंचने वाला एशिया का पहला देश बन गया. इसरो के मंगलयान यान ने मंगल ग्रह की कक्षा में सफलतापूर्वक प्रवेश किया और महत्वपूर्ण वैज्ञानिक आंकड़े भेजे. 2016 में, भारत ने चंद्रयान-2 मिशन के अंतर्गत चंद्रमा की सतह पर उतरने का प्रयास किया था. हालांकि यह प्रयास असफल रहा था, लेकिन इसने भारत की महत्वाकांक्षा को दर्शाया और चंद्रयान-3 की सफलता ने भारत को उन देशों की लिस्ट में शुमार करा दिया जिन्होंने ये कारनामा कर के दिखाया था.