Prada Kolhapuri Controversy: मिलान फैशन वीक 2025 के दौरान कोल्हापुरी चप्पलों को बिना श्रेय दिए प्रदर्शित करने पर आलोचनाओं का सामना करने के बाद, इतालवी फैशन ब्रांड प्रादा की टीम ने कोल्हापुर का दौरा किया. इस दौरे का उद्देश्य पारंपरिक कोल्हापुरी शिल्प और उसके इतिहास को समझना था.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक महाराष्ट्र चैंबर ऑफ कॉमर्स, इंडस्ट्री एंड एग्रीकल्चर के प्रमुख ललित गांधी ने पुष्टि की कि फैशन शो में कोल्हापुरी चप्पलों को “लेदर फुटवियर” के तौर पर दिखाया गया, परंतु उनकी सांस्कृतिक पहचान या मूल स्थान का कोई जिक्र नहीं किया गया. इस पर भारत में आक्रोश फैल गया और इसे सांस्कृतिक विनियोग की संज्ञा दी गई.
प्रादा की ओर से छह वरिष्ठ प्रतिनिधियों का एक दल मंगलवार को कोल्हापुर पहुंचा. इस प्रतिनिधिमंडल में प्रादा के पुरुष तकनीकी एवं उत्पादन विभाग के निदेशक पाओलो टिवरोन, पैटर्न मेकिंग मैनेजर डेनियल कोन्टू, एंड्रिया और रॉबर्टो पोलास्ट्रेली जैसे अधिकारी शामिल थे. उन्होंने स्थानीय कारीगरों शुभम सातपुते, बालू गवली, सुनील लोकरे, बालासाहेब गवली और अरुण सातपुते से मुलाकात कर कोल्हापुरी शिल्प की बारीकियों को जाना.
गांधी ने बताया कि प्रादा प्रतिनिधियों ने आश्वासन दिया है कि भविष्य में ऐसी गलती नहीं दोहराई जाएगी और कोल्हापुरी चप्पलों को वैश्विक पहचान दिलाने में सहयोग किया जाएगा. उन्होंने भारत के शिल्पकारों के साथ सहयोग कर "मेड इन इंडिया" कोल्हापुरी-प्रेरित सीमित संस्करण कलेक्शन लॉन्च करने में भी रुचि जताई है.
विशेषज्ञों कहना है कि इस प्रकार की सांस्कृतिक प्रस्तुतियों में उचित श्रेय देना जरूरी है. कोल्हापुरी चप्पलों को 2019 में भारत सरकार से भौगोलिक संकेत (GI) का दर्जा मिल चुका है, जो उनकी क्षेत्रीय पहचान को दर्शाता है. इस प्रकरण के बाद महाराष्ट्र चैंबर ऑफ कॉमर्स ने प्रादा को औपचारिक पत्र भेजकर सांस्कृतिक मान्यता की कमी पर चिंता जताई थी.
इसके जवाब में, प्रादा ने कहा कि वह जिम्मेदार डिजाइन, सांस्कृतिक साझेदारी और स्थानीय कारीगरों के साथ सार्थक संवाद को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है. सरकार से भी आग्रह किया गया है कि कोल्हापुरी चप्पलों की प्रतिष्ठा और पहचान की रक्षा के लिए ठोस कदम उठाए जाएं.