सीवाइज जायंट, दुनिया का सबसे बड़ा जहाज, जिसकी कहानी उतनी ही भव्य है जितना यह जहाज स्वयं था. तीन दशकों तक सेवा में रहने के बाद, इस जहाज ने कई नाम और मालिक बदले, ईरान-इराक युद्ध में हमला झेला और फिर से समुद्र में अपनी यात्रा शुरू की. टेलीग्राफ यूके की रिपोर्ट के अनुसार, इसे एक ग्रीक व्यवसायी ने बनवाया था, लेकिन उन्होंने इसे खरीदने से इनकार कर दिया. जापानी कंपनी सुमितोमो हेवी इंडस्ट्रीज ने 1979 में इस विशाल जहाज का निर्माण किया. अंततः, इसे हांगकांग के शिपिंग दिग्गज सीवाई टुंग ने खरीदा, जिन्होंने इसकी क्षमता को 1,40,000 टन तक बढ़ाया.
रुकने के लिए 8 किलोमीटर
वर्चु मरीन के अनुसार, यह जहाज 458 मीटर (1,500 फीट से अधिक) लंबा था और 6,00,000 टन से अधिक माल ढो सकता था. यह एम्पायर स्टेट बिल्डिंग और एफिल टॉवर से ऊंचा था और टाइटैनिक से कहीं बड़ा था. हालांकि, इसका विशाल आकार नेविगेशन में चुनौतियां खड़ा करता था. टेलीग्राफ की रिपोर्ट के अनुसार, इसे पूरी तरह घूमने के लिए 3 किमी और रुकने के लिए 8 किमी की दूरी चाहिए थी. इसकी विशालता के कारण यह स्वेज और पनामा नहर जैसे प्रमुख बंदरगाहों में प्रवेश नहीं कर सकता था.
ईरान-इराक युद्ध में हमला
1980 के दशक में अमेरिका और मध्य पूर्व के बीच कच्चे तेल के परिवहन में उपयोग होने वाला यह जहाज मई 1988 में ईरान-इराक युद्ध में फंस गया. वर्चु मरीन के अनुसार, लारक द्वीप के पास खड़े जहाज पर इराकी वायुसेना ने दो मिसाइलों से हमला किया, जिससे यह लगभग पूरी तरह नष्ट हो गया.
युद्ध के बाद इसमें 3,700 टन नया स्टील जोड़ा गया. इसे ‘हैप्पी जायंट’ नाम दिया गया और 1991 में फिर से सेवा शुरू की. बाद में इसे नॉर्वे के जॉर्गन जाहरे ने 39 मिलियन डॉलर में खरीदा और ‘जाहरे वाइकिंग’ नाम दिया. 2004 में, नॉर्वे की फर्स्ट ओल्सेन टैंकर्स ने इसे खरीदा और ‘नॉक नेविस’ नाम से कतर के अल शाहीन तेल क्षेत्र में स्थिर भंडारण इकाई के रूप में उपयोग किया.
भारत में तोड़ा दम
2009 में, एम्बर डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन ने इसे खरीदा और ‘मॉन्ट’ नाम दिया. वर्चु मरीन के अनुसार, इसे 2010 में भारत के अलंग में तोड़ा गया. इसका 36 टन का लंगर हांगकांग समुद्री संग्रहालय में प्रदर्शित है.