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भारत-रूस की डील बदल देगी दुनिया की तस्वीर, खबर जान बेहाल हुआ अमेरिका!

India Russia Relation: भारत और रूस एक नए समुद्री गलियारे को विकसित करने में साथ आ सकते हैं. यह गलियारा दोनों देशों में व्यापारिक गतिविधियों को खासा बढ़ावा देगा.

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 India and Russia New Sea Route NSR

India Russia Relation: यमन के हूती विद्रोही और इजरायल जंग अमेरिका के लिए पहले से ही मुश्किलें बढ़ा रही हैं. इस बीच भारत और रूस के बीच होने वाली डील की सुगबुगाहट ने अमेरिका को चारों खाने चित कर दिया है. हूतियों के लगातार हमलों के कारण लाल सागर में व्यापारिक मार्गों को लगातार नुकसान पहुंचाया गया है. इस कारण एशिया को यूरोप से जोड़ने वाले वैकल्पिक मार्ग की खोज की मांग बढ़ गई है. दुनिया के मजबूत देशों ने अपने व्यापारिक जहाजों की सुरक्षा के लिए युद्धपोत तैनात किए हैं. इस बीच खुलासा हुआ है कि भारत और रूस उत्तरी समुद्री मार्ग पर काम कर रहे हैं. भारत इसका उपयोग यूरोप के साथ अपने व्यापारिक उद्देश्यों को पूरा करने के लिए करेगा. 

रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने गुरुवार को रूसी फेडरल असेंबली में देश के नाम संबोधन में कहा था कि वह दुनियाभर की कंपनियों और देशों को उत्तरी समुद्री मार्ग (NSR) जोकि एक वैश्विक परिवहन गलियारा बन सकता है का उपयोग करने के लिए आमंत्रित करते हैं. बीते साल इस गलियारे से 36 मिलियन कार्गो टन गुजरे थे.रिपोर्ट के मुताबिक,पुतिन के बयान के बाद भारत भी रूस के इस मार्ग में शामिल होने की कोशिशों में लग गया है. जानकारों के मुताबिक, भारत का इस मार्ग में शामिल होना अमेरिका के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है. 

उत्तरी समुद्री मार्ग व्यापारिक दृष्टि से अहम

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, उत्तरी समुद्री मार्ग व्यापारिक दृष्टि से खासी अहमियत रखता है. यह भूमध्य सागर को लाल सागर से जोड़ने वाले स्वेज नहर गलियारे की तुलना में आर्कटिक महासागर के पूर्वी और पश्चिमी हिस्सों को कनेक्ट करता है. जानकारों के मुताबिक लाल सागर और स्वेज नहर में जो व्यवधान आया है उसे देखते हुए एक वैकल्पिक मार्ग का इस्तेमाल करना बेहद जरूरी है.  इस मार्ग के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि सर्दियों में यह बर्फ के कारण पूरी तरह से जम जाता है. हिम खंडों को तोड़ने और काटने के लिए बेहद मजबूत जहाजों की आवश्यकता होती है जो रूस के बेडे़ में बड़ी संख्या में शामिल है. रूस के पास बड़ी संख्या में आइस ब्रेकर बेड़े मौजूद हैं. 

रूस जंग ने बदल दिए समीकरण

रिपोर्ट के अनुसार, इस मार्ग का आमतौर पर इस्तेमाल जुलाई से नवंबर तक ही ज्यादा होता है. पूरे साल भर इस मार्ग का इस्तेमाल करने के लिए उसे रूस द्वारा परमाणु संचालित आइस ब्रेकर की जरूरत होती है. इस वजह से यह दक्षिण एशियाई देशों के साथ-साथ दक्षिण पूर्व एशिया देशों को भी एक वैकल्पिक मार्ग प्रदान करता है. यह एक छोटा मार्ग है इस कारण पश्चिमी देशों को इसका खासा लाभ भी मिलेगा. रूस के सैन्य अभियान के बाद उसका तेल निर्यात भी यूरेशियाई देशों को बढ़ गया है.