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साउथ कोरिया पहले था किम जोंग उन का नॉर्थ कोरिया, एक जनरल ने तख्ता पलट करके कई बार किया नरसंहार

दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति ने मंगलवार की रात को एक चौंकाने वाला फैसला करते हुए पहली बार दक्षिण कोरिया में मार्शल लॉ की घोषणा की लेकिन विपक्ष और अपनी ही पार्टी के कुछ नेताओं के भारी दबाव के बाद उन्हें अपना फैसला बदलना पड़ा.

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Edited By: Sagar Bhardwaj
History of coup and martial law in South Korea

दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति ने मंगलवार की रात को एक चौंकाने वाला फैसला करते हुए पहली बार दक्षिण कोरिया में मार्शल लॉ की घोषणा की लेकिन विपक्ष और अपनी ही पार्टी के कुछ नेताओं के भारी दबाव के बाद उन्हें अपना फैसला बदलना पड़ा. राष्ट्रपति यून सुक-योल ने मॉर्शल लॉ की घोषणा करते हुए कहा था कि देश को उत्तर कोरिया और देश विरोधी ताकतों से खतरा है. हालांकि कुछ ही देर बाद स्पष्ट हो गया कि उन्होंने मॉर्शल लॉ देश-विरोधी ताकतों से खतरे को लेकर नहीं बल्कि इसलिए लगाया है क्योंकि राष्ट्रपति खुद पर और अपनी पत्नी पर लगाए गए विभिन्न आरोपों से हताश और निराश हैं.

दक्षिण कोरिया में तख्तापलट और मार्शल लॉ का इतिहास

दक्षिण कोरिया का इतिहास तख्तापलट और मार्शल लॉ के लागू होने से भरा हुआ है, खासकर जब से 1950-53 के कोरियाई युद्ध के बाद देश पुनर्निर्माण के दौर से गुजर रहा था. दक्षिण कोरिया ने लोकतंत्र का मार्ग 1980 के दशक के अंत में अपनाया, लेकिन इससे पहले, सैन्य शासकों और तानाशाहों का लंबे समय तक दबदबा था. युद्ध के बाद देश में राजनीतिक अस्थिरता और आर्थिक संकट ने कई सैन्य तख्तापलटों और लोकतंत्र विरोधी शासन की स्थितियों को जन्म दिया. इन घटनाओं ने दक्षिण कोरिया के राजनीतिक परिदृश्य को आकार दिया और यह आज भी देश की राजनीति में महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं.

पहला सैन्य तख्तापलट: पार्क चुंग-ही का शासन
दक्षिण कोरिया में पहला सैन्य तख्तापलट 16 मई 1961 को हुआ, जब जनरल पार्क चुंग-ही ने अपने सैनिकों को सियोल की सड़कों पर उतारते हुए सत्ता पर कब्जा कर लिया. पार्क चुंग-ही का शासन 1961 से 1979 तक चला और उनके शासनकाल में मार्शल लॉ का कई बार प्रयोग हुआ. पार्क ने विरोध प्रदर्शनों और सरकार विरोधी आंदोलनों को कुचलने के लिए सैनिकों, टैंकों और बख्तरबंद वाहनों का उपयोग किया. उनका शासन तानाशाही था और उन्होंने राजनीतिक विरोधियों को जेल भेजा और नागरिक स्वतंत्रताओं को सीमित किया.

पार्क के शासन के दौरान, देश में औद्योगिक विकास हुआ, लेकिन इसके साथ ही राजनीतिक स्वतंत्रता पर भी भारी प्रतिबंध लगाए गए. 1979 में उनके जासूस द्वारा पार्क की हत्या के बाद ही दक्षिण कोरिया में पार्क चुंग-ही के निरंकुश शासन का अंत हुआ.

दूसरा सैन्य तख्तापलट: चुं डू-ह्वान और ग्वांगजू विद्रोह
पार्क चुंग-ही की हत्या के बाद, दक्षिण कोरिया में राजनीतिक अस्थिरता ने एक और सैन्य विद्रोह को जन्म दिया. दिसंबर 1979 में मेजर जनरल चुं डू-ह्वान ने टैंकों और सैनिकों के साथ सियोल में प्रवेश किया और सत्ता पर कब्जा कर लिया. चुं ने भी कई बार मार्शल लॉ का लागू किया और विरोधी आंदोलनों को दबाया.

1980 में, चुं डू-ह्वान ने ग्वांगजू शहर में लोकतंत्र के समर्थन में होने वाले विशाल प्रदर्शनों का सख्ती से दमन किया, जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए. यह घटना आज भी दक्षिण कोरिया के इतिहास में एक काले अध्याय के रूप में याद की जाती है. ग्वांगजू विद्रोह ने देशभर में लोकतांत्रिक सुधारों के लिए जन जागरूकता को जन्म दिया, लेकिन तब तक सैन्य शासन का असर गहरा हो चुका था.

1987 में लोकतंत्र की ओर बढ़ते कदम
1987 में दक्षिण कोरिया में व्यापक विरोध प्रदर्शनों के बाद, सेना के शासन को समाप्त करने का दबाव बढ़ा. लाखों लोगों ने सड़कों पर उतरकर सीधे राष्ट्रपति चुनाव की मांग की. इन प्रदर्शनों का प्रभाव पड़ा, और सैन्य शासकों ने अंततः चुनावों की अनुमति दी.

इसके बाद, 1987 में जनरल रो ताए-वू, जो कि चुं डू-ह्वान के करीबी सहयोगी थे, ने राष्ट्रपति चुनाव में जीत हासिल की. लेकिन उनका चुनाव भी विवादास्पद था, क्योंकि विपक्षी दलों के वोट विभाजित होने के कारण उन्हें सफलता मिली. इसके बावजूद, 1988 में रो के राष्ट्रपति बनने के बाद, दक्षिण कोरिया ने सैन्य शासनों के 40 वर्षों के बाद लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था की ओर कदम बढ़ाया.

दक्षिण कोरिया की लोकतांत्रिक यात्रा
रो ताए-वू के राष्ट्रपति बनने के बाद बाद, दक्षिण कोरिया ने अपने पांचवीं संविधान को लागू किया, और 25 फरवरी 1988 को नए संविधान के तहत वर्तमान लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था की शुरुआत हुई. इसे दक्षिण कोरिया के 'छठे गणराज्य' के रूप में जाना गया. यह वो समय था जब दक्षिण कोरिया ने अंततः सैन्य तानाशाही से मुक्त होकर लोकतांत्रिक शासन की ओर कदम बढ़ाए.