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पाकिस्तान के रक्षा मंत्री का यू-टर्न, इजरायल को मान्यता देने की क्यों करने लगे पैरवी

पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने हाल ही में एक सनसनीखेज बयान देकर सबको चौंका दिया है. उन्होंने संकेत दिए हैं कि अगर अब्राहम अकॉर्ड में शामिल होने का अवसर आया तो पाकिस्तान अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देते हुए इजरायल के साथ संबंध सामान्य करने पर विचार कर सकता है.

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Edited By: Gyanendra Sharma
khawaja asif
Courtesy: Social Media

पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने हाल ही में एक सनसनीखेज बयान देकर सबको चौंका दिया है. उन्होंने संकेत दिए हैं कि अगर अब्राहम अकॉर्ड में शामिल होने का अवसर आया तो पाकिस्तान अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देते हुए इजरायल के साथ संबंध सामान्य करने पर विचार कर सकता है. यह बयान इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि महज एक हफ्ते पहले तक आसिफ ईरान के समर्थन में मुस्लिम देशों से एकजुट होने की अपील कर रहे थे. 

समा टीवी के कार्यक्रम 'नदीम मलिक लाइव' में ख्वाजा आसिफ ने कई अहम मुद्दों पर खुलकर बात की. इस दौरान उन्होंने भारत-पाक तनाव, गाजा युद्ध, ईरान-इजरायल संघर्ष और प西म एशिया में अमेरिका की भूमिका जैसे विषयों पर अपनी राय रखी. इंटरव्यू में उनसे सवाल किया गया कि अगर अब्राहम अकॉर्ड का विस्तार होता है और पाकिस्तान पर इसमें शामिल होने का दबाव आता है, तो क्या वह इजरायल को मान्यता देकर संबंध सामान्य करेगा? इस पर आसिफ ने साफ कहा हम अपने राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखेंगे. अगर ऐसा कोई प्रस्ताव आता है तो हम इस पर विचार करेंगे और अपने फायदे के हिसाब से फैसला लेंगे.

आसिफ ने यह भी स्पष्ट किया कि अभी तक ऐसा कोई आधिकारिक प्रस्ताव पाकिस्तान के सामने नहीं आया है. हालांकि, उनके इस बयान ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या पाकिस्तान अब्राहम अकॉर्ड के तहत इजरायल के साथ संबंध स्थापित करने की दिशा में कदम उठा सकता है.

अब्राहम अकॉर्ड और पाकिस्तान की स्थिति

अब्राहम अकॉर्ड 2020 में शुरू हुआ एक अमेरिकी मध्यस्थता वाला समझौता है जिसके तहत इजरायल और कई अरब देशों संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन और मोरक्कोके बीच संबंध सामान्य हुए. इस समझौते ने पश्चिम एशिया की राजनीति को नया आकार दिया है, लेकिन पाकिस्तान ने हमेशा से फिलिस्तीन के समर्थन में अपनी आवाज बुलंद की है और इजरायल को मान्यता देने से इनकार किया है. पाकिस्तान की आधिकारिक नीति रही है कि जब तक फिलिस्तीन को 1967 से पहले की सीमाओं के साथ एक स्वतंत्र राज्य और यरुशलम को उसकी राजधानी के रूप में मान्यता नहीं मिलती, तब तक वह इजरायल के साथ कोई संबंध स्थापित नहीं करेगा.