What is Uniform Civil Code: देवभूमि उत्तराखंड विधानसभा में समान नागरिका संहिता पेश करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है. विधेयक पेश किए जाने के बाद राज्य विधानसभा के अंदर 'वंदे मातरम और जय श्री राम' के नारे लगे. अब उत्तराखंड सरकार विधानसभा में इस पर चर्चा करेगी, जिसके बाद इसे राज्य में लागू किया जाएगा. हालांकि इसे लेकर विपक्षी पार्टियां विरोध प्रदर्शन कर रही हैं. तो जानते हैं कि आखिर समान नागरिक संहिता है क्या? इसके लागू होने पर क्या असर पड़ेगा?
भारत का संविधान के अनुच्छेद 44 के तहत राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों में से एक, कहता है कि राज्य अपने नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता को सुरक्षित करने का प्रयास कर सकता है. हालांकि, संविधान निर्माताओं ने इस मुद्दे की संवेदनशीलता और जटिलता को देखते हुए यूसीसी को लागू करना सरकार पर छोड़ दिया था. वर्षों से विभिन्न सरकारों ने यूसीसी के कार्यान्वयन पर चर्चा और बहस कीं, लेकिन यह एक विवादास्पद और राजनीतिक रूप से संवेदनशील विषय बना हुआ है.
भारत में विवाह, तलाक, विरासत और ऐसे अन्य मामलों को काबू करने वाले व्यक्तिगत कानून धार्मिक ग्रंथों और रीति-रिवाजों पर आधारित हैं. भारत में हिंदू, मुस्लिम, ईसाई और सिख समेत सभी प्रमुख धार्मिक समुदायों के अपने-अपने अलग-अलग व्यक्तिगत कानून हैं. कुछ इस तरह से समझिए क्या कहते हैं धर्म और उनके कानून?
1. हिंदू पर्सनल लॉ
हिंदू पर्सनल लॉ पुराने धार्मिक ग्रंथों और रीति-रिवाजों से लिया गया है. हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 हिंदुओं के बीच विवाह और तलाक को नियंत्रित करता है, जबकि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 विरासत से संबंधित है. 1956 के हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत, (जो हिंदुओं, बौद्धों, जैनियों और सिखों के अधिकारों को नियंत्रित करता है) हिंदू महिलाओं को अपने माता-पिता से संपत्ति हासिल करने का समान अधिकार है, जबकि हिंदू पुरुषों के पास भी समान अधिकार है.
2. मुस्लिम पर्सनल लॉ
भारत में मुसलमान मुस्लिम पर्सनल लॉ का पालन करते हैं, जो शरिया के हिसाब से चलता है. मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन एक्ट, 1937 मुसलमानों के बीच विवाह, तलाक, विरासत और रखरखाव से संबंधित मामलों को नियंत्रित करता है.
3. ईसाइ, पारसी और यहूदी
भारत में ईसाइयों, पारसियों और यहूदियों के लिए 1925 का भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम लागू होता है. इसके तहत ईसाई महिलाओं को बच्चों या फिर उनके रिश्तेदारों के आधार पर संपत्ति में हिस्सा मिलता है. इसके अलावा पारसी विधवाओं (जिनके पति की मौत हो गई हो) को बच्चों के बराबर ही संपत्ति में हिस्सा मिलता है. वहीं, यदि मरने वाले शख्स के मां-बाप जिंदा हैं तो बच्चों का आधा हिस्सा उन्हें दिया जाता है.
भारत में समान नागरिक संहिता को लेकर काफी बहस और विवाद है. इसको लेकर अक्सर ध्रुवीकरण होता है. यूसीसी के समर्थकों और विरोधियों की ओर से कई तर्क दिए गए हैं.
धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता: भारत एक ऐसा देश है जो अपनी समृद्ध धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता और विरासत के लिए जाना जाता है. यहां कई धर्मों के लोग रहते हैं. सभी लोगों के अपने-अपने रीति-रिवाज हैं. आलोचकों का कहना है कि यूसीसी इस विविधता के लिए एक चुनौती है, क्योंकि यह सभी नागरिकों के लिए लागू एक समान कोड के साथ व्यक्तिगत धार्मिक कानूनों को बदलना चाहता है. आलोचकों का तर्क है कि इस तरह का कदम देश के सांस्कृतिक ताने-बाने को कमजोर कर सकता है और लोगों की धार्मिक स्वतंत्रता पर आघात कर सकता है.
अल्पसंख्यक अधिकारों की सुरक्षा: यूसीसी के विरोधियों की ओर से उठाई गई मुख्य चिंताओं में से एक अल्पसंख्यक समुदायों पर संभावित प्रभाव है. कहा गया है कि व्यक्तिगत कानून इन समुदायों की धार्मिक पहचान और प्रथाओं से गहराई से जुड़े हुए हैं. उनका तर्क है कि समान नागरिक संहिता लागू करने से अल्पसंख्यक समूहों को प्राप्त अधिकार और सुरक्षा कमजोर हो सकती है. उनकी सांस्कृतिक स्वायत्तता नष्ट हो सकती है. भारत जैसे बहुलवादी समाज में अल्पसंख्यक अधिकारों की रक्षा और उनकी विशिष्ट प्रथाओं को संरक्षित करना महत्वपूर्ण माना जाता है.
राजनीतिक विचार: यूसीसी अक्सर राजनीतिक दांव पेच का मुद्दा बन जाता है. राजनीतिक दलों और नेताओं ने कई बार इसका इस्तेमाल वोट बैंक को मजबूत करने या अपने क्षेत्र लोगों पर प्रभाव डालने के लिए किया जाता है. धार्मिक पहचान की संवेदनशील प्रकृति और अल्पसंख्यक समुदायों पर संभावित प्रभाव ने इसे एक ध्रुवीकरण का मुद्दा बना दिया है. इसमें यूसीसी की खूबियों और कमियों पर वास्तविक चर्चा पर अक्सर राजनीतिक गणनाओं को प्राथमिकता दी जाती है.
लैंगिक समानता और महिलाओं के अधिकार: यूसीसी के पक्षकारों का कहना है कि समान संहिता को लागू करने से कुछ धार्मिक व्यक्तिगत कानूनों में मौजूद भेदभावपूर्ण प्रथाएं खत्म होंगी. उनका कहना है कि इन प्रथाओं से लैंगिक समानता और महिलाओं के अधिकारों को बढ़ावा मिलेगा. साथ ही समान नागरिक संहिता विवाह, तलाक, विरासत और भरण-पोषण जैसे मामलों में सभी को समान अधिकार मिलेगा. हालांकि विरोधियों का तर्क है कि लैंगिक न्याय मौजूदा व्यक्तिगत कानूनों से भी हासिल किया जा सकता है.