नई दिल्ली: पाकिस्तान के गिलगित-बाल्टिस्तान में बीते दिनों से लगातार उभर रहे विरोध प्रदर्शनों ने पूरे क्षेत्र में अस्थिरता बढ़ा दी है. लंबे समय से राजनीतिक अधिकारों से वंचित और आर्थिक समस्याओं से जूझ रहे स्थानीय लोग अब सड़कों पर उतरकर अपनी नाराजगी जता रहे हैं.
बिजली संकट, गेहूं के बढ़ते दाम और जमीन अधिग्रहण जैसे मुद्दों ने हालातों को और गंभीर बना दिया है. उधर, पाकिस्तान सरकार ने सुरक्षा बलों की तैनाती बढ़ाते हुए कई प्रदर्शनकारियों और स्थानीय नेताओं को गिरफ्तार कर दिया है.
गिलगित, स्कर्दू, घाइजर और हुंजा जैसे इलाकों में लोग लगातार प्रदर्शन और धरने दे रहे हैं. स्थानीय नागरिकों का कहना है कि सर्दियों में 18–20 घंटे की बिजली कटौती ने जीवन को मुश्किल बना दिया है, जबकि यह वही क्षेत्र है जहां बड़े हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट मौजूद हैं. इसके साथ ही सब्सिडी वाले गेहूं की कमी और दाम में बढ़ोतरी से जनता और परेशान है. जमीन अधिग्रहण को लेकर भी भारी गुस्सा है, क्योंकि लोगों का आरोप है कि बिना सहमति और बिना उचित मुआवजे के उनकी जमीनें ले ली जा रही हैं.
गिलगित-बाल्टिस्तान पाकिस्तान का ऐसा हिस्सा है जिसे अब तक संवैधानिक दर्जा नहीं मिला. यहां न तो नेशनल असेंबली में प्रतिनिधित्व है और न ही सीनेट में. शासन पूरी तरह इस्लामाबाद से जारी होने वाले आदेशों और बाहरी अधिकारियों के हाथों में है. विशेषज्ञों का कहना है कि यहां के लोग सुप्रीम कोर्ट तक भी अपनी याचिका नहीं पहुंचा सकते. इसी कारण स्थानीय लोगों का आरोप है कि केंद्र सरकार इलाके की जमीन, संसाधन और प्रशासन पर पूरा नियंत्रण रखती है, जबकि उन्हें बुनियादी अधिकार भी नहीं देती.
जैसे-जैसे प्रदर्शन बढ़े, पाकिस्तान सरकार ने सख्त रवैया अपनाया है. कई शहरों में रेंजर्स तैनात किए गए हैं और दर्जनों कार्यकर्ताओं को सुरक्षा कानूनों के तहत गिरफ्तार किया गया है. स्थानीय पत्रकारों का कहना है कि उन्हें कवरेज सीमित रखने और सरकारी नीतियों की आलोचना न करने की चेतावनी दी गई है. अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने मनमानी गिरफ्तारियों और धमकियों पर चिंता जताई है, जिसे वे वर्षों से जारी केंद्रित नियंत्रण का हिस्सा बताते हैं.
गिलगित-बाल्टिस्तान पाकिस्तान के लिए रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि यहीं से चीन–पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) गुजरता है और यह चीन के शिंजियांग क्षेत्र से सीधे जुड़ता है. विश्लेषकों का कहना है कि इस्लामाबाद की प्राथमिकता इस क्षेत्र में सिर्फ मार्गों और बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर को सुरक्षित रखना है, न कि यहां की जनता की समस्याएं. इस वजह से लोगों में यह भावना मजबूत हो रही है कि उनकी भूमि को संसाधन और कॉरिडोर की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है, जबकि वे खुद हाशिये पर छोड़ दिए गए हैं.
भारी दमन और गिरफ्तारियों के बावजूद गिलगित-बाल्टिस्तान में विरोध की लहर कमजोर नहीं पड़ी है. स्थानीय समूहों का कहना है कि अब वे बिना अधिकारों के आगे नहीं जीना चाहते. पाकिस्तान पहले ही आर्थिक संकट और राजनीतिक उथल-पुथल से जूझ रहा है, वहीं गिलगित-बाल्टिस्तान में यह असंतोष उसके लिए एक नई चुनौती बन गया है. प्रदर्शनकारियों की मांग है कि उन्हें भूमि अधिकार, विद्युत संसाधनों में हिस्सा और पाकिस्तान के बराबर संवैधानिक अधिकार दिए जाएं और वे इसके लिए संघर्ष जारी रखने को तैयार हैं.