Pakistan Afghanistan Tension: एक तरफ अफगानिस्तान के तालिबान विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी अपने आठ दिनों के भारत दौरे पर हैं. वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान को इस बात से आग रह रही है. और अब वहां के रक्षा मंत्री जहर उगल रहे हैं. पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच तनाव नए स्तर पर पहुंच गया है. पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा मोहम्मद आसिफ ने अफगानिस्तान को देश का 'नंबर वन दुश्मन' और 'गद्दार' करार दिया है. उन्होंने यह बयान पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में दिया, जिसमें उन्होंने अफगान शरणार्थियों की बड़े पैमाने पर हो रही निर्वासन प्रक्रिया का बचाव किया.
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, आसिफ ने कहा कि पाकिस्तान ने अफगान नागरिकों को दशकों तक शरण, रोजगार और सुरक्षा दी, लेकिन बदले में उन्हें 'धोखा' मिला. उन्होंने आरोप लगाया कि अफगान नागरिक पाकिस्तान में व्यापार कर रहे हैं और वहीं से अफगानिस्तान की सत्ता में भी भूमिका निभा रहे हैं. आसिफ ने कहा कि अफगान तालिबान के कई नेता पाकिस्तान में अपनी पत्नियों और परिवारों के साथ रहते हैं और पाकिस्तान के खिलाफ काम कर रहे आतंकियों को शरण दे रहे हैं.
रक्षा मंत्री ने अपने भाषण में कहा कि अफगान शरणार्थियों ने पाकिस्तान की मेहमाननवाजी का गलत फायदा उठाया है. उन्होंने कहा कि जिन लोगों ने पाकिस्तान में बड़े व्यवसाय खड़े किए, वे पाकिस्तान जिंदाबाद तक नहीं कहते. आसिफ के अनुसार, अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी के बाद पाकिस्तान में आतंकी हमलों में तेजी आई है, जिसके लिए वे सीधे तौर पर अफगान सरजमीं को जिम्मेदार ठहराते हैं.
यह बयान ऐसे समय आया है जब दोनों देशों के बीच डूरंड रेखा के पास गोलीबारी और हवाई हमलों की खबरें सामने आई हैं. साथ ही, अफगान विदेश मंत्री आमिर खान मुत्तकी की नई दिल्ली यात्रा को लेकर भी पाकिस्तान में नाराजगी है. पाकिस्तान इसे तालिबान पर अपने 'रणनीतिक नियंत्रण' के कमजोर होने के रूप में देख रहा है.
ख्वाजा आसिफ का यह बयान पाकिस्तान की विदेश नीति में बड़े बदलाव का संकेत माना जा रहा है. जहां पहले पाकिस्तान तालिबान का समर्थक था, अब वह उसे अपने सुरक्षा संकट की जड़ मान रहा है. उन्होंने चेतावनी दी कि पाकिस्तान का धैर्य अब खत्म हो गया है और अफगान धरती से आतंक फैलाने वालों के खिलाफ कड़ा कदम उठाया जाएगा. पाकिस्तान सरकार ने अक्टूबर 2023 से बिना वैध दस्तावेजों वाले विदेशी नागरिकों को देश से निकालने का अभियान शुरू किया था. इस अभियान को राष्ट्रीय सुरक्षा का हिस्सा बताया गया है, लेकिन इसे संयुक्त राष्ट्र और मानवाधिकार संगठनों ने मानवीय संकट करार दिया है.